कभी सुकुन से बैठने की सोच रहा था मैं....
पर जब कभी सोचता हु कुछ और काम याद आ जाता है
और सुकुन से बैठने की इच्छा फिर कभी पूरी कर लेंगे,
ये सोच कर मुस्कुरा जाता हु में;
सालो बीत गए लेकिन अब समझा हु में ’सुकुन’ तो अपने अंदर होना जरूरी है, इसे तो बेवजह बाहर खोज रहा था मैं.....
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