Devdatta Peshkar   (देवदत्त)
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13 NOV 2021 AT 23:15

थोडा और पाने की चाहत में,
जो था, उस सुकून को भी कमबख्त गवां बैठे...

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21 AUG 2021 AT 10:42

एक तीर पर उम्मीद है,
दूजे तीर तनाव...
मझधार चले है जिंदगी,
हमे मजदूर बनाए बहाव...

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15 AUG 2021 AT 8:59

यूँ ही नहीं मिली इस दिन को
त्योहार की अहमियत,
भारत माँ के बेटों ने कभी
बस आज़ादी को महबूब बनाया था!

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26 JUL 2021 AT 10:10

इक वक़्त हुआ करता था,
जब कनेक्टिविटी WiFi से नहीं,
Hi five से नापी जाती थी...

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29 MAY 2021 AT 11:21

मंज़िल चाहे अनजान हो,
हमसफर पहचाना होना चाहिये,
फिर मुश्किल हो या आसान हो,
उस सफर का अफ़साना होना चाहिये...

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27 MAY 2021 AT 9:40

बड़ी मुश्किल से आजकल
खुदको ही समझने के लिए पढ़ रहा हूँ,
मानो या ना मानो,
रोज़ एक जंग मैं खुदसे ही लड रहा हूं...

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12 MAY 2021 AT 11:15

वक़्त बदलता है,
वक़्त का क़हर बदलता है,
आशिक बदलते नहिं है मगर,
आशिकोंका शहर बदलता है...

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10 MAY 2021 AT 23:05

यूं ना जलना ए दुनिया वालों
मेरे इस सुकून पर...
फुरसत के कुछ लम्हे मिले है,
शिद्दत भरे कुछ अरसों के बाद...

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26 MAR 2021 AT 23:24

तो सवाल यह है के...

रह सकती है तू मेरे बगैर,
फिर ये यादों का बहाना क्यों है ?

काट सकती है जिंदगी मेरे बगैर,
फिर ये झूठी आहोंका बहाना क्यों है ?

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23 NOV 2020 AT 0:24

जिस क़दर लूटाते हैं नाकाम आशिक
अपना प्यार बेफजूल रिश्तोंपे,

काश हम लूटा पायें अपना सब कुछ
इस मिट्टी के हर एक गज पे...

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