सारी दुनिया से ख़फ़ा नींद से रूठी आँखें
याद आती हैं मुझे तेरी वह सूनी आँखें
जब भी आँखों पे कभी पलकें गिराईं हमने
नींद में ख़्वाब तेरा ख़्वाब में जागी आँखें
उस बदन पर हैं दो संजीदा अलामत या'नी
दूसरी उसकी जबीं और हैं पहली आँखें
उसकी आँखों पे जो लिखना तो बस इतना लिखना
रात दिन दरिया में डूबी हुई प्यासी आँखें
जब भी खुलतीं हैं तो नज़्ज़ारे बदल जाते हैं
हाँ वही उसकी वह दो नींद में डूबी आँखें
बेशुमार आँखें हैं जिस सिम्त भी देखो लेकिन
एक भी आँख नहीं जैसी हैं उसकी आँखें
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