नाकामी ने मारा, तब्दिली पर भी वार हुआ
बात थी उस बागी में, जो कट के भी यलगार हुआ
कांटों की गद्दी पे, ख्वाबों का चिथड़े हाल हुआ
सिंहासन को तोड़ा उसने, गालिब का उद्धार हुआ
पत्थर बरसे लाल नदी में, स्याही सा अंधकार हुआ
कश्ती में उजियारो की ज़रिया दरियो से पार हुआ
काफ़िर सा फिरता था वो, फिर कही इज़हार हुआ
डरता था वो जिस बदी से, उस नबी से प्यार हुआ-
पूछा हमने मन से क्या मांगोगे तुम हमसे?
चांद सितारे मांगे दूजे, हम साथ तुम्हारा मांगे है
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Shunya ki diwani
Main baag hu foolo ka tum gulbago ki raani ho
Main raaz andhera banjar, tum aaftab-e-shani ho
Me shaayar hu sadiyo ka, tum nazm-e-zindagani ho
Me baahir hu maslo se, tum meri pareshani ho
Main kaafir hu rab se, tum khudabaksh nurani ho
Main vaakya hu kal ka tum aaj ki kahani ho
Main shunya se sajha hoon, tum shunya ki diwani ho-
हर ज़ख्म का मरहम है तू, हर नज़्म की सरगम है तू
तु ही तो है दिल की लगी, हर सांस में हमदम है तू
आंखों में तु, बातो में तु, चांद आसमा तारो में तू
तु ही खुमार तु ही करार है बरकरारी के प्यालों में तू
गुल आशिकी करता नही तू है सुकून तू है जुनून
तेरे सिवा कुछ भी नही, तब्दीली राते उजालों में तू
तु ही तो है खुद दिल्लगी, हरफे नबी के हवाले में तू-
लकीरे खिंच कर रखना, में राही याद आऊंगा, न कोई साथ आया था, अकेले हाथ जाऊंगा।
मुझे बेबाक भी कह लो, मुझे तुम पाक भी कह लो, खुदा न बोल पाओगे, खुदाया बन के जाऊंगा।
बना कर कब्र मेरी, मंदिरों में धुन बजा देना, दुआ से कोई काफिर मंजिलो को देख पाएगा।
शराफत की जरूरत क्या, में खुद में ही ज़लालत हूं, नवाज़ी जा चुकी नादानियों की में अदालत हूं।
बहारे रास भी आए मगर एक आस बाकी है, वो बाकी हौसले की आग का अहसास काफ़ी है।
सफर लंबा ना था मेरा, पलो को सींच रक्खा है, ज़ख़म भी रास ना आया, कफन को ठीक रक्खा है।
रखोगे क्या रज़ा तुम वक्त के चंचल थपेड़ों की, इन्हीं गहराइयों में हमने डर को जीत रक्खा है।-
ज़माने भर की चिंगारी तुम्ही से थी तुम्ही से है,
दिल-ए-नादां ये बीमारी तुम्ही से थी तुम्ही से है,
कफन तक साथ दो मेरा, ओ मेरे आशिक़ ए हमदम
रिहाई की जो तैयारी, तुम्ही से थी तुम्ही से है।
खुदा माना वफाओं से, तुम्हे मांगा खुदाओ से
मिले न तुम, ना मेरा अक्स, मिली मंजिल फिजाओं से
इबादत और चाहत में तुम्हारी आरजू ले कर,
में हाजिर हूं, रहूंगा में, तुम्हारे संग दुआओं से— % &-
अलग में आग में मिल कर सबब के साथ में खिल कर
वही में राग हूं काफी रहूंगा राख में दिलबर
समा को खौफ था शायद में पागल में अजायब हूं
खुले आकाश ने तोड़ा तराना ताल से दिनकर
शराबों की थी बीमारी शराबी ही को होती थी
मिलावट थी जो पानी की मिली बेहाल में पीकर
गरीबों की गरीबी से मिटी मंदिर की रेखाएं
अमीरों की अमीरी ने मिटाया खुद नबी का घर
वो गोरे थे या काले क्या करोगे जानकर गालिब
अमूमन लाल है अंदर सभी बाहिर से है बंदर
किताबी इल्म को पढ़ना कभी बंधन से बाहिर था
अभी बंधन है वो इल्मे सितम को जानना बहेतर-
राज़ कई थे आंखो मे, निंदिया बन के रह गए
बाकी टूटे फूटे रिश्ते, दरिया बन के बह गए।
नांव बनाए बैठा रिश्ता, लहरों के गलियारों में
बाग में मेरे सपनो के वो कलिया बन के रह गए।
साधारण में सादर सा, मे भवसागर में गागर सा
बाधा भी निवारण भी मे दीवाना में पागल सा।
में दुर्वादल के बंजर सा, दलदल के काफी अंदर सा
मीठी छुरियां गांव की शहरो के तीखे खंजर सा।-
આજ મને અંદર થયું, કંઈ સપના માં મે જોયુ તું
આંખો જેવી પાંખો પર જે ટાઢે તડકે રોંયું તું
સાબર બની શિંગડા ભર્યા બાવળ બની ઝંઝોડ્યું તું
અંતિમ શ્વાસે અંજળપાણી કાંટાઓ માં કોર્યું તું
બીજાં મને ભલે મળે, માં નો મહેરામણ ના જળે
બાપુ ભલે બોલે નહિ, આંખો થી આંસુ ના સરે
સાજા ભલે ને સંજોગો મે અંદરખાને બોલ્યું તું
અગનકન્યા અવતરી ને જળરાજા ને ના વરે
આ વાતો ની અલગારી છે, થોડી ઘણી એ મારી છે
બાકી બચે એ શૂન્ય નથી, કે શુન્યાંકિત શણગારી છે
આ ખાલી શાખ ફલાફલ દેશે, કાપી દઉં જે સારી છે
આખી રાત દીધી મંથન માં, બાકી બસ બીમારી છે-
आस रखी थी अंबर की, बंजर मिल गई सोने में
आंख खुली, पानी बहा, हरियाली बिछौने में
टुकड़ों पे पलता था में, अब में ही पालनकर्ता हूं
पहले डरता था शब्दों से, अब लफ्जों से लड़ता हूं-