धारा-लेखन   (Kumar Santosh 🌹)
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Joined 19 June 2020


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ज़रूर थोड़ा ख़फ़ा है तूं, मुझसे मिलने को मगर बेकरार तो है🌹
रूमूज़-ए-इज़हार कर या ना कर, मुझसे बे इंतहा प्यार तो है🌹

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बहुत टूटा बहुत बिखरा "मंज़िल की चाहत ने उठना सिखाया🌹
के मंज़र हवाओं का आसान था कहां बस गिराया ही गिराया🌹

उम्मीद थी बड़ी के थाम ले हाथ मेरा कोई बिगड़ते हालातों में🌹
के फ़िर वो लौट के "महबूब" मेरा, वो मेरा जान-ए-मन आया🌹

बहुत टूटा बहुत बिखरा "मंज़िल की चाहत ने उठना सिखाया🌹
के मंज़र हवाओं का आसान था कहां बस गिराया ही गिराया🌹

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के अबस ही जुदाई की फ़िक्र में तेरी ये आँखें भीग जाती है🌹
मत भूल के तेरी करीबियों से ही, मेरी ज़िंदगी मुस्कुराती है🌹

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के हम है विश्व "चैंपियन, ये हिंदुस्तान है🌹
दूर रहो तुम, ये हमारी आन बान शान है🌹

Congratulations India 🏏🏏🏏🏏

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🌹 🌹
कभी जुदाई सताती है कभी तूंँ रुलाती है🌹
के यादों के समंदर में आँखें भीग जाती है🌹

मैं हर लम्हा तुझमें ही खोया रहता हूंँ 🌹
अफसोस है के तूंँ भूल जाती हैं 🌹

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हर लम्हा मसरूफ़ तुझमें, मेरे ख़्वाबों में तूंँ मुस्कुराती है🌹
तूंँ सामने रहे हरदम मेरे, मेरी सांँसे तुझे ही गुनगुनाती है🌹

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वो तो बड़ा मशगूल था ख़ुद के उसूलों में ख़ुद के गुमान में🌹
के छोड़ कर सब फिर करेगा क्या, अकेला इस जहान में🌹

थाम ले दर्द-ए-ग़म' के आलम में हाथ, वो साथ ना दिया🌹
कौन करेगा फिर रौशन शमां तेरी वीरानियों के मकान में🌹

वो तो बड़ा मशगूल था ख़ुद के उसूलों में ख़ुद के गुमान में🌹
के छोड़ कर सब फिर करेगा क्या, अकेला इस जहान में🌹

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भुला फ़साना कोई अफसोस के अब भी लबों पर ना आ पाया🌹
ना वो समझ पाया मुझे ना मैं दिल का सूरत ए हाल सुना पाया🌹

अरमानों को कर के दफ़न सीने में ये किस राह पर निकल गया🌹
ना रौशन हुई कायनात मेरी ना अंधेरों में चराग़ों को जला पाया🌹

मेरे मासूम मिज़ाज की कदर थी ही नहीं किसी को मेरे दोस्त🌹
ना ख़त्म हुई सांँसे तकलीफ़ में, ना दर्द ए ग़मों को भुला पाया🌹

भुला फ़साना कोई अफसोस के अब भी लबों पर ना आ पाया🌹
ना वो समझ पाया मुझे ना मैं दिल का सूरत ए हाल सुना पाया🌹

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के कब का ही गुज़र जाता मैं, दर्दों के लम्हों में जीते-जीते🌹
तुमसे ही थोड़ा जीना आया जांँ, बाद ज़ख्मों को सीते-सीते🌹

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तूंँ "क़रीब" आए मेरे मुमकिन है के बे इंतेहा प्यार करूंँ🌹
हम-आग़ोश में खो सा गया तुझमें कैसे मैं दीदार करूंँ🌹

ये पल भर की दूरी भी सहना अब गवारा नहीं संतोष🌹
तूंँ है मेरे दिल की धड़कन, कैसे हिज़्र की 'दीवार करूंँ🌹

निकल कर ख़्वाबों की दुनिया से, हक़ीक़त बनाया है🌹
आ सिमट जा मुझमें ए जां के 'इश्क़ का इज़हार करूं🌹

तूंँ "क़रीब" आए मेरे मुमकिन है के बे इंतेहा प्यार करूंँ🌹
हम-आग़ोश में खो सा गया तुझमें कैसे मैं दीदार करूंँ🌹

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