इक ग़ज़ल
1222 1222 1222 1222

भरी आंखों से चलती जब कलम बनती ग़ज़ल कोई,
यूँ लगता दर्द निकला मेरे दिल का है पिघल कोई।

दिखा टूटा हुआ मुझको सितारा जब भी रातों में,
तमन्ना फिर से जाती है नई सी इक मचल कोई।

बड़ी ही मुश्किलों से हैं सुलझती उलझनें मेरी,
कहाँ मिलता यहाँ है जिंदगी में हल सरल कोई।

थे जो बदनाम मशहूर वो ही हो गए अब तो,
शराफ़त देखता ही अब कहाँ है आजकल कोई।

दुआ ही तो दीप्ति सबकी है करती असर जीवन में,
लिखा किस्मत का तो है नहीं पाता बदल कोई।

- ✍️दीप्ति