रूह और बदन में बहस छिड़ी इस बात पे
कि मैंने किसको ज़्यादा अज़ाब दिये-
तू मुझसे कब
कहां और कैसे बिछड़ा
इक यही ख़्याल
जेहन में चलता रहता है
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ये झूठ है कि उसे आदत लगी थी ये भी सच कि दिल नहीं लगा था
हां बिछड़ते वक़्त चुप ज़रूर थे मगर बिछड़ना मुश्किल नहीं लगा था-
बेवक़्त आया जाया करती हैं जिस तरह
मैं शायद मुसीबत हो गया हूं उसके लिए-
तुम्हारे प्रेम की अनुभूति मेरे जीवन
के लिए सुखमय एवं सकारात्मक
रास्ते की तरह है जिस पर चलकर
मैं स्वयं को परिपूर्ण मान प्रार्थनाओं
में तुम्हारे प्रेम के कृतज्ञ को सदैव
ईश्वरीय आशीर्वाद का ही एक प्रत्यक्ष
अंश मानकर इस प्रेम पूर्ण रिश्ते को
ह्रदय से स्वीकार कर इसके लिए प्रतिबद्ध हूं ।
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तुम ज़रा से अजनबी तुम ज़रा से मेरे हो
तारों की शक्लों में यूं तुम दुआ बिखेरे हो
सच तो है कि मेरे दिल की दुनिया के तुम
नदी, तितली, पंछी, पर्वत, सूरज, सवेरे हो-
रोज मन करता है,
आज कहूँ,कल कहूँ,
फिर लगता है,
क्या कहूँ?
किससे कहूँ?
कोई सुनने वाला हो तो कहूँ.
सुन कर अनसुना कर दे, उससे क्यों कहूँ,
वो है कौन, जो उससे कहूँ,
खुद से कहना सही होगा,
खुद को सुना दूं?
ऐसा तो रोज होता है।
फिर भी,
मन करता है कुछ कहूँ..-
"इमेज - बादशाह का हुक्म"
तुम्हारी अर्थियाँ उठें मगर ये ध्यान में रहे
मेरे लिए जो है सजी वो सेज न ख़राब हो
ये बादशाह का हुक्म है और एक हुक्म ये भी है
भले कोई मरे मेरी इमेज ना ख़राब हो
सुनो ओ मेरे मंत्रियों सफ़ेदपोश संत्रियों
जहाँ मिले ज़मीन खाली रौंप दो कपास तुम
कपास मिल में डाल के बुनो सफ़ेद चादरें
गली-गली में जा के फिर ढको हर एक लाश तुम
सवाल जो करे, उसे नरक में तब तलक रखो
कहे न जब तलक मुझे कि आप लाजवाब हो
ये बादशाह का हुक्म है और एक हुक्म ये भी है
भले कोई मरे मेरी इमेज ना ख़राब हो
- Puneet Sharma
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ये इश्क़, ख़्वाहिशें , ख़्वाब
ये रात, तन्हाई, आसमां, तारे महताब
रत्ती भर बेचैनियों के ख़त मुलाकातों को
ये उड़ता दिल भी क्या बदले हालातों को
वक़्त की ज़रूरतों में जिस्मानी तलब है डूबी
ये इश्क़ है इसकी फ़कत बर्बादियां ही हैं खूबी-
ये तुम्हारी छुअन
मेरे लफ़्ज़ों पर
थपकियों की तरह है
कितनी अनकही सी लोरियां
तुम सुना जाती हो इन्हे
हर रात नींदों से पहले
और सो जाते हैं मेरे लफ़्ज़
तुम्हारी इन थपकियों और लोरियों से
जो जागे थे अब तलक
मुकम्मल नींद के लिये-