जानीयात्प्रेषणेभृत्यान् बान्धवान्व्यसनाऽऽगमे।
मित्रं याऽऽपत्तिकालेषु भार्यां च विभवक्षये ॥
किसी महत्वपूर्ण कार्य पर भेज़ते समय सेवक की पहचान होती है । दुःख के समय में बन्धु-बान्धवों की, विपत्ति के समय मित्र की तथा धन नष्ट हो जाने पर पत्नी की परीक्षा होती है ।
The servant is recognized while sending on some important work. Friends are tested in times of sorrow, friends in times of adversity and wife when wealth is lost.
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मूर्खशिष्योपदेशेन दुष्टस्त्रीभरणेन च ।
दुःखितैः सम्प्रयोगेण पण्डितोऽप्यवसीदति ॥
Even a wise Man comes to Grief and sadness by giving instruction to foolish disciple, maintaining and living with wicked wife and excessive get together with miserable sad and negative people. So Chanakya instructs, immediately leave the company of these three characters.
चाणक्य कहते हैं, मूर्ख शिष्य को पढाने और उपदेश देने से, दुष्ट स्त्री का भरण पोषण और साथ रहने से तथा दुखी और नकारात्मक लोगों के साथ से विद्वान् और समझदार व्यक्ति भी दुखी रहने लगता है| इसलिए समझदार व्यक्ति को इन तीनों का साथ हमेशा के लिए छोड़ देना चाहिए|-
आढ्यतो वा दरिद्रो वा
दुःखित सुखितोऽपिवा ।
निर्दोषश्च सदोषश्च
वयस्यः परमा गतिः ॥
चाहे धनी हो या निर्धन,दुःखी हो या सुखी,निर्दोष हो या सदोष–मित्र ही मनुष्य का सबसे बड़ा सहारा होता है ।
Whether a person is rich or poor, sad or happy, innocent or faulty, friend is the greatest support of man.-
त्यजन्ति मित्राणि धनैर्विहीनं
पुत्राश्च दाराश्च सुहृज्जनाश्च |
तमर्थवन्तं पुनराश्रयन्ति
ह्यर्थो हि लोके पुरुषस्य बन्धुः
एक धन विहीन व्यक्ति के मित्र , पुत्र , पत्नी तथा बन्धु सभी उसे त्याग देते हैं | परन्तु यदि वह धनवान हो जाता है तो पुनः
उसके आश्रय में आ जाते हैं | सचमुच, धन ही किसी व्यक्ति का इस समाज में सच्चा बन्धु होता है |
All friends, sons, wife and relatives of a poor persons quit him, but if he becomes rich afterwards they all again seek his shelter. Surely, wealth is the real friend of a person in this society.
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कृतार्थः स्वामिनं द्वेष्टि कृतदारस्तु मातरम् ।
जातापत्या पतिं द्वेष्टि गतरोगाश्चिकित्सकम् ॥
जो (धन से) संतुष्ट हो गया है वह सेठ से द्वेष करता है, स्त्री मिलने पर पुत्र माँ से, अपत्य मिलने पर पत्नी पति से, और रोग मिट जाने पर रोगी वैद्य से द्वेष करने लगता है (उन्हें दुर्लक्ष करने लगते हैं) ।
One who is satisfied (with money) hates the Sheth, the son on getting a woman hates the mother, the wife after getting the child, and the sick Vaidya when the disease is eradicated-
कार्यार्थी भजते लोकं यावत्कार्यं न सिद्धति ।
उत्तीर्णे च परे पारे नौकायाः किं प्रयोजनम् ॥
जब तक काम पूरे नहीं होते हैं, तब तक लोग दूसरों की प्रशंसा करते हैं. काम पूरा होने के बाद लोग दूसरे व्यक्ति को भूल जाते हैं. ठीक उसी तरह जैसे, नदी पार करने के बाद नाव का कोई उपयोग नहीं रह जाता है.
People praise others until the tasks are not completed. People forget the other person after the work is done. Just like, after crossing the river, the boat is of no use.-
कुत आगत्य घटते विघट्य क्व नु याति च |
न लक्ष्यते गतिः सम्यग्घनस्य च धनस्य च ||
बादलों और धन-संपति के विषय में कि वे कहां से आते
हैं और आने के पश्चात फिर कहां चले जाते हैं , तथा उनके आने तथा जाने की गति का सही अनुमान कभी भी नहीं लगाया जा सकता है |
No body can correctly guess as to from where the clouds and wealth will come and after having come where
they will go. Further , the speed at which they will come and go is also uncertain.-
अनिच्छन्तोऽपि विनयं विद्याभ्यासेन बालकाः
भैषजेनैव नैरुज्यं प्रापणीयाः प्रयत्नतः ॥
Even if not desired, just as a disease (is treated) through medicine, children should be taught humility (and values) through education.
वांछित न होने पर भी, जिस प्रकार एक रोग (रोग का उपचार) औषधि द्वारा किया जाता है, उसी प्रकार शिक्षा के द्वारा बच्चों को नम्रता (और मूल्यों) की शिक्षा देनी चाहिए।
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सत्यानुसारिणी लक्ष्मीः
कीर्तिस्त्यागानुसारिणी।
अभ्याससारिणी विद्या
बुद्धिः कर्मानुसारिणी॥
लक्ष्मी सत्य का अनुसरण करती है, कीर्ति त्याग का अनुसरण करती है, विद्या अभ्यास का अनुसरण करती है और बुद्धि कर्म का अनुसरण करती है।
Lakshmi follows truth, fame follows renunciation, learning follows practice and intelligence follows action.-
क्रोधः प्राणहरः शत्रु: क्रोधो मित्रमुखी रिपुः |
क्रोधो हि असिर्महातीक्ष्णः सर्वं क्रोधोपकर्षति II
क्रोध एक प्राणहरण करने वाले शत्रु के समान है तथा मित्रों के बीच शत्रुता होने का कारण भी होता है | क्रोध एक तीक्ष्ण तलवार के समान है जो सब को अपमानित कर हानि पहुंचाता है |
Anger is like an enemy who can take away one's life and is also the main cause of enmity between friends. Anger is surely like a very sharp sword, which can cause harm and dishonour to everybody
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