धामी सर   (भगवान)
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Joined 27 January 2019


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Joined 27 January 2019
9 NOV 2021 AT 6:16

खटीमा, मसूरी, नैनीताल, पौड़ी
या हो रामपुर का तिराहा
जाने कितनी ही जगहों पर 
मेरे बच्चों ने कराहा।

21th Birth Day Uttarakhand

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6 OCT 2021 AT 5:13

उत्तर में महान हिमाल है, उसमें हिमवीरों का कमाल है,
   दृढ़ कर्म निष्ठता का सवाल है, शौर्यता की ढाल है,
      बर्फ पड़ी निढाल है, उसमें चीते सी चाल है।
घर परिवार को रख किनारे, शीत में कटता पूरा साल है।
   देश के लिए हीर है तो हम ही रांझे की तस्वीर है।
शीत ही नदियां, शीत ही घर, शीत ही रहता नीर है,
सीमा पर डटे रहते हमेशा भा.ति.सी.पु. के वीर है,
    आपदा के महावीर है, फौलादी शरीर है,
 पर्वत को देते चीर है, सीमा सुरक्षा की नजीर है,
   बर्फ के राहगीर है, गर्म हमारी तासीर है।
  कभी अधीर शौर्य है, कभी धैर्य की अजमाइश है,
मुखिया अब तक पैंतीस हुए है, बासठ की पैदाइश है।

       अशांति में अधीर है, शांति में कबीर है,
  सीमा पर डटे रहते हमेशा हिमवीर है, हिमवीर है।

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21 JUL 2021 AT 11:40

न्यून ब अन्यून चाईं,
दुगुन ब तिगुन चाईं,
आब हमुकें भू-कानून चाईं।

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9 MAY 2021 AT 18:46

शहर में ही है ये बंदी यारों गाँव अब भी आज़ाद हैं,
दम घोटने को आमादा है इस शहर की हवा अब,
जो बच रहें हैं समझो वो अपवाद है।

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1 MAY 2021 AT 8:29

कल भी साख में था, आज भी हूँ, कल भी साख में ही रहूंगा।

मजदूर हूँ साहब पत्ते कोई और चरेगा, फल कोई और खायेगा,
यही चलता है, यही चलता रहेगा मेरे हिस्से शाख थी मैं शाख में ही रहूंगा।

वजह चाहे जो भी हो दुकानें सजे या लुटे मैं कल भी ताख में था, आज भी हूँ, और शायद कल भी ताख में रहूंगा।

चाहे गिनती हो रही हो लाखों, करोड़ों मरने वालों की जहाँ में हर तरफ,
भूख से मरने वाला राख में गिना जाता था, राख में है और राख में ही रहेगा।

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4 SEP 2020 AT 7:13

मैं क्यों न आँसू बहाऊँ.?
जिस रोज अकेला पड़ जाऊँ,
फिकर किसे खाऊं या बिन खाये सो जाऊँ.

देर सबेर घर से निकलूँ, घर आऊँ,
तिबारी में झाँकता सिर न पाऊँ,

अंधेरा जरा बढ़ जाये, दाज्यू घर न आये,
समय हो जब खाने का धाद किसे लगाऊँ,

दूर कहीं से आऊँ, न छांछ, न छांव पाऊँ,
वैसी ही लाड़ भरी नजरें कहाँ से मैं लाऊँ,

गाँव जाऊँ, बल्द-गोरु तो फिर से पालूं,
फेरते न रहना गोरुं को पानी पिला देना, 
वो गरजती आवाज़ कहाँ से लाऊँ.?

रंगीन दुनिया में सब तरह के लोग हैं ईजा,
झुकी कमर, मोटा चश्मा, थकी हुई सांसे,
उस खुदा को कैसे भूल जाऊँ,

मैं क्यों न आँसू बहाऊँ?

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4 SEP 2020 AT 6:41

1. देश डूब रहा है!

2. अरे तो डूबने दे, देश ही तो है, मेरी जात और मेरी धरम का तो नहीं कोई।

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4 SEP 2020 AT 5:28

भाव शून्यता भी एक भाव है,
मां का न होना भी एक घाव है,
तू न समझेगा भगवान इसे जाने दे,
तेरे सर पर मां की छांव है,

#8th

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19 AUG 2020 AT 7:46

जाने किस फ़िराक़ में हैं दुनिया भगवान,
दोस्ती के लिए भी जात एक चाहिए...

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30 JUL 2020 AT 10:37

बेड़ी हुई रस्म और फंदा रिवाज बन गया,

तोड़ दो बेड़ियाँ आज़ाद हो जाओ,

आँखों में धूल पड़ी और गन्दा समाज बन गया।

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