जो रखते हैं हुनर मुझे तराशने का
उन्हें लिख दूं इन चंद शब्दों में
ये मेरी औकात कहां।-
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ख्वाहिश मेरी है कोई शाम हमारे दरमिया दूरियां हटा दे
ख्वाहिश मेरी है की तू फिर मेरे सीने को सिरहाना बना दे।-
जो रिश्ते ताउम्र निभाने के फ़ैसले किए मैंने
फिर मेरे हिस्से तन्हाइयों के सिलसिले किए मैंने।
एक दौर था कि मुझको आस थी रफ़ाक़तें
फिर एक दौर यूं कि खुद से भी फासले किए मैंने।।-
ग़ज़लें , शेर , नज़्म , तेरी हुस्न-ए-सीरत पे क्या–क्या न कहते
जो गौर करती मेरी बातों पे, हाल-ए-दिल, हसरतें, तुझसे क्या-क्या न कहते।-
लफ्ज़ कहां कोई जो तेरे चश्म-ए-नूर पे कह दूं
ग़ज़ल भला मैं तेरे होठों पे क्या लिख दूं ।
और एक दफा फिर अदब से पलकें झुका
तेरी सादगी पे मैं सैकड़ों किताबें लिख दूं ।।-
दिल ज़रा दरिया किया तो किसी बेकस का घर खिला
अदब को ज़रिया किया तो रब्ब ज़मीन पर मिला ।
और ये इल्म तुझे भी है और मुझे भी है ' देव '
हो ईंद या इश्क़ दोनों में सुकूं चांद को देख कर ही मिला ।-
ये जो तेरी लत लगी है मुझे, इसका कहां कोई मर्ज था
मुझे ख़्यालों में उलझाए रखना, तेरी जुल्फों पे कर्ज था।
और जहां ने मांगे होंगे रब्ब से हजार खुशीयों
खुशी युं थी मेरी कि फकत तुं ही मेरी मन्नतों में दर्ज़ था।
बढ़ती रही धड़कने मेरी तुझे देख कर, मगर
' देव ' की धड़कनें रोक देना, तेरे झुमकों पे फ़र्ज़ था।-
वो पढ़ सकते थे निगाहों में, मेरा हाल-ए-दिल
नज़रंदाज़ कर, मेरा दिल वो गमगीन कर बैठे।
उनके आने से इतने रंग आए मेरी जी़स्त में
मेरे वजूद का हर पहलू रंगगीन कर बैठे।
और वो मेरे सामने बैठ मुस्कुराते हुए
मेरा ,वो हर एक लम्हा हसीन कर बैठे।
करीब रह कर भी, उनसे फासले यूं बढ़े
जैसे फासले आस्मां और ज़मीन कर बैठे।
मोहब्बत जो है वो बहुत खूबसूरत चीज है, मगर
तुमसे दिल लगाना, जूर्म संगीन कर बैठे।
और एक सवाल था उनका, " 'देव' चाहते हो मुझे? "
हमने ' ना ' कहा और वो यक़ीन कर बैठे।-
जो क़ैद है मोहब्बत कहीं सीने में मेरे,
उसके दीद से जगने को है।
और मेरी धड़कनें ज़रा खामोश रहना,
वो मेरे गले लगने को है।-
वो मुझे मिलने को अपने शहर बुलाती है,
मैं उसके शहर को जाने से कतराता हूं।
और मेरी धड़कनें उसे सब कह देंगी,
इसलिए उसे गले लगाने से कतराता हूं।-