चीख - आर्तनाद - पुकार -
मुझे छोड़ दो, मुझे सोना है |
इन अँधेरी गलियों में,
जहाँ तुम्हारा काला चेहरा, उजले कोट में छिप जाता है |
पर मैं चीत्कार उठती हूँ,
तुम्हारे बदन से आती बजबजाती बदबू से |
पहरेदार के मुंह में रुपये ठूंस, आरक्षित कर ली है तुमने मेरी शैय्या |
वो उगलेगा पैसे शराब की उल्टी में, और तुम घर जाकर संस्कारी बन जाओगे |
पर मैं तो कई रातों से जाग रही हूँ, दिन भी मेरे अमावस से घिरे हैं |
सो जाने दो मुझे,
कितना अरसा हो गया, किसी आदमजात से बात किये |
अब तो बस दलाल और,
हड्डी चबाने वाले खरीददार ही दिखते हैं |
मैं बहुत थकी हुई हूँ,
देखो मेरा बदन तप रहा है, यूँ मेरा चद्दर तो न छीनो |
तुम्हारे जुकाम पर तो,
घर वाले डॉक्टर को कहीं से भी बुला लाते हैं |
पर मुझे कौन बचाएगा, कैसा घर, किसका परिवार |
अपने कपडे बेंच - बेंच कर भी,
कभी मन की मलाई नहीं खा पाती हूँ |
तो मेंरी दवाई पर न जाने,
कितने घावों का खर्चा आएगा |
जो भी हो तुम, आज मुझे सो लेने दो,
जी भर कर सो लेने दो
बस मुझे सो लेने दो ।
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