दूर दराज की नौकरी से छुट्टी लेकर
लड़के आते है घर पर दीवाली मनाने,
दीवाली आती है और चले जाती है,
पर दीवाली के अगले दिन,
नजर आने लगते है खाली दिए,
कलेंडर पर खत्म होती छुट्टियां,
दीवारों से झड़ता पेंट,
छत की चाहर दीवारी की दरारें,
मां के हाथों की झुर्रियां,
पापा की सुस्त पड़ती चाल,
धीरे धीरे सिमटने लगता है
पटाखों का शोर,
रसोई में बर्तनों की खनक,
आंगन में बनी रंगोली,
बिजली की झालरें,
और लाल रंग के सूटकेस में,
बंद हो जाती है,
दीवाली पर खरीदी नई शर्ट के साथ पुरानी जिंदगी,
मिठाई का डब्बा और फीका सा मन,
और तैयार हो जाता है ले जाने के लिए
हल्का सा समान और भारी सा दिल...
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