दीपक सक्सेना  
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कुछ अनसुनी और अनकही बातो को कहानियो में लिख देना ही सबसे बेहतरीन उपाय है...
Joined 26 December 2018


कुछ अनसुनी और अनकही बातो को कहानियो में लिख देना ही सबसे बेहतरीन उपाय है...
Joined 26 December 2018

प्रेम,
पहले साधना का विषय था
अब संसाधनों का विषय है...

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आधुनिक प्रेमिकाएं
प्रेमी की
धड़कने टटोलने
से पहले
जेब टटोलती है...

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समाज
एक प्रसन्न अविवाहित लड़के के साथ
हंसने की अपेक्षा
दुखी विवाहित लड़के से
सहानुभूति अभिव्यक्त करने में
आनंद का अनुभव करता है...

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वो मेरे,
हृदय का स्पंदन,
आंखो का क्रंदन,
तन की उमंग,
ख्वाबों की पतंग,
रंगों का फाग,
कोयल का राग,
पेट की तितलियां,
निगाहों की बिजलियां,
उंगलियों की छुअन,
नोकझोंक की जलन,
बातों की बनावट,
खतों की लिखावट,
शायरी का लहज़ा,
लहज़े की बात,
और बात में बसे सारे जज़्बात ले गया,
पहला प्रेम गया तो सब अपने साथ ले गया...

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गर्मी की छुट्टियां
नाना का घर
लूडो की किट किट
कुल्फी की टन टन
खुला हुआ आंगन
पानी के बताशे
रात का खाना
फ्रिज के आम
हाजमोला की गोली
बत्ती का जाना
हाथ का पंखा
आसमान के तारे
कूलर की हवा
ठंडा बिस्तर
नानी की कहानियां
खेलों की अनबन
प्यारा सा बचपन

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मां,
अजीब होती है
परेशान भी होती है
तो किचन में जाके मसाले कूटने लगती है

और अगर मसाले नही मिलते
तो अपना ही लड़का कूट देती है...

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चांद को देखा, देख के सोचा,
करते थे क्या प्यारी बातें,
करवट बदली मूंद ली आंखें,
याद आ गई सारी बातें...

सांझ के ढलते कहते दिन की,
खट्टी मीठी खारी बातें,
कितने हल्के हो जाते थे,
पलट के दिल की भारी बाते,

समझ सके ना तुम वो सब थी,
हालातों की मारी बातें,
अब हम चुप है तुम भी हो चुप,
वक्त है जीता, हारी बातें...

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दूर दराज की नौकरी से छुट्टी लेकर
लड़के आते है घर पर दीवाली मनाने,
दीवाली आती है और चले जाती है,
पर दीवाली के अगले दिन,

नजर आने लगते है खाली दिए,
कलेंडर पर खत्म होती छुट्टियां,
दीवारों से झड़ता पेंट,
छत की चाहर दीवारी की दरारें,
मां के हाथों की झुर्रियां,
पापा की सुस्त पड़ती चाल,

धीरे धीरे सिमटने लगता है
पटाखों का शोर,
रसोई में बर्तनों की खनक,
आंगन में बनी रंगोली,
बिजली की झालरें,

और लाल रंग के सूटकेस में,
बंद हो जाती है,
दीवाली पर खरीदी नई शर्ट के साथ पुरानी जिंदगी,
मिठाई का डब्बा और फीका सा मन,
और तैयार हो जाता है ले जाने के लिए
हल्का सा समान और भारी सा दिल...

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पर वह चीज जो नहीं बता पाते
वह है अकेलापन
हम नहीं बता पाते कि
अकेले बैठकर
क्रिकेट का मैच उतना अच्छा नहीं लगता
हम नहीं बता पाते कि
अकेले बैठकर खाने का स्वाद
कैसा होता है
नहीं बता पाते
अकेले देखी गई फिल्म के बीच
हम अक्सर सो जाते हैं
हम नहीं बता पाते
थक हार कर सो जाने के बाद
अब अक्सर
बत्तियां जलती रहती है
हम नहीं बता पाते
चाय अकेले पीना
उतना अच्छा नहीं लगता
हम नहीं बता पाते कि
अरसा हो गया साथ में बैठकर जलेबी खाए
और इस तरह
बताने के नाम पर हम सिर्फ बता देते हैं
ऑफिस के दोस्त का हाल
पड़ोस वाले अग्रवाल अंकल की बातें
और
मौसम का हाल...

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पापा का फोन
दिन भर के काम के बाद घर आकर
शाम को कभी कभार पापा का फोन आ जाता है
उम्र के साथ-साथ
पापा से होने वाली बातें
कम और कम होती चली जाती हैं
नासमझी में पापा से कर लेते थे बहुत सी बातें
पर जैसे-जैसे समझदारी का दिखावा कर रहे हैं
पापा के साथ होने वाली बातें कम हो गई है
सिर्फ हाल-चाल पूछने के बाद
फोन के दोनों तरफ से एक चुप्पी छा जाती है
बताने को तो हम एक दूसरे को बता देते हैं काफी कुछ
अब चाहे वह पड़ोस वाले अग्रवाल अंकल का हाल हो
ऑफिस वाले दोस्त की कुछ बात
बॉस की चुगली हो या
दूध के फट जाने की घटना
बारिश के बाद की उमस हो या फिर कड़ाके की ठंड
इस तरह मौसम, पड़ोस और पूरी दिन दुनिया का हाल
तो हम बता देते हैं

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