कुछ बाहर है
कुछ भीतर है
कुछ स्व की पूर्णता में है-
कोई तो रास्ता होगा, इन मलबों से निकलने का
कब तक ज़ेहन में, ये उदासियां बाकी हैं
सूख गए आंसू, दश्त-ए-तसव्वुर में तेरे
सैलाब मेरे दिल में, नमी आंखों में अभी बाकी है...
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उसे पाने से उसे खोने तक
सब खत्म हुआ अंदर अंदर
फिर जो मिला वो सदा रहा
जैसे मुझमें ही समा गया...-
शायद वज़ह यही है,रस्मे जुदाई की
जो मेरे मौन को समझे, वो मेरा है नहीं क्यूंकि...
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नज़र भर के जो देखूं मैं
नज़ारे भूल जाओगे
भरा है प्यार आंखों में
सनम तुम डूब जाओगे...-
हसरतें औरों की पूरी कर
अगर तन्हा हुए
भूल कर अपनी जरूरत
ये कहां हम आ गए
स्वप्न आंखो में बसा कर
लक्ष्य था जो साधना
जो पड़े व्यामोह मे
भटका वो राही फिर यहां
जागृति भी है जरूरी, जाग कर मेहनत करो
बीते सफ़र आनंद में, तुम मुश्किलों से मत डरो
जीवन बड़ा अनमोल है, खुद को तराशे हम सदा
जब मिले आनंद खुद में, तब ये मन हीरा हुआ...
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दूर हैं जितना प्यार बढ़े
पास रहो तो घटता प्यार
दुनिया हो गई मतलब की
पर फिर भी ये दिल करता प्यार...-
अब फासले बढ़ गए
हर रिश्तों के दरमियां
शायद जिन्दगी की दौड़ में
जीने का सलीका खो गए...-
ये कैसा है रचा संसार कान्हा
प्रेम का तुमने
रचाया रास फिर भी है
विरह की वेदना तुमसे
मैं जो लूं नाम तेरा
लोग कहते ये दीवानी है
हृदय में हूं तेरे कान्हा
मगर आंखों में पानी है...
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शब्द मेरे थे मौन अभी तक
पर अब ये कहते हैं
हर सांस तेरे ही नाम पे,
इतना प्यार तुम्हें करते हैं...
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