Dhiraj Gupta  
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Joined 21 June 2020


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Joined 21 June 2020
9 JAN 2022 AT 22:46

नादान परिदें

चली हसीन हवाएँ भी
रहा गरम तापमान भी,
आधे रहे जमीन पर पैर
आधे रहे आसमान पर भी,
उड़ना सीख रहे थे बस हम
तीर निकल चुका कमान से भी,
जब लगा निशाना नादान "पंखों" पर हमारे
तब सिखा, जीवन जीना नहीं आसान यहाँ भी॥

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1 JAN 2022 AT 21:41

बीत गया जो साल
सिखाया उसने भी कुछ,
कुछ सुनने की सोच थी हमारी
लोगों ने सुनाया कुछ॥

आ गया नया साल
सोच है हो जाएगा सब बहाल,
रहेंगे सब खुश
क्या सच साबित हो पाएगा यह सवाल?

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21 DEC 2021 AT 22:27

देश प्रेम

जिनकी छवि बसी दिल में
शरहदो पर उनका पहरा है,
होती जहाँ भोर अनोखी
वो भी तो एक सवेरा है,
प्यार उमड़ता है उन पर
जिनका सर्वोच्च कार्य देश की सेवा है,
और कुछ नहीं चाह उनकी
देश से प्रेम कर रिश्ता बना लिया खुद से गहरा है॥

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15 DEC 2021 AT 10:06




खो सा जाता हूँ इस भीड़ में
कैसे अलग पहचान बनांऊ,
देखकर इतने कामयाब चेहरे
कैसे मैं भी नाम कमांऊ,
बातें है ये अनकही सी
गूँजती रहती मन में,
क्यों न एक बार फिर कोशिश कर
अपने सोए हुए हृदय को फिर जगांऊ॥



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13 DEC 2021 AT 14:21

संसार की इस भीड़ में
भूल बैठा तू अपनी अहमियत,
दूसरों को दोष मत दे
साफ रख अपनी नियत॥

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26 NOV 2021 AT 13:25

*जिद* हैः

मत हार-ए बदें तू
तेरे लिए भी कुछ सोचा है,
जैसे हीरे को परखता है जौहरी
भगवान ने भी तुझे वैसे ही खोजा है,
धरती पर उतारकर तुझे
अदा कर दिया अपना वचन,
पानी है अब मंजिल तुझे
चाहे आजमा तू सैकड़ों यत्न॥

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10 NOV 2021 AT 18:49

माँ को जानना कठिन है


फिक्र नहीं जिसे अपनी
भूखे पेट सुबह-शाम रहना है,
बच्चों की तकलीफों को अपनाकर
उन्हें हर दुःख खुशी से सहना है,
ध्यान न दिया जरा भी, अपने वस्त्र पर
बच्चों के लिए खरीद दिया गहना है,
होंगे भले उनके सैकड़ों नाम
हमने तो सिखा माँ ही कहना है॥

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8 NOV 2021 AT 12:45

भारत है एक

दिया है प्रतीक उजाले का
मनमोहक है सभी रंग,
लोक नृत्य से लेकर
संगीत की धमक भी है संग,
विश्व में बढ़ी रही पहचान हमारी
फैल रही अनोखी सुगंध,
उद्योग जगत से लेकर
कृषि तक है हम एक अंग,
भारत जैसा और देश कहाँ
जहाँ बिखरे हो इतने रंग॥

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2 OCT 2021 AT 8:59

जिनकी कहानियाँ सुनकर
खुल जाता मस्ती का द्वार,
सो जाता मैं वो कहानियों सुनकर
भूल जाता मैं यह संसार,
थी उनमें भी सिख
जिन्होंने पढाया जीवन का सार
जिनकी छाँव ने बचपन पाला
है उनकी कृपा अपार॥






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12 SEP 2021 AT 14:32

चाह अनोखी

तूफान तो बहुत आए
हमें पथ से भटकाने के लिए,
हमें भी लगे रहे
मंजिल को पाने के लिए,
चाह ऐसी थी, कुछ कर गुजरने की
मन था शांत सब दुःख छुपाने के लिए,
सोए हुए सपने तो नहीं होते पूरे,ये सिखाया जमाने ने
हमने भी कह दिया "शुक्रिया" जमाने से जगाने के लिए॥

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