Devyani Gurnani  
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Joined 13 June 2021


Joined 13 June 2021
28 FEB 2022 AT 12:42

अब भी जब आज पर पड़ती हैं,
वहीं पुरानी चीज़े फिर दोहराई-सी लगती हैं!
कहने को तो हम सब आगे बड़ जाते हैं, पर यादों की झलक जब आती हैं,हमें फिर वहीं ले जाती हैं!
धूप से बचने की चाह में...हम फिर छाव को ढूंढते हैं,अपनी खोज से फिर हम उसी अंधेरे में जाते हैं!!
और फिर अपने वर्तमान में हम खुद-ही अतीत को ले आते हैं।।

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28 FEB 2022 AT 1:15

मां तू इतनी भोली क्यों हैं,गम्भीरताओं के किस्सों में तो छोटी-सी क्यों हैं! ममता के आंचल में तो तू सबको पीछे छोड़ जाती हैं,तो संसार के इस चक्रव्यूह में तू बार-बार क्यों फंस जाती हैं ! सबके किस्सों का एक नायाब हिस्सा कहलाती हैं,पर बात जब खुदकी आती हैं तो क्यों भोली पड़ जाती हैं! समझदारीयों के आंगन का हमें चिराग बताती हैं,पर बात जब तेरी खुदकी आती हैं तो तू क्यों पीछे हट जाती हैं! अपने बच्चों को,तो तू नयी राह दिखाती हैं,फिर खुदके सारे सपनों को क्यों दबा ले जाती हैं,अपनी बात आने पर तू क्यों भोली पड़ जाती हैं!अपनी इच्छाएं भूलाकर तू हमें उड़ना सिखाती हैं,खुद-के-खातिर तो तू चलना ही भूल जाती हैं....
" पर अफ़सोस इतना समझने के बाद-भी 'हम मासूमों से'----'एक भोली मां' संभाली नहीं जाती हैं!!!
और तू मां एक नहीं बल्कि सारी दुनिया के बच्चों को अपना बच्चा बताती हैं, 'आखिर इतनी ममता तू कहां-से लाती हैं'।।" :)

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25 FEB 2022 AT 21:07

अपनों से अपनों का युद्ध...जारी हैं !
तभी शायद इस कलयुग में आज-भी...
'रामायण' से ज्यादा 'महाभारत' भारी हैं :)

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22 JAN 2022 AT 1:32

मेरी लड़ाई नहीं हैं किसीसे,
फिर भी उलझ जाती हू मैं सभीसे,
निवारण भी खोजती हू मैं खुदीसे,
फिर भी जवाब मांगती हू तुझीसे।।
बताओ कौन हूं मैं?

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20 JAN 2022 AT 19:40

तुम आती रहना,ज़रा अपना भी दर्द सुनाती रहना!
अपना भी सुख-दुख बताती रहना तुम अपना मन भी बहलाती रहना....उदास होती हो तुम भी जब पूरी नहीं हो पाती हो, कहीं-न-कहीं किसी मोड़ पर अधूरी ही रह जाती हों...कही बिखर तो कही निखर भी जाती हों,,,बहुत-सी परेशानियों से अकेले ही लड़ जाती हों फिर-भी हर पल मुस्काती हों, इतनी तकलीफ़ों के बाद भी एक आवाज़ पे चली आती हों,तभी शायद हर जंग में विजय-ही कहलाती हों।। :)
--Devyani Gurnani

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20 JAN 2022 AT 19:12

अब इस ज़माने का,
दिल तोड़ ही देता हैं ये...हर आशियाने का!
बहुत मुश्क़िलों से भरोसे की इमारतें खड़ी होती हैं,,
कमबख्त ये गलतफ़हमीयों की बाढ़ उसे भी तबाह कर... खुश हो रही होती हैं!! :)

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19 JAN 2022 AT 0:04

तब-तब तूने मुझे उससे ज्यादा ही दिया
हर घूट जैसे मैंने वक्त का पिया,
तो ऐ-खुदा तूने मुझे अपनी गोद में मोती सा सिया...
अब इससे ज्यादा तुझसे मांगू भी तो क्या मांगू!!!
पिता जैसा साया बनकर तूने मुझे हर मोड़ पे हैं जिया,
तो अपना ही अक्ष तूने मुझे मां के रूप में दे दिया :)


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7 JAN 2022 AT 23:42

तो कुछ पल ठहरना और गुफ्तगू करना,
कुछ मेरी सुनना तो बहुत अपनी भी सुना जाना, ऐ-ज़िदगी कभी मेरे पास भी आ जाना...
बहुत थकी-थकी सी लगती हैं तू भी,अपने सफर में,,
चल आज तुझसे तेरी मुलाकात कराते हैं,कुछ हसीन से ख्वाब तूझे भी दिखाते हैं... सबके अपने-अपने पलों की राज़ है तू,,तब भी सबकी सुनहरी ताज हैं तू! जिसे कोई ठीक से सुन नहीं पाता वो आवाज़ हैं तू! किसी की नयी सुबह तो किसी की यादों वाली रात हैं तू! बहुत से ना-उम्मीदों के सफर में आने वाली उम्मीद का मकाम हैं तू! सबकी अपनी-अपनी खुशियों वाली शाम हैं तू! :)

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6 DEC 2021 AT 1:13

गर...तो गिर-उठ और फिर चल,,,
जिंदगी एक जंग-ए-मैदान ही तो हैं।
थोड़ा गुनगुना,मुस्कुरा और फिर दौड़,,,
ठीक से देख ये तेरे आशा-का-मैदान ही तो हैं।
चल अब खुश भी हो जा यार,,,
ये उस खुदा का तेरे लिए पैगाम ही तो हैं।
तो क्या हुआ अगर सफर में कुछ चोटे लग भी गयी तो,,,
तेरी मां की दुआएं भी तेरी मंजिल तक पहुँचने का मुकाम ही तो हैं :)

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3 DEC 2021 AT 23:00

जिनका मानना ये हैं की....उनकी रेलगाड़ी अनन्त पर रूक गयी हैं,तो वो ये जान लें,,,,
की हां अगर अनन्त को गिनती का रूप दिया गया हैं और उसकी सीमा निश्चित कर दी हैं इसलिए शायद रेल रूकी लग रहीं हैं,,,,
अनन्त में कभी कुछ रूक-ही नहीं सकता,,बस चलता-ही-जाता हैं...क्योंकि अनन्त का कोई अंत-ही नहीं बना तभी वो अनन्त है,,,रूकना अनन्त में नहीं किन्तु अंत में ज़रूर हैं ।।

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