थोडा और पाने की चाहत में,
जो था, उस सुकून को भी कमबख्त गवां बैठे...-
एक तीर पर उम्मीद है,
दूजे तीर तनाव...
मझधार चले है जिंदगी,
हमे मजदूर बनाए बहाव...-
यूँ ही नहीं मिली इस दिन को
त्योहार की अहमियत,
भारत माँ के बेटों ने कभी
बस आज़ादी को महबूब बनाया था!-
इक वक़्त हुआ करता था,
जब कनेक्टिविटी WiFi से नहीं,
Hi five से नापी जाती थी...-
मंज़िल चाहे अनजान हो,
हमसफर पहचाना होना चाहिये,
फिर मुश्किल हो या आसान हो,
उस सफर का अफ़साना होना चाहिये...-
बड़ी मुश्किल से आजकल
खुदको ही समझने के लिए पढ़ रहा हूँ,
मानो या ना मानो,
रोज़ एक जंग मैं खुदसे ही लड रहा हूं...-
वक़्त बदलता है,
वक़्त का क़हर बदलता है,
आशिक बदलते नहिं है मगर,
आशिकोंका शहर बदलता है...-
यूं ना जलना ए दुनिया वालों
मेरे इस सुकून पर...
फुरसत के कुछ लम्हे मिले है,
शिद्दत भरे कुछ अरसों के बाद...-
तो सवाल यह है के...
रह सकती है तू मेरे बगैर,
फिर ये यादों का बहाना क्यों है ?
काट सकती है जिंदगी मेरे बगैर,
फिर ये झूठी आहोंका बहाना क्यों है ?-
जिस क़दर लूटाते हैं नाकाम आशिक
अपना प्यार बेफजूल रिश्तोंपे,
काश हम लूटा पायें अपना सब कुछ
इस मिट्टी के हर एक गज पे...-