दीपक सक्सेना  
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कुछ अनसुनी और अनकही बातो को कहानियो में लिख देना ही सबसे बेहतरीन उपाय है...
Joined 26 December 2018


कुछ अनसुनी और अनकही बातो को कहानियो में लिख देना ही सबसे बेहतरीन उपाय है...
Joined 26 December 2018

लगता है हम सब ऊब चुके है एक ढोंग है जो करना पड़ रहा है।
ऐसा नहीं है कि कुछ हार गए है या कुछ पीछे रह गया, कही पहुंच नहीं पाए पर फिर भी एक उलझन है।
अपने सोशल मीडिया में खुश दिखने वाले दोस्तों से मिलता हूं तो पता चलता है,वहां भी दिखावा है।
खुश रहने से ज्यादा खुश दिखना जरूरी हो गया है।खुश नहीं दिखे तो दुनिया तौलने लगेगी।
उम्र के साथ हर वो चीज जो उत्तेजना पैदा करती थी, थम रही है।एक माया का समाधान दूसरी माया में नजर आता है,फिर दूसरी से तीसरी और अनंत से अंतहीन।
पहले सोचता था ये दार्शनिक लोग क्या जीवन को जानने के पीछे लगे रहते है।
दुनिया से पूछने जाओगे दुनिया तुम्हारे जरिए अपना ध्येय बताएगी, बॉस बोलेगा कंपनी की तरक्की ही तुम्हारा उद्देश्य है, परिवार गृहस्थी को तवज्जो देगा, सम्बन्धी पैसों को आदि आदि।
ये शायद ऐसा जवाब है जो खुद के ही दिल की कई परतों के बीच दबा है। ऐसी परत जिसे देखने की हमारी हिम्मत नहीं जहां पहुंचने का हममें साहस नहीं।
जवाब मिला तो ठीक तब तक शायद ये ढोंग चलता रहेगा, माया से माया का मोह बांधता रहेगा, समय गुजरता रहेगा और ऊब किसी जोंक की तरह सारी जिजीविषा को चूसते रहेगी।

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हैवानों की नगरी है
हैवानों की ही बस्ती है
इज्जत का कोई मोल नहीं
हर जान यहां पर सस्ती है

कानून जहां का अंधा सा
और कछुए सी है न्याय विधा
जनसेवक सब विकलांग यहां
कुर्सी है उसकी मस्ती है

पल दो पल का अफसोस है ये
और मोम पड़ा है डगर डगर
हर नगर में सांपों की साजिश
नई जान कोई फिर डसती है

हंगामे के बाद यहां सब लोग घरों को जाएंगे
उम्मीद ए इंसाफ में बस चप्पल अपनी घिसवाएंगे
ताना जालों का पसरेगा
जब तक न कोई फिर फंसती है

हंगामा फिर से फैलेगा
हर खून यहां पर खौलेगा
फिर इज्जत का कोई मोल न है
फिर जान यहां पर सस्ती है

हैवानों की नगरी है
हैवानों की ही बस्ती है
इज्जत का कोई मोल नहीं
हर जान यहां पर सस्ती है

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प्रेम,
पहले साधना का विषय था
अब संसाधनों का विषय है...

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आधुनिक प्रेमिकाएं
प्रेमी की
धड़कने टटोलने
से पहले
जेब टटोलती है...

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समाज
एक प्रसन्न अविवाहित लड़के के साथ
हंसने की अपेक्षा
दुखी विवाहित लड़के से
सहानुभूति अभिव्यक्त करने में
आनंद का अनुभव करता है...

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वो मेरे,
हृदय का स्पंदन,
आंखो का क्रंदन,
तन की उमंग,
ख्वाबों की पतंग,
रंगों का फाग,
कोयल का राग,
पेट की तितलियां,
निगाहों की बिजलियां,
उंगलियों की छुअन,
नोकझोंक की जलन,
बातों की बनावट,
खतों की लिखावट,
शायरी का लहज़ा,
लहज़े की बात,
और बात में बसे सारे जज़्बात ले गया,
पहला प्रेम गया तो सब अपने साथ ले गया...

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गर्मी की छुट्टियां
नाना का घर
लूडो की किट किट
कुल्फी की टन टन
खुला हुआ आंगन
पानी के बताशे
रात का खाना
फ्रिज के आम
हाजमोला की गोली
बत्ती का जाना
हाथ का पंखा
आसमान के तारे
कूलर की हवा
ठंडा बिस्तर
नानी की कहानियां
खेलों की अनबन
प्यारा सा बचपन

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मां,
अजीब होती है
परेशान भी होती है
तो किचन में जाके मसाले कूटने लगती है

और अगर मसाले नही मिलते
तो अपना ही लड़का कूट देती है...

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चांद को देखा, देख के सोचा,
करते थे क्या प्यारी बातें,
करवट बदली मूंद ली आंखें,
याद आ गई सारी बातें...

सांझ के ढलते कहते दिन की,
खट्टी मीठी खारी बातें,
कितने हल्के हो जाते थे,
पलट के दिल की भारी बाते,

समझ सके ना तुम वो सब थी,
हालातों की मारी बातें,
अब हम चुप है तुम भी हो चुप,
वक्त है जीता, हारी बातें...

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दूर दराज की नौकरी से छुट्टी लेकर
लड़के आते है घर पर दीवाली मनाने,
दीवाली आती है और चले जाती है,
पर दीवाली के अगले दिन,

नजर आने लगते है खाली दिए,
कलेंडर पर खत्म होती छुट्टियां,
दीवारों से झड़ता पेंट,
छत की चाहर दीवारी की दरारें,
मां के हाथों की झुर्रियां,
पापा की सुस्त पड़ती चाल,

धीरे धीरे सिमटने लगता है
पटाखों का शोर,
रसोई में बर्तनों की खनक,
आंगन में बनी रंगोली,
बिजली की झालरें,

और लाल रंग के सूटकेस में,
बंद हो जाती है,
दीवाली पर खरीदी नई शर्ट के साथ पुरानी जिंदगी,
मिठाई का डब्बा और फीका सा मन,
और तैयार हो जाता है ले जाने के लिए
हल्का सा समान और भारी सा दिल...

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