तुम कहते हो!
बदल जाओ...
बदल जाओ...
बदल जाओ...
नहीं बदलो मुझे वर्ना रब तक शिकायत जाएगी,
गर बदला तो क़यामत से पहले क़यामत आएगी।
©️धीरज प्रताप-
आसमाँ से सितारा नहीं मांगिए,
माँझियों से किनारा नहीं मांगिए।
गर हो सूरज तो नभ में अकेले उगो,
जुगनुओं से सहारा नहीं मांगिए।
©धीरज प्रताप-
युवा ग़र संकल्प करे नया दौर शुरू कर देता है,
ज़िद पर आया तो भारत को विश्वगुरु कर देता है।
मानव जिसको गाए ऐसा गीत बनो नव छंद बनो,
उठो! हिंद के युवा जागो! और विवेकानंद बनो।
©धीरज प्रताप-
सुनो एकलव्य अगर गुरु हमें मानते हो,
वत्स तुमसे भेंट कुछ अनूठा हमें चाहिए।
गुरु द्रोण को गुरु बनाना है आसान नहीं,
दे सको जो दान तो अंगूठा हमें चाहिए।
हो गया तैयार एकलव्य दक्षिणा देने को,
मन से वो अपना भरम दूर कर दिया।
काट कर दे दिया अंगूठा गुरु दक्षिणा में,
गुरु द्रोण का घमंड चूर-चूर कर दिया।
©धीरज प्रताप-
जो देश की करे बुराई उसका अंजाम लिखेगा,
विर सैनिकों का चरण चुम सम्मान लिखेगा।
अंतिम साँसे लेता जिस्म गर पकड़े हाथ कलम हो,
तो अंत समय भी कलम से हिंन्दुस्तान लिखेगा।
©धीरज प्रताप-
उगता सूरज उगता तारा उग गया है चाँद यहाँ,
जब सत्ता से दूर हुए तो नेता हुए मतांध यहाँ।
पृथ्वीराज ने ललकारा पैदा जयचंद नहीं होगा,
सिर्फ़ तुम्हारे कह देने से भारत बंद नहीं होगा।
हलधर बंदी नहीं बुलाते ये फ़रेब भी आप का है,
जब चाहो तुम बंदी कर दो भारत तेरे बाप का है।
फूलों पर मँडराने वालों अब मकरंद नहीं होगा,
सिर्फ़ तुम्हारे कह देने से भारत बंद नहीं होगा।
©धीरज प्रताप-
सुमधुर गुंज रहा है गीत,
दिल में स्वत्व और है प्रीत।
देखो साफ़ है कितना वाट,
हुआ दीपों से जगमग घाट।
सजे हैं नदी, पोखर,तलाब,
घाट पर उमड़ा जनसैलाब।
छठ है खुशियों का त्योहार,
भास्कर! अर्घ्य करो स्वीकार।
©धीरज प्रताप-
असफलता नहीं जिनको डिगाया
जो ठोकर खाके मुस्कुरा रहे हैं
देखो लक्ष्य से है प्यार जिनको
मुसलसल मेहनत करते जा रहे हैं
©धीरज प्रताप-
स्वर्णिम था इतिहास हमारा, वर्तमान क्यों है अंधियारा?
मैं प्रचण्डतम क्रोध में आकर, पूछ रहा इस बार हूँ।
नेताओं से छला गया जो क्या मैं वही बिहार हूँ?
©धीरज प्रताप-
गीत हम गुनगुनाए यही प्यार है,
कितनी बातें बनाए यही प्यार है।
रातभर मैं जगा जिनके ख़्वाबों में था,
सामने वो न आए यही प्यार है।
©धीरज प्रताप-