दिल की गहराई में समा है एक वीराना है भूत भविष्य वर्तमान गिरफ्तार मेरा जहा , कफन में लेटा जंजीरों से कैद जमीर मेरा चिल्लाए अतीत के वो साए शक्सियत मेरी कुछ इस्कदर दफनाए
ना पेशी हुई न गवाह था आहट हुई बस अंधेरा था, ना पेशी हुई न गवाह था नींद खुली बस सपना था, ना पेशी हुई न गवाह था दिल दुखा बस जख्म था, ना पेशी हुई न गवाह था गलती हुई बस पछतावा था
मत सुनना तुम बातें मेरी अक्सर जो तुम्हें सूनाता हूं समझ आए ये अल्फाज तुम्हें,वों धुन पकड नहीं पाता हूं, धुन पकड नही पाता हूं बस पंक्तियों में लिखता जाता हूं धीरज की स्याही ये खत्म ना हो,इस्लिये फीर एक नए राग मै गाता हुं