धीरज सिंह नागवंशी   (धीरज सिंह 'तहम्मुल')
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Joined 20 March 2018


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मयख़ाना बनवाया है पे रख दी है तस्वीर तुम्हारी
मय की पूछे क्या कोई मदहोशी है तस्वीर तुम्हारी

दहशत में रहता है दिल ये हर पल बस अंजाम से अपने
क्या होगा जो जाने सब याँ रक्खी है तस्वीर तुम्हारी

क्या सूरत लेकर रू–ब–रू होंगे रोज़–ए–हश्र ख़ुदा से
सज्दे में होता हूं जब भी दिखती है तस्वीर तुम्हारी

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तुम लौट गए तो क्या होगा ?

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तुम आवाज़ दे रही हो
ये जानता हूं मैं
वो आवाज़ सुनाई भी दे रही है मुझे


( Full Piece in Caption )

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दुनिया को पागल बना रक्खा है
चेहरे पे चेहरा लगा रक्खा है

आने का इक दिन वो कह के गए
कमरे को तबसे सजा रक्खा है

ज़ेहन को ख़बर है नहीं आएंगे
दिल ने ज़ेहन को दबा रक्खा है

टूटा है दिल तो लगाओ दुबारा
क़ुदरत ने अब तक जवां रक्खा है

हर आदमी पे है ताला लगा
किसको ख़बर किसमें क्या रक्खा है

उस बात को यूं तो बरसों हुए
दिल में उसी को फंसा रक्खा है

वहां जा के कोई क्यूं आता नहीं
कुछ तो वहां पर मज़ा रक्खा है

आओ गिराते हैं दीवार को
देखें उधर क्या छुपा रक्खा है

रातों को उठना अचानक से यूं
ख्वाबों में कुछ तो बुरा रक्खा है

'तहम्मुल' नज़र में क्यूं आते नहीं
तुमने तो ख़ुद को ख़ुदा रक्खा है

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किसी से अब कोई फ़रियाद भी नहीं
मैं टूटा हूँ कितना अब याद भी नहीं

ख़ाक की ज़िंदगी गुज़ारी है मैंने
फ़िकर हो मेरी मेरे बाद भी नहीं


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दीदार तुम्हारा काफ़ी है

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तेरे रुख़ पर जो देखा तिल ज़हन में बात उभरी है
ज़माने को यक़ीं बेशक न हो चाँद में दाग़ ज़रूरी है

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सुनते हैं तुम चल पड़े अच्छी डगर पे हो
चेहरा कोई ओढ़ लो सबकी नज़र में हो

बेहूदगी आवारगी लहजा बुरा बातें ख़राब
तुम तो हर इक चाल से शहरी बहर में हो

चाँद साहिर सा दिखे है आसमाँ में उस पहर
जब वो आए सामने पे ओढ़नी भी सर पे हो

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ज़हन में ख़्वाब पे इंतिज़ार तो नहीं ?
कहीं अब भी मुझसे प्यार तो नहीं ?

क्या! हमारी याद आती है तुम्हें ?
अरे! कहीं तुम बीमार तो नहीं ?

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कह रहे हो अलविदा फ़िर कह रहे हो फ़िर मिलेंगे
हिज्र में हम ख़ाक होंगे ख़ाक से क्यों फ़िर मिलेंगे

है नहीं सूरत कोई ऐसी कि जिसमें हम मिलेंगे
फ़र्ज़ कहता है सो कहते हैं हमें वो फ़िर मिलेंगे

आपके रहमोकरम से रूह ये आज़ाद होगी
और होंगे आप मेरे सामने यों फ़िर मिलेंगे

वो सरे बाज़ार बेशक क़त्ल कर दें आबरू ही
है 'तहम्मुल' की अना ऐसी कि उन को फ़िर मिलेंगे

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