कुछ बातें मेहन्दी सी फितरत रखती है,
जो लगा ली तो छाप छोड़ जाती है।
कुछ बातें सिन्दूर सी बन जाती है,
जो लगा ली, जिन्दगी किसी के नाम हो जाती है।
कुछ बातों की फितरत काजल सी भी होती है,
जो लग जाये साथ जीवन भर खटक जाती है।
जो कुछ बाते बन जाती है, कँगना,
जो पहन लो वादे बन जाती है।
कुछ बाते बन जाती है, बिंदिया माथे की,
जब अभिमान नही, स्वाभिमान बन जाती है।
जो बातें बन जाये, मुस्कान चेहरे की,
जीवन मे प्रेम गोल जाती है।
जो बन जाए बातें , आंखों की शर्म
तहजीब बन जाती है।
जो हो जाए बातों का श्रृंगार,
बातें ही तो है, जीवन बन जाती है।-
With #dheeraj_orignals
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मेरा कद इतना बड़ा तो नही,
जो देश के जवानोँ को लिख सकू,
बस अर्पण है, हर एक पंक्ति,
बस चाहू में इतना, देश की जवानी लिख सकू,
नमन हर उस वीर को, भूल अपना घर,
जो देश के काम आया,
बस चाहू, हर जवानी देश की सोचे,
मैं देश के काम आ सकू,
फिर देश की जवानी लिख सकू,
करगिल हो या, हिन्द-ए-ताज
रहे बुलंद इरादे, हिंदुस्तान के,
हर नापाक कोशिश,निस्तोनाबूत कर सकू,
हर आँख जो उठे हिन्द की ओर, उसे औकात याद दिला सकू।
भूलो ना, भारत जन्मभूमि जिसकी,
सोचे हर वो जवान, हिंदुस्तान को फिर बुलंद कर सकू।-
मिले थे बैगनी शादी में जो, साथ अपना होगा सोच चले थे।
सख्सियत मै कमी हमारे भी ना थी,
देख हम दोनों को हर कोई दिल जवां हर कोई कर रहे थे।।
दिन बीते राते बीती, बदलाव ना था अन्दाज़ में,
पर ये बात में सच्चाई थी, जब तक तुमसे मिले ना थे।।
धडक़न जो थी मुँह को आया करती थी,
जब तुझसे बस नैना मिला करते थे।
हर इक कतरा जिस्म का मेरा, आह क्या कहना,
जब नाम मेरा जुबां से तेरी सूना करते थे।
साथ ज्यादा दिनों का था नही,
पर एहसास को दिलो में कहीं दबाये बैठे थे,
अब राहे तेरी अलग है, पता है कसूर तेरा भी तो नही है।
ये राहे जो मिलेंगीं जरूर किसी चौराहे पर,
हमारा शहर तेरी गलियो से कोई दूर भी तो नही है।।-
# बदलाव
जरूरी भी तो हैं बदलाव,
बढ़ते वक़्त की पहचान ही तो है बदलाव।
रिश्ते नाते, अपने पराये, जिंदगी का दर्पण ही तो हैं बदलाव,
बदलाव- हा कुछ ऐसा ही तो है बदलाव,
जो देखा पीछे मुड़ कर कितना हो गया मुजमे बदलाव,
आख़िर लाज़मी भी तो है ये बदलाव।
जो बदले मायने रिश्तों के, नतीजा ही तो है ये बदलाव,
बदलना को चाहे, श्याह अन्धियारे में खो जाना ही तो है बदलाव।।
सपने जो थे अपने, भूल आगे बढ़ जाना ही तो है बदलाव।
आखिर लाज़मी भी तो है ये बदलाव।।
जो देखी तस्वीर पुरानी, सख्सियत में ये कैसा बदलाव,
आँखे कहे पुरानी बातें, क्यो है ज़ुबा पर अब बदलाव।
जरूरी भी तो हैं बदलाव,
बढ़ते वक़्त की पहचान ही तो है बदलाव।।-
नसीब ही तो हैं परिन्दे का, हर मौसम घरौंदा बुन जाना,
बुना था जो तिनका तिनका, फिर छोड़ उसे ऊड़ जाना।
सर्दी गर्मी या बरसात, छोड़ घरौंदा ऊड़ जाना,
नई राह नये सफ़र का हो जाना।
पुरानी डाल पुराने दरख्तों को छोड़ जाना।
गलती भी तो नही परिंदे की, कौन चाहे यू रोज नई राहे जी जाना,
नसीब कहो या कहो ज़रूरत, चुगने नए राहो को जाना
तिनका हर एक जो लाया था, भर चोच में,
पीछे अपने छोड़ जाना।
ऊमीद हैं लौटूँगा जरूर, घर को यूह अलविदा कह जाना।।
परिन्दे सा है सफरनामा मेरा, लिखते लिखते यूही खो जाना,
वो गलियां, वो शहर अपना जी जाना।।
उम्मीद तो लौटूँगा जरूर, पर वक़्त कहा किसी के लिए रुक जाना।।
#अलविदा #घर-
काटे हर राह में हैं, तो क्या हर राह छोड़ चलु?
जो खोजु नई राह, काटो का दर्द नित नए समेट चलु?
जो डर कर काटो से, नई राह चलु,
ना मंज़िल पा सकू, हर राह बस काटे ही बिनता चलु।
मुक्कदर ही है राहो का मंजिलों तक पहुचाना,
पर जो मै राहो के काटो को गले लगता चलु।
हर फूल का गुरूर है, खुश्बू उसकी,
जो खुश्बू फूलो की है प्यारी माना,
कैसे में बिन लड़े काटो से, फूलो को बिनता चलु।
राते युही बदनाम है, दोस्तो
जूठी दुनिया, दिन में पले,
कैसे में सुनी रात में खुद से ही जूठ बोलता चलु।।-
बारिश की बूंद का प्रारब्ध ही है बरस जाना,
कौन बताये क़िस्मत में क्या है, किसने जाना।
गिरेगी सीप में तो बून्द को हैं, मोती बन जाना।
नदी नहर या सागर में मिल जाना।
जो हुआ गुरुर बून्द को अंत मे मिट्टि में ही मिल जाना,
कौन बताये बून्द को, आसान नही है खुद को मिटा पाना।
जो जिया जीवन अपने लिए
मकसद कुदरत का अधूरा रह जाना,
जो समेटे है बून्द शितलता अपने में,
देकर धरती को पूर्ण हो जाना।।
यही तो है अपना जीवन भी ,
अंत से लगाव छोड़ कर,
मक़सद अपना नही विश्वरूप के काम आना।-
हर दिन है एक नई शुरुआत,
जो बीत चला क्यो रोता है उसको पलट पलट के देख।
आने वाला है जो दिन,
ना तेरा है ना मेरा चाहे सपने तू हज़ार देख।
जो आज है, जो अभी है,
बस उसको तू नज़रों में देख।
हर लक्ष्य मिलेगा, हर भेद खुलेगा,
जरा आज को अर्जुन सी नज़र से तो देख।।-
तरकश में थे तेरे तीर हजार,
जेल सीने पर हम फिर भी जी जाते ,
क्यों चुना तूने शब्द बाण
हम भला कैसे बच पाते।
जो तूने चलाया गुरुर का वार
हम विनय से भी उसे कब तक काट पाते।
जो तेरी धनुष चढ़ता पैसों का पाश
जहर इस नाग पाश का हम कैसे सह पाते,
जो क्या होता भला मेरा
जो तेरे असल बाण भी मेरी ओर चल आते,
जरा सा रक्त बह जाता,
देख उसे आँसू तेरे भी कोनसे दफन रह पाते।
पर मुझे ना मालूम, तरकश को तेरे
तीर रुतबे के, गुरुर के दीमक बन तूझको खाते।
इस जंग में तेरे हर वार सहे,
फिर भी ऊमीद है दिल मे
हार जाऊ भले,
फिर वही दोस्त मेरा मुझकों मिले।
निकाल...... चला..... आज हर इक तीर,
फिर ना कोई इन तीरो को सहने वाला तुझे कोई वीर मिले।
दुआएं हैं मेरी खत्म हो तेरा तरकश
चाहें में रहूं या ना रहू,
दोस्त को मेरे इन तीरो के बोझ से आज़ादी मिले।-