Dhiraj Singh★   (धीraj "Mūsãfír")
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Joined 20 April 2020


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29 AUG 2022 AT 22:30


आजाद है परिंदा आज ये कैसे कहे !
मोहब्बत अब भी उसे तेरी कैद पसंद है...

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10 AUG 2022 AT 7:09

किसी रोज तो मुझपर इल्जाम आए ,
तकदीरें भली हैं इनके हिस्सें भी तो कुछ काम आए ।

मैं बहता-बहता पानी रहा जिंदगी भर ,
हक से इक किनारा तो मेरे भी नाम आए ।

और झूठी तस्वीरें मैं भी बनानें लगा हूं आजकल ,
की सच्चा होने का दाग मुझपर भी तो साफ आए ।

ख़ैर थोड़ा चुप रहना ही अब पसंद मुझे तो ,
क्या पता कब गद्दारी का फरमान सरेआम आए !

और यहां ऊच-नीच,जाति-पाति में कोई भेद नहीं ,
बस चुनावों में सबका नाम तो लिखा "आवाम" आए ।

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20 JUN 2022 AT 9:54

लगे हैं घाव सबके दिलो पर जोरो से ,
भला कोई दूसरे का दर्द क्यू समझें !

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20 JUN 2022 AT 9:29

अब क्या होगा जिंदगी ?
देखा जायेगा !
ना पैसे हैं दवा के ,
ना खाने के ,
ना आने के ना जाने के ,
सिर से छत छूटा ,
और तन की सिलवटें
फट रही हैं धीरे-धीरे ,
पर फिर भी उम्मीद है
कुछ तो होगा !

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17 MAY 2022 AT 22:14

जब से पसंद की चीजें पास रखने लगा हूं ,
लोग बताने में लगे हैं मैं क्या गलत करने लगा हूं !

पसंद आना बंद हो चुका हूं मैं सबको ,
जब से उनके तरीके से हिसाब मैं भी रखने लगा हूं ।

और जब से कोई उलझन नज़र आती नही मुझमें ,
अपने कहते हैं मैं सलीका बदलने लगा हूं ।

ख़ैर कुछ रोज पहले ही शराफ़त सीखी है मैंने ,
और लोग कहते हैं आजकल मैं बिगड़ने लगा हूं ।

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17 MAY 2022 AT 22:09

बहोत वफा थी उनकी बेवफ़ाई में ,
की वो आज भी सूरतें ढूंढकर
हमें नजरंदाज किए फिरते हैं ।

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17 MAY 2022 AT 22:02

शायद इक रोज आराम मिल जाए ,
दिल को किसी रोज मुकाम मिल जाए ।

तरसती हैं आंखे आसुओं के लिए ,
इन आसुओं को शायद उनका पैगाम मिल जाए ।

अबतक किस्मतों के छलावों में बैठी हैं ये ,
की कहीं किस्मतों में वो अधूरा चांद मिल जाए ।

और कितना दर्द छुपा के रखेंगी ये अंदर ,
सोचता हूं की दर्द को तो इक रोज आराम मिल जाए ।

ख़ैर इक रोज जोर-जोर से हस के दर्द बयां करना है ,
शायद कुदारतों को मेरा ये पैग़ाम मिल जाए ।

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2 MAR 2022 AT 13:12

# यारी_दोस्ती
जो मुसाफिर अलग बैठे हैं हमसे चुनावों में ,
कभी मेरे आसुओं से सहम जाया करते थे ।

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1 MAR 2022 AT 22:11

अरे तस्वीरें तो साफ होने दो ,
दिल टूटा है सच में ये अहसास तो होने दो ।

उनकी बाहों में लिपटे-२ अब तक बीती है शामें ,
मोहब्बत इतनी बुरी है,थोड़ी बात तो होने दो ।

वैसे किए गए वादें अब भी करवटें ले रहें हैं ,
मर चुके हैं ये सब पहले ही इन्हें विश्वास तो होने दो ।

खैर उन्होंने भुलाई है तो हमें भी भूलना है ,
पर कमबख्त दवा कौन-सी है ये याद तो होने दो ?


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26 FEB 2022 AT 23:01

अब करवटें भी थकने लगी हैं ,
मेरी बेचैनियाँ संभालते-संभालते ।

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