लिखी थी एक कहानी,किसे पता था एक दिन लोग उसेहमारी मोहब्बत की दास्तां कहेंगे..~ धरा -
लिखी थी एक कहानी,किसे पता था एक दिन लोग उसेहमारी मोहब्बत की दास्तां कहेंगे..~ धरा
-
शिकायत नहीं है तुमसे, कसूर तो हमारा हैतुम चाहते थे ख़ुदा, और हम इन्सान निकले..~ धरा -
शिकायत नहीं है तुमसे, कसूर तो हमारा हैतुम चाहते थे ख़ुदा, और हम इन्सान निकले..~ धरा
अक्सर इस दुनिया की भीड़ में,बस कुछ अपनों नेहाथ थाम रखा है..~ धरा -
अक्सर इस दुनिया की भीड़ में,बस कुछ अपनों नेहाथ थाम रखा है..~ धरा
क्या सच है, क्या झूठ कौन जानता है दर्द भरी निगाहों के भीतरआख़िर कौन झाँकता हैहर गुस्से के पीछे छुपावो दर्द कौन पहचानता हैकहते तो सब है कि प्यार है,पर कितना सच है ये कौन जानता है मेरी आँखों की नमी को भांप न सके मेरी रूह को वो क्या जानता है आख़िर, क्या सच है क्या झूठ ये कौन जानता है....~ धरा -
क्या सच है, क्या झूठ कौन जानता है दर्द भरी निगाहों के भीतरआख़िर कौन झाँकता हैहर गुस्से के पीछे छुपावो दर्द कौन पहचानता हैकहते तो सब है कि प्यार है,पर कितना सच है ये कौन जानता है मेरी आँखों की नमी को भांप न सके मेरी रूह को वो क्या जानता है आख़िर, क्या सच है क्या झूठ ये कौन जानता है....~ धरा
कोई नहीं समझतामन के भीतर के उस घम को,बाहरी क्रोध को सबने,मेरा स्वभाव समझ लिया..~ धरा -
कोई नहीं समझतामन के भीतर के उस घम को,बाहरी क्रोध को सबने,मेरा स्वभाव समझ लिया..~ धरा
ये जो तुम हर बात पर झूठ कहते हो ना, असल में,यही तुम्हारी सच्चाई दिखती है..~ धरा -
ये जो तुम हर बात पर झूठ कहते हो ना, असल में,यही तुम्हारी सच्चाई दिखती है..~ धरा
इस कदर,के अपना सन्नाटा भी अब मुझे नहीं भाता..~ धरा -
इस कदर,के अपना सन्नाटा भी अब मुझे नहीं भाता..~ धरा
के उनकी नज़र में तो तुम,कभी सही थे ही नहीं....~ धरा -
के उनकी नज़र में तो तुम,कभी सही थे ही नहीं....~ धरा
तुम समझ न सके,और हम कह नहीं पाए..~ धरा -
तुम समझ न सके,और हम कह नहीं पाए..~ धरा
के न मिली अगर मंज़िल तो दुःख न करना,शायद तेरे हरी कीयही मर्ज़ी होगी..~ धरा -
के न मिली अगर मंज़िल तो दुःख न करना,शायद तेरे हरी कीयही मर्ज़ी होगी..~ धरा