Devika   (देविका)
21 Followers · 4 Following

HBD- 23-07-2000
Love to write
Masters in English Literature
Erotica writer
Joined 11 June 2025


HBD- 23-07-2000
Love to write
Masters in English Literature
Erotica writer
Joined 11 June 2025
15 HOURS AGO

तेरे होंठों के सफ़र पे ही कुछ उम्रें रुक गई थीं,
उन लम्हों में ही सबसे जिंदा थी हँसी मेरी।

तेरे सीने पे जब पेशानी रखी थी चुपचाप,
तो दुनिया की हर उलझन वहीं सुलझी थी मेरी।

-


13 JUN AT 14:10

मैं वो नहीं
जो चूल्हे की राख में
अपने सपनों को भूनकर परोसती है
मैं वो भी हूँ,
जो आग बनकर
पूरी रसोई जला सकती है।

मैं माँ हूँ पर माफ़ नहीं,
मैं प्रेमिका हूँ पर पिघलती नहीं,
मैं बेटी हूँ पर अब सिर झुकाती नहीं,
और पत्नी?
हाँ, अगर साथ हो
वरना एक नाम है, जो मैं ख़ुद से मिटा सकती हूँ।

मेरे जिस्म को
इतिहास ने कई बार पढ़ा है,
मगर मेरी आत्मा की लिपि
अब भी अपठित है इस समाज के लिए।

मैंने सिर पर पल्लू नहीं
सदी उठाई है,
और अब थककर नहीं
ताक़त से रुकी हूँ।

हर बार जब तुमने कहा
"तू औरत है, सह ले",
एक स्त्री भीतर मर गई,
और एक देवता तुम्हारे भीतर
थोड़ा और क़त्ल हो गया।

-


13 JUN AT 9:48

मैंने तुम्हारी उँगलियाँ पकड़ी,
जैसे कमल की जड़ें जल में डूबती हैं, धीरे, लहरों संग।
तुम नहीं जानते थे… मैं कबसे तुम्हें रच रही हूँ।

मेरे स्पर्श में केवल आमंत्रण नहीं,
एक विधान है, प्रणय का, शास्त्र का,
कामसूत्र की पहली श्लोक-रेखा मैं ही हूँ।

तुम जब मेरी पीठ पर होंठ रखो,
तो वह बस चुम्बन नहीं,
एक प्राचीन मुद्रा का जागरण होता है।

मैं अपनी जांघों के बीच
तुम्हारे अधीर अस्तित्व को थामकर
स्वयं को विश्व की सृष्टि मान लेती हूँ।

मेरे स्तनों की लय पर तुमने जब लय साधी,
मैंने आँखें मूँद लीं,
और मुझे लगा कोई योगिनी मेरे भीतर जाग उठी है।

यह केवल देह का उत्सव नहीं था,
यह वह क्षण था जब मैंने स्त्री होने के सारे अर्थ जी लिए,
तुम्हारे भीतर प्रवेश कर
तुम्हें तुम्हारे ही प्रेम में पराजित कर दिया।

मैं वह रति हूँ, जो केवल भोगी नहीं जाती
मैं वह कला हूँ,
जो जब देह बनती है… तो शास्त्र की व्याख्या बन जाती है।

-


12 JUN AT 21:09

मेरे जिस्म में सुलगती, आग सी काली रात,
तेरा बदन, जैसे सायों में बंधा एक जज़्बात।
जिस्म का टकराना, जैसे बिजली का तड़कना,
हर धड़कन मेरी, तुझ में डूबता है सपना।

तेरे अंगों की तपन, मेरी रूह जला दे,
बदन तेरा, जैसे अंधेरे में शोला सजा दे।
मेरी रगों में, तेरी छुअन का ज़हर,
जिस्मों का मिलन, जैसे बवंडर का पहर।

मेरा जिस्म, तुझ में लिपटा सा काला जादू,
तेरी बाहों में, अपनी हर ख्वाब सजा दूं।
होंठों की गर्मी, जैसे लावे का उफान,
जिस्म का टकराना, बन जाए इश्क का तूफान।

आग ये मेरे बदन में, काली स्याही सी बही,
तेरे बिना, ये रातें हैं अधूरी कसक सही।
जिस्म से जिस्म तक, बंधा एक गहरा अंधेरा,
टकराने की वो लौ, जलाए सारा बसेरा।

-


12 JUN AT 15:22

छू के गया वो धीमी हवा सा,
जैसे बदन पे उतर आया खुदा सा।

नज़रों से उसकी बरसती थी आग,
लब उसके लगते थे जैसे कोई राग।

साँसों में उसकी थी ख़ुशबू की शान,
छूती थी रूह, जगाती थी जान।

-


11 JUN AT 23:02

आँखों में काजल, होठों पे राग,
सजती रही वो बिना किसी आग़ाज।
चूड़ियाँ छनकी, पायल बोली,
हर अँग में उसकी चाहत डोली।

आईना पूछे, किसके लिए?
वो हँसे, बोले , "बस उसी के लिए!"
बालों में गजरा, मन में सपना,
हर सोच में उसका बस 'सजना'।

न मौसम दिखे, न दिन न रात,
बस साँसों में उसकी बातों की बात।
ओढ़नी भी पूछे, क्यों आज इतनी प्यारी?
वो कहे, "उसकी नज़र जो पड़ जाए सारी!"

-


11 JUN AT 22:04

His mouth was a wound I chose to kiss,
Velvet venom, sacrificial bliss
We bled in silence, clawed through night,
Two shadows tangled, far from light.

-


11 JUN AT 21:49

तेरी उंगलियां जब छुए, मेरे तन की सैर करे,
जैसे बरसात की बूंदे, मिट्टी को गैर करे।

-


11 JUN AT 20:47

शाम ढल गई अब आ जा
रात आ गई अब आ जा
हवाओं के सहारे आ जा
घटाओं के किनारे आ जा

बैठी हूं मैं तेरे लिए
तू कुछ लेते आना मेरे लिए
एक गुलाब बस एक गुलाब
कीमत मेरी, खरीद आ जा
शाम ढल गई अब आ जा

मुझको अब बाहों में भर ले
अपनी हर आहों में भर ले
जल्दी कर देर ना कर
वैसे ही देर हुई आ जा
शाम ढल गई अब आ जा

ना मुझको कोई वादा दे
बस पैरों को तू कांधा दे
बेचैनी है, तड़प रहीं हूं
मेरी तड़प मिटा दे आ जा
शाम ढल गई अब आ जा

-


11 JUN AT 17:01

दरवाज़े पर ठहरी हूँ मैं,
ख़्वाबों में कुछ बहरी हूँ मैं।

बेख़बर सी नज़रों के साथ,
अंदर से तो गहरी हूँ मैं।

तेरी याद की ठंडी छाया,
धूप में भी ठंडी हूँ मैं।

आवाज़ें सब चुप रहती हैं,
ख़ुद से ही अब कहती हूँ मैं।

एक पलक में उम्र बसी है,
सन्नाटों में ठहरी हूँ मैं।

-


Fetching Devika Quotes