Devraj Dhankar   (देवचंद"देवराज"धनकर)
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Joined 3 November 2022


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20 AUG AT 22:10

तुम्हे प्रिय कहूं
या ओझल होते मन
तुम्हे अहसास में रचू
या रचू स्वयं के भ्रम
तुम्हे मोह कहूं
या कहूं स्वयं का तन

......."""देव"""......
Be continue...

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18 JUL AT 13:28

10 बरसों बाद गांव पूर्णतः आया तो पता चला
गांव अब गांव न रहा
शहर ही अच्छा था।

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8 JUL AT 21:38

मेरा सवाल रहा गया
कुछ अनसुलझे रिश्तों में
पगडंडियों के उतार चढ़ाव में
कुछ अनसुलझे पहलू में
रहस्य जो था वहीं सवाल था
मगर सवाल अंत तक
सवाल ही रहा गया..,??

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8 JUL AT 21:34

मेरा सवाल रहा गया
कुछ अनसुलझे रिश्तों में
पगडंडियों के उतार चढ़ाव में
कुछ अनसुलझे पहलू में
रहस्य जो था वहीं सवाल था
मगर सवाल अंत तक
सवाल ही रहा गया..,??

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8 JUL AT 21:33

मेरा सवाल रहा गया
कुछ अनसुलझे रिश्तों में
पगडंडियों के उतार चढ़ाव में
कुछ अनसुलझे पहलू में
रहस्य जो था वहीं सवाल था
मगर सवाल अंत तक
सवाल ही रहा गया..,??

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8 JUL AT 21:17

जो पढ़ा है उसे जीना ही नहीं है मुमकिन
ज़िंदगी को मैं किताबों से अलग रखता हूँ।
खड़ा हूँ आज भी रोटी के चार हर्फ़ लिए
सवाल ये है किताबों ने क्या दिया मुझ को।

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6 JUL AT 12:21

बिहनिया के बेरा उगे हे सुकवा
असाढ़ के बरखा माटी महकत हे
धर संगी कुदारी रापा डोली कोती जाबो
नांगर के नास ल माटी में नवाबो
धान पान ल बोके करम के फल ल पाबो

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4 JUL AT 11:29

सुघ्घर सावन के बेरा आगे
खेती डोली हरियार रंग म छागे
नदिया नरवा चिरई चुरगुन
परकृति के संग म रंगा गे।।

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27 JUN AT 0:26

कितनी "अफवाहें" उड़ी
कितनी बनाई जा रही हैं
बात तो "ध्यान" से सुनो
बात क्या कही जा रही हैं

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27 JUN AT 0:24

परीक्षा जीवन की खूबसूरत
रंगमंच हैं
और हम इस रंग के कलाकार
चलो यात्रा करे..

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