धर्मेन्द्र कुमार   (Dharmendr@Kumar)
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Joined 30 September 2019


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Joined 30 September 2019

जागते ही तुम्हारे चेहरे पर शिकन कैसी...
मुझसे बिछड़ने का ख़्वाब देखा हो जैसे?

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ऐ काश तेरा मैं हो जाऊं,
सीने से लगूँ और खो जाऊँ,
तू गोद में रखे जब सर मेरा...
मेरी जान फ़ना में हो जाऊं।

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तुम पास हो तो पल में गुज़र जाती है,
ये रात तुम्हारे बिना ठहर जाती है।

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इतनी शिकायतें कहाँ से लाते हो?
इश्क़ का हिसाब रखते हो या हिसाब से इश्क़ करते हो?

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तुम रोज़ पूछना कैसे हो,
मैं रोज़ कहूँगा अच्छा हूँ।
😔

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तेरे जाने के बाद हमें कोई खुशी रास न आयी,
अब मैं हूँ, तुम्हारी यादें हैं और तुम्हारी परछाई।

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न देखूँगा फिर कोई सपना, गर ये ख़्वाब टूटा,
न कहूँगा किसी को अपना, गर ये साथ छूटा।
चुन चुन कर जोड़ता हूँ कतरा-कतरा दिल का...
अब न उठाऊँगा एक भी कतरा, गर ये फ़िर टूटा।।

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उसे दरकार थी अंधेरे में रोशनी की,
मैं अपना दिल न जलाता तो क्या करता...

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दोनों मासूम ग़लतफ़हमी का गुनाह करते रहे,
जुदा होकर दोनों पल पल तड़पते रहे,
न उन्होंने सामने से बोला न हमने बात की...
हम उन्हें रुसवा करते रहे और वो हमें बेवफा कहते रहे।

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न जाने कौन सी, ख़ता की सज़ा पा रहा हूँ,
तेरे हिस्से का प्यार भी, ख़ुद ही निभा रहा हूँ।

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