अरे! कायरो तुमने धर्म पूछ ललकारा था
धर्म नहीं हम अधार्मिक से लड़ने आए है
अब पवन भेदी ललकार सुनो
वायु में गरजते हमारे विमान सुनो
पाक की सरजमी में हिंदुस्थान सुनो
तुम क्या युद्ध करोगे कायरो
हमारा विश्व में जयजयकारा सुनो....
........................... जय हिंद..जय भारत
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अनुभव और कल्पनाओं दोनों को जोड़ने की
चाह ने आप... read more
पुन: आरंभ के लिए
क्या क्या नही खोए
आयेंगे फिर लौट
उड़ता परिंदा
अब तलक घर नहीं खोया-
आपका हीरो कही हार गया
तब क्या करेगा...?
इंतजार
कही वह सही मौके के
तलाश में है तब
वह समय "यही" है।।-
स्वयं की युद्ध है
स्वयं से ही लड़ना हैं
हार जीत से पहले
अपने सफर में रहना है
पथिक भी पागल है
सागर में फंसे है
मगर साहस बना कर
अंत तक चलना है....
"देव"अपने_तक
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मैं कभी अपने सफर को नही लिखा
हर बार हार जीत के द्वंद में
जीवन को लिखते गया,,,लेकिन अनुभव
और विचारों के बीच में
अपने प्रिय को खोते गया हूं।
लेकिन कुछ यार आज भी मुझे और मेरे
अकेलेपन के सफर में साथ है
इसीलिए मैंने लिखा सफर मे सादगी
और आवारापन में आज जारी हैं-
मैं हर बार किताबों से प्रेम किया
लेकिन, जो ज्यादा पढ़ लिख
कर तर्क करना सीखेगा उससे नॉर्मल
लोग लगाव में नही रह सकता-
दार्शनिक होना और लिखना
तर्क वितर्क की स्थिति में
फिर लिखे हुए को मिटाना
क्योंकि विचार में बदलाव होना
फिर अंतर्द्वंद में उलझन
फिर मिट गए पंक्ति के सुधार
में स्वयं के विचारो को ढूंढना
अजीब दास्तान ये चलते ही रहेगी....
अपने_तक
"देव"
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मैं तो हमेशा ही यहीं ठहरा रहा,
तुम्हारे लौटने की प्रतीक्षा में,
किसी का न रहा...!
ये दूरियां किस बात की थी
जो नही है उसे सोच कर
की फिर लौटने का मन नही रहा
कुछ किस्से जो पूरे नही है
यही सोच मन में लाकर जाना था
न तुम मेरी अब तक हो सकी,
ना मैं खुद का ही रहा गया
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आशाएं धूमिल होगी
रास्ते में उम्मीद टूटेगी
आलोचना आमबात होगी
फिर आप क्या करोगे..?
उत्तर क्या दोगे
क्या फिर प्रयास करोगे
क्या फिर से सफर में जाओगे
कि सबछोड़ मगन में जीयोगे
अनेक कहानी कहा जायेगा
फिर पागल पथिक क्या सोचेंगे
सवाल कुछ ऐसा है
कि उत्तर कुछ "पता" ही नही हैं।
"पागल पथिक"-
धूमिल हो जाती है आशाएं
उम्मीद टूटे
तब संभावना आधे ही सफर में
छूट जाती हैं
तन मन के परे
भूगोल में
अंतर्द्वंद्व में जीवन की आकांक्षाएं
बीते यादों में खो जाती है
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