मैं चंचल सी चाँदनी, वो सूरज निष्काम।
दूर क्षितिज में हम मिलें, बनके मीठी शाम।।-
मैं सबसे मिलने आई हूँ
देश की सियासत की जो दिल-धडकन
मैं उस शहर दिल्ली... read more
मन की नई उमंग
==========
इतने अरसे बाद है, सुख की उठी तरंग।
उत्सव का मौसम बना, मन की नई उमंग।।
ले आये धनवंतरी, अमृत जग के द्वार।
भरे चाँद की शीत से, मन में रंग हजार।।
देव सुता सब मुक्त की, नरकासुर को मार।
कान्हा ने जग का किया, प्रेम संग उद्धार।
खुशियाँ खिल के हँस रही, पाके सुंदर रंग।
उत्सव का मौसम बना, मन की नई उमंग।।
दीपों की दीपावली, लाई खुशी अपार।
मीठी मीठी रोशनी, फैली पाँव पसार।।
आशाओं की लौ हरे, दुख का सब अँधियार।
राम नाम की धुन बजे, करता जग जयकार।।
प्रीत रीत से हारते, सारे बड़े दबंग।
उत्सव का मौसम बना, मन की नई उमंग।।
कान्हा ने चुर चुर किया, इंद्र का अहँकार।
छोटी उँगली जब धरे, गोवर्धन का भार।।
भाई बहना प्रेम का, दौज बना त्यौहार।
प्रेम त्याग उपकार हो, हर जीवन का सार।।
धर्म जात अब ना करें, खुशियाँ अपनी भंग।
उत्सव का मौसम बना, मन की नई उमंग।।
कोई भूखा ना रहें, ले ये प्रण इस बार।
हर रावण का हम करें, मिलकर अब संहार।।
हर दिन होली ही लगे, रात दियों का हार।
हर मानव का अब बनें, मानवता शृंगार।।
हर दुख फिर छोटा लगे, सभी चलें जो संग।
उत्सव का मौसम बना, मन की नई उमंग।।
देवप्रिया"अमर-रचना"-
जन्मदिन शुभकामना
जन्म दिवस पर आपके, नमन करूँ सौ बार।
भाव सुमन की वंदना, कर लो तुम स्वीकार।।
मिला ज्ञान जो आपसे, बढ़ा जगत में मान।
दोहा,रोला सब लिखूँ, गुरु वर का अहसान।।
भाव शब्द में गूँथ कर, किया शिल्प शृंगार।
गीत,गजल में ढल सभी , हुए सपन साकार।।
आप सदा हँसते रहें, हर दिन हो त्यौहार।
सब इच्छा पूरी करें, सालासर सरकार।।
देखा मैंने आप में, ज्ञान रूप साकार।
करूँ निवेदन आपसे, भर दीजे भंडार।।
तुम बिन डगमग नाव ये, फँसी बीच मझधार।
तुम ही तो पतवार हो, तुम ही खेवनहार।।
इस पतझड़ में आप से, सारे रंग ,बहार।
खाली मन भर दीजिए, देकर ज्ञान अपार।।
पिता रूप में आपकी, माँगू प्रभु से त्राण।
गुरु छवि हूँ पूजती, आप बसे हो प्राण।।
-
हार गई साजन पुकार कर तुम्हें,
क्यों इतने शिकवे हैं हमसे तुम्हें।
कल तक तो बातें करते थे मीठी,
नखरों में भी दिखती थी तब तो प्रीती,
आज दो पल का तम्हें वक्त भी नहीं,
बातें करते कितनी रातें थी बीती।
सोचूँ कुछ बोलूँ,
तुझ को टटोलूँ,
बीती यादें याद दिलाऊँ फिर से तुम्हें,
हार गई साजन पुकार कर तुम्हें।
मुझको चाँद का टुकड़ा तुम थे कहते,
कभी आग तो कभी शबनम थे कहते,
अब न वो बातें हैं और न हैं वो सौगात,
कहाँ गये वो दिन जब ज़िंदगी थे कहते।
कुछ कहना चाहूँ,
कुछ सुनना चाहूँ,
इन बाहों में भर लूँ मैं फिर से तुम्हें,
हार गई साजन पुकार के तुम्हें।
सच कहो क्या चैन से तुम जी लेते हो,
बिन तारें गिन क्या रातों को सो लेते हो,
मुझसे तो अब खामोश नहीं रहा जाता,
तुम कैसे अपने होटों को यूँ सी लेते हो।
तुमको था पाया,
तुमको है खोया,
काश अजनबी बनके मिलूँ फिर से तुम्हें।
हार गई साजन पुकार कर तुम्हें।।
देवप्रिया सिंह "अमर-रचना
दुबई,यूएई-
प्यार में मेरे पागल था वो,
इश्क़ का सुर्ख बादल था वो।
अपने रंग में मुझे रंग के गया,
रंगरेज कुछ तो घायल था वो।
पाव छनकती पायल था वो,
हुसन का मेरे कायल था वो।
यूँ तो बड़ा गरूर था उसको,
पर मेरे लिये मायल था वो।
अर्जियो वाली फ़ाईल था वो,
आजमाईश का ट्रायल था वो।
नाम दिया भले ही बेवफा उसे,
पर सच ये बड़ा लायल था वो।
मोब का पहल नं डायल था वो,
होटों पर आती स्माइल था वो।
बेवफाई में महोब्बत ढूंढ़ रहा था,
कोई दीवाना बड़ा जाहिल था वो।-
मेरी आँखो ने तेरी आँखो के एहसास पढ़े है,
कलम का क्या हैं इसने कई फ़नकार गढ़े है।
-
Belated wale Happy Birthday Rishabh ji
🥳🥳🥰🥰❤❤⚘🎂🎂⚘❤❤🥰🥰🥳🥳
शायरी, दोहा, रोला, कविताओं जैसी विधाओ का हैं ये तो वृषभ,
अपनी लेखनी से दिल जीते सबका ऐसा है ये मेरा दोस्त ऋषभ।
है सीधा-साधा सा थोड़ा नटकट भी, पर है इसके इश्क़ में एक अदब,
रहता बड़ा ही मसरूफ़ हैं, पर दोस्तों की खातिर हो जाता हैं सुलभ।
बोलता तो कम ही हैं, पर खमोशी को सुनने का अंदाज हैं अजब,
परिवार,मोहब्बत,दोस्ती,काम-काज, का इनका तालमेल हैं गजब।
रोज नया सिखने, कुछ कर गुजरने की इसको रहती हैं तेज तलब,
आपको चाहने के दोस्त हमारे पास एक नही सबब हैं कई खरब।
-
हुये मेरे लिये सारे बंद चौराहे हैं,
तुमने सारे इश्क़ के रंग चुराये हैं।
मैं रंगरेज खाली हुआ हूँ रंगो से,
मैं तो नही पर तुझसे तंग पराये हैं।
-
मुझे पसंद है
चटनी
With
समोसा
मजा आता हैं जब चाय संग जाये ये परोसा!
❤😜😜😋😋😜🤗😜😋😋😜😜❤-
"मेरा जीवन"
जीवन कभी सूर्य का उजाला ,कभी तपिश का एहसास हैं,
कभी चांद की ठंडक सा तो कभी अन्धेरी रात बदहवास हैं।
कभी लगे दोस्ती-रिश्तेदारी के मेले इसके घर के आंगन में,
कभी मिला इसके मन को तन्हाईयों का लम्बा बनवास हैं।
कभी तो प्रेम, त्याग, फिक्र की होती रही घनघोर बारिशें यहाँ,
कभी घृणा तिरस्कार जलन के बीच बढ़ती रही प्यास हैं।
रिश्ते खंगाले जब भी इसने कभी तो झूठ का विष है पाया,
कभी पाया सच के अमृत में लिपटा रिश्तों का विश्वास हैं।
कभी सुख हारा- जीता तो कभी दुख भी हारा जीता इसमें,
सुख दुख दोनों को जो है साधे वो जीवन की उम्मीद,आस हैं।
जीवन पहिये सा दौड़ा है कभी सरपट, कभी दलदल में धंसा,
देखा शोहरत का राज तो जिया कभी इसने एक अज्ञातवास है।
देवप्रिया"अमर-रचना"✍❤
-