18 JUL 2018 AT 21:45

आज बरसात होगी, बदलियाँ बताती हैं,
ख़ूब बरसात होगी, बिजलियाँ बताती हैं।
मेरा हुजरा है कैद चार-दिवारी में पर,
रोशनी आएगी, ये खिड़कियाँ बताती हैं।
न करो बात मुझसे, फिर भी जानता हूँ मैं,
याद करती हो मुझे, हिचकियाँ बताती हैं।
बड़े ग़मगीन रहेंगे ये मकाँ उनके बिन,
घर को बरकत का पता बेटियाँ बताती हैं।
ये जो सहरा है फैल रखा अपने चारों तरफ़,
था ये ग़ुलशन कभी, ये तितलियाँ बताती हैं।
सच छुपाता है अपने बच्चों से रोज़ मगर,
वो है मजदूर, उसकी उंगलियाँ बताती हैं।
ऊपरी तौर से तो सख़्त नारियल सा है,
वो है अंदर से नर्म, तल्ख़ियाँ बताती हैं।
न है बचपन कहीं, न कोई खेल होते हैं,
हो के मायूस, सारी बस्तियाँ बताती हैं।
बेचने वाले बेच देते हैं ज़मीर अपना,
यहाँ बिकता है सच भी, सुर्ख़ियाँ बताती हैं।
मैं ख़ुदा बनने की कोशिश में कामयाब नहीं,
मैं हूँ इंसान, मेरी गलतियाँ बताती हैं।

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