Dewanshu Dwivedi   (देव शिवम)
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Joined 28 March 2018


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Joined 28 March 2018
29 APR AT 20:28

खुली आँखों के सपनें,
आकांक्षाओं का चेहरा,
कुछ करने की चाहत,
और नतीजे मिलने की उम्मीद |

कुछ सच होते हैं,
बाकि समय की रबर से मिट जाते हैं |

मृगमारीचिका की उलझन
में फंसे ये सपने,
कभी रेगिस्तान में रेत की तरह
आसानी से मिल जाते हैं |

पर सपनों की ट्रैकिंग में,
कभी लक्ष्य की पहाड़ी,
निकट दिखकर भी
बहुत दूर हो जाती है |

छोटे सपने, बड़े सपने,
जीवन के लक्ष्य वाले सपने,
मेरे - तुम्हारे - हमारे,
सारी मानवता के सपने |

वक्त का पहरा हमेशा लगा रहता है इनपर,
ज्यादा चुलबुलाहट की और नतीजा सिफर |

फिर इनसे समझौता होता है,
सपने का दायरा कुछ छोटा होता है |

इनके स्वरूप में परिवर्तन,
काल - परिस्थितियों के अनुरूप होता है |

पंछी बन उड़ने की तमन्ना पाले हम,
दौड़ने की आजमाइश में जा ठहरते हैं |

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25 APR AT 16:28

जो लिखी थी मैंने
लगभग दस बरस पहले ।

अपने पैर के ऑपरेशन के वक्त
खुद को ही हिम्मत बंधाने को ।

भगवान के नाम स्तुति थी उसमें
मुझमें तकलीफ सहने की ताकत दिलाने को ।

साथ ही डॉक्टरी पेशे की प्रशंसा की थी,
क्योंकि वही तो मेरी बेहतरी के माध्यम थे ।

अपने परिवार और स्नेहीजन का
आभार भी व्यक्त किया था मैंने उसी कविता में ।

वह पन्ना आज भी सुरक्षित है
मेरी लेखनी के छाप सहित,
डिजिटल जमाने में भी प्रेरणा तो
हस्तलिखित पंक्तियों से ही मिलती है ।

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24 APR AT 23:37

बोलो प्रिये

जो मैं बालकनी पर बैठकर
चंद्रमा को देख रहा हूं।

तुम कहो तो
कल्पना की पूंजी लगाकर
आसमान से इन्हें तोड़ लाने का
झूठा वादा करूं
या
तुम कहो तो
वास्तविकता के धरातल पर चलकर
तुम्हारे सौंदर्य का नख शिख बखान
अपनी कलम को कहता चलूं ।

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21 APR AT 21:47

महसूस होता है मुझे,
कभी किसी से बेहतर
कहीं किसी से कमतर ।

ऐसी ही अपनी ये जिंदगानी
तजुर्बों की नाप लेती चलती है ।
पर
'बुरा जो देखन मैं चला' कहकर
जैसे खुद की बुराईयां देखने
की समझाइश कबीर देते हैं,

वैसे ही खुद की भलाई देखने को भी
कुछ वक्त खुद को देना चाहिए ।
इस भूलोक में अपने होने की सार्थकता
स्वयं के मूल्यांकन से भी मापना चाहिए ।

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20 APR AT 19:29

अच्छा लगता है,
शाम को छत में बैठकर 
सूरज की पूर्ण विदाई के बाद
चांद के जवां होते रूप को
बादलों में छुपते और निकलते हुए देखना ।

और अच्छा लगता है,
दिन वाली गरमागरम हवा
जब शाम को थोड़ा उदार होकर
किसी की यादों सी
मिश्रित अनुभूति देती चलने लगती है ।

और अच्छा लगता है,
इस विचार से कि 
आज का दिन बीत गया है
और अब अपनी ऊर्जा को
स्टैंड बाई में रखकर
दार्शनिकता में खोने को समय मिला है ।

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15 APR AT 23:09

अपनी ही पुरानी तस्वीरें देखकर,
मंत्रमुग्ध हो जाया करता हूं मैं कभी ।

जाने खुद को निहारना पसंद है या,
यादों की सींच पड़ने से मुस्कुराता हूं ।

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12 APR AT 22:50

बत्ती गुल
और मौसम खुशनुमा,

बस तुम ही हो
इस वक्त साथ मेरे,

गर बाहर नहीं तो
मुझमें ही कहीं ।

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11 APR AT 0:02

चलो प्रिये 
चलें हम कहीं भ्रमण पर,

मौसम ने भी
बादलों को गरजाकर
तीखी गर्मी के मौसम को
प्यारी ठंड में बदल दिया है ।

चलो अब हम 
अपने पैरों की चाल को,
बातों की गति से मिलाकर
स्मृतियों की कहानी बनाते चलते हैं ।

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6 APR AT 22:51

चीख - आर्तनाद - पुकार -
मुझे छोड़ दो, मुझे सोना है |
इन अँधेरी गलियों में,
जहाँ तुम्हारा काला चेहरा, उजले कोट में छिप जाता है |

पर मैं चीत्कार उठती हूँ,
तुम्हारे बदन से आती बजबजाती बदबू से |

पहरेदार के मुंह में रुपये ठूंस, आरक्षित कर ली है तुमने मेरी शैय्या |
वो उगलेगा पैसे शराब की उल्टी में, और तुम घर जाकर संस्कारी बन जाओगे |

पर मैं तो कई रातों से जाग रही हूँ, दिन भी मेरे अमावस से घिरे हैं |
सो जाने दो मुझे,
कितना अरसा हो गया, किसी आदमजात से बात किये |

अब तो बस दलाल और,
हड्डी चबाने वाले खरीददार ही दिखते हैं |
मैं बहुत थकी हुई हूँ,
देखो मेरा बदन तप रहा है, यूँ मेरा चद्दर तो न छीनो |

तुम्हारे जुकाम पर तो,
घर वाले डॉक्टर को कहीं से भी बुला लाते हैं |
पर मुझे कौन बचाएगा, कैसा घर, किसका परिवार |

अपने कपडे बेंच - बेंच कर भी,
कभी मन की मलाई नहीं खा पाती हूँ |
तो मेंरी दवाई पर न जाने,
कितने घावों का खर्चा आएगा |

जो भी हो तुम, आज मुझे सो लेने दो,
जी भर कर सो लेने दो
बस मुझे सो लेने दो ।

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2 APR AT 20:08

जाने क्यों मेरे यूट्यूब प्लेलिस्ट में,
ज्ञानवर्धक वीडियोज वॉच लेटर लिस्ट में रह जाते हैं
और टाइमपास वाले वाचिंग हिस्ट्री बनाते चले जाते हैं ।
🤔😁

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