Sunti hu aksar gaane us Paglet ko bhulane ki khaatir...
Magar kambhakt gaane sun sunkar bhi wahi Paglet yaad aata hai...— % &-
Usko Inkar ki raah par laakr...
Main khud Ikrar hoti ja rahi hu...— % &-
सुनो...
तुम मुझ में पहले भी थे
तुम मुझ में आज भी हो...
तुम दिन के उजालों में भी थे
तुम रात के अंधेरों में भी हो...
तुम सूरज की किरणों में भी थे
तुम चांद की चांदनी में भी हो...
तुम मेरे लफ़्ज़ों में भी थे
तुम मेरी ख़ामोशियों में भी हो...
तुम रूह बन कर शामिल थे जिस्म में
तुम मेरे वजूद में शामिल भी हो...
कैसे करूँ जिस्म से रूह को जुदा
तुम तो मेरी हर सांस में भी हो...
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तलब उठती है बार-बार उनसे बात करने की...
धीरे-धीरे ना जाने कब वो मेरी लत बन गए...
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किसी इंसान के मर जाने से बद्तर है
उसके सपनों का मर जाना...— % &-
एक दिन मैं यूं ही उनकी याद में मर जाऊंगी और वो यही सोचेगें कि मुझे कोई और मिल गया...— % &
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और अंत मे दो लोग अजनबी हो जाते हैं एक दूसरे के लिए ... एक दूसरे के बारे में सब कुछ जानते हुए...— % &
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सुनो ....
डायरी के पन्नों पर ...
अक्षरों से उकेरी कई कई तस्वीरें हैं
कुछ तुम्हारी
और फिर से तुम्हारी
कई कई शिकायतें हैं ...
कुछ खुद से
कुछ तुम से....
पर वो जो मोहब्बत वाला हिस्सा है न ....... वहाँ सिर्फ़ तुम्हारा नाम लिखा है
वो क्या है न .......
मोहब्बत हर किसी के हिस्से नहीं आती...-