जब कुछ ख्वाहिशें,ख्वाहिशें बन कर रह जाती हैं
तब नापसंद लोगो के "हां में हां'' मिलाना पड़ता है-
तुम्हारे अर्जगार
हमारे कर्जदार रहे हैं...।
आज तुम शौक से कहना
तुम बढ़ गए हो... बहुत आगे-
पहले की तरह,
अब बतीयाती नही हो
बहुत दिनों तक,
नजर आती नही हो
भूल गई हो ,
या भूलना चाहती हो मुझे
मुझसे इश्क है नही ,
या जताती नही हो
मैं जानता हूं...।
तुम्हें जरूरत नहीं है मेरी
और
तुम भी जान लो...।
मुझे जरूरत नहीं तुम्हारे नखरों की-
घड़ी दो घड़ी सही,मुझसे बात जरूर करेगी
प्यार की राहों में,वो मेरा साथ जरूर करेगी
कभी तो समझ पाएगी इश्क़ का अहसास
अगर है प्रेम मुझसे, मुलाकात जरूर करेगी-
बरसों बाद मिला , पर गजब का मिला
बात हो नही पाई,चेहरा भूल नही पाएंगे-
जब मिलो तब गले लागा लेना मुझे
एक अरसे से,इंसान से ना मिला हूँ-
जब टकराई हैं नजर , हाल ये हम दोनों का
बदन को छुआ अगर , घाव बड़े गहरे होंगे-
मैं अगर पढ़ाऊँ इश्क़ का पाठ,वो पढ़ना चाहती हैं
मेरी मोहब्बत में पागल, वो सूली चढ़ना चाहती हैं
पूछती है मुझे- कि तुम्हें इश्क़ हुआ कभी किसी से
मैं बढाऊँ अगर हाथ इश्क़ का,साथ बढ़ना चाहती हैं-
कल से ज्यादा ,आज अच्छा लगता है
तुमसे इश्क़ का, राज अच्छा लगता हैं
आंखों से बयाँ करती हो दिल की बात
बात बताने का,अंदाज अच्छा लगता हैं-
छुपकर देखती थी,वो मुलाकातें कैसे भूलूँ
सपनो में आकर सताया, वो रातें कैसे भूलूँ
कहती है तुमसा कोई मिला नही आज तक
भूल जाऊं सब कुछ,पर ये बातें कैसे भूलूँ-