Devesh Roy   (©देव)
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Joined 6 February 2018


Joined 6 February 2018
23 OCT 2023 AT 8:39

कहते हैं सब, प्रेमिका के आंखों में स्वर्ग है
तेरी और बाकी आंखों में है, फर्क है

किसने कहा तेरे बिना जिंदगी अब नहीं
तेरे बिना है जिंदगी, है, नर्क है

ये झूठ नहीं की मैं हार गया तुझसे, सबसे
पर जीत भी सकता था, है, तर्क है

ये जो तेरे चाहने वालें हैं, चाहें खूब चाहें
बस काटे तो मत चीखना, है सर्प है

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24 MAY 2023 AT 14:25

मैं कोई पेंटिंग नहीं जो एक फ्रेम में रहूं
जो हो मन का मीत उसी के प्रेम में रहूं
तुम्हारी सोच जो भी मैं उस मिजाज की नही
मुझे वफा से बैर है, ये बात आज की नहीं

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21 MAY 2023 AT 10:49

मोहब्बत करने वालों पर ये बात नहीं जचती
की कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

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20 MAY 2023 AT 12:31

।।।।

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16 MAY 2023 AT 7:03

तू इतना पास रहा जैसे सासें और जीवन
तू इतना दूर हुआ जैसे सासें और जीवन

प्रेम ऋतु में, आनंद शुरू में, शुरू में मधुबन
फिर सारे भ्रम मिले रेत में जैसे सासें और जीवन

उठूं सवेरे, तुझको देखूं, सोऊं साथ भर जीवन
ख्वाबों को वैसा भरोसा जैसे सांसे और जीवन

समय व्यर्थ, था कहे जगत, इश्क जैसे उलझन
देर धी का अंत नतीजा जैसे सांसे और जीवन

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16 MAY 2023 AT 6:46

जीवन में......
धूप में छौं जरूरत होगी ही
मझधार में नाव जरूरत होगी ही
ठंड में अलाव जरूरत होगी ही
और मुझे तेरी जरूरत होगी ही

संसार में बदलाव जरूरत होगी ही
मनुष्य में ख्वाब जरूरत होगी ही
व्यंजन में स्वाद जरूरत होगी ही
और मुझे तेरी जरूरत होगी ही

संगीत में सुर ताल जरूरत होगी ही
बोली में मधुर भाव जरूरत होगी ही
ताली में दो हांथ जरूरत होगी ही
और मुझे तेरी जरूरत होगी ही

दर्द में मुस्कान जरूरत होगी ही
लोगों से पहचान जरूरत होगी ही
और स्वाभिमान जरूरत होगी ही
और मुझे तेरी जरूरत होगी ही

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16 MAR 2023 AT 13:36

कर रहे फरियाद दुनिया बनाने वालों से
रोने पे जब लोग आए, रुलाने वालों से

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30 JAN 2023 AT 12:07

बीते काल की वो बातें सुंदर
स्मरण हृदय के परत के अंदर
रोक रही है सब कुछ अब ये
हृदय नहीं हो, हो जैसे खंजर

जो बीत गई सो बात गई
जब भी गई ये बात लिखी
होंगे लेखक के आंखों में मंजर
बीते काल की वो बातें सुंदर
स्मरण ह्रदय के परत के अंदर

प्रेम, विरह में क्या है अंतर
है दोनो का पर्याय समंदर
अनंत, कठिन, विचित्र मंजर
बीते काल की बातें सुंदर
स्मरण ह्रदय के परत के अंदर

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28 JAN 2023 AT 10:45

एक बहुत ही अजीब गीत मैं
तुम जो सोचो, हूं विपरीत मैं
अच्छा सोचो, बुरा भयानक
बुरा सोचो, हूं मैं सुखदायक
नफरत, प्रेम सब है अंदर
मुझमें, और मैं लगे हूं खंडहर
जो खोजे, मिलेगा घर
जो देखे, मिलेगा डर
एक बहुत ही अजीब गीत मैं
तुम जो सोचो, हूं विपरीत मैं

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23 JAN 2023 AT 9:50

मन है शरीर के रथ का सारथी
रथ को चाहे जिधर ले जाए
इंद्रियां हैं इस रथ के घोड़े
घोड़ों को विषयों की ओर बढ़ाए
आत्मा और शरीर के मध्य में
ये मन अपने खेल दिखाए
मन को बस में कर ले जो योगी
वो इसी रथ से मोक्ष को जाए
मन को बस में कर ले जो प्राणी
वो इसी रथ से अनंत को जाए।

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