Devbrat Singhai   (Devbrat)
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Joined 16 February 2018


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Joined 16 February 2018
3 MAY 2024 AT 9:24

सीने में एहसास लेकर, किधर जाना है तुमको,
तुम्हें ये आंसू लेकर, कहीं नहीं जाना है तुमको।

तुम्हारी दिल की दास्तां, सुन तड़प उठता है दिल मेरा,
कहां से लाऊं वो मरहम, जो ज़ख्म मैं तेरे भर पाऊं।

आ जाएंगे तुम्हारे दर्द के आंसू, मेरी पलकों पर भी,
महसूस होता है ज़हर, कहीं न मैं उससे मर जाऊं।

कड़वाहट के ही बबूल बोए हैं, इस जहां ने हर तरफ़,
शोलों की आंच आती है, चाहे जहां से मैं गुज़र जाऊं।

भूल कर इस ज़माने के सितम, हम बसाएंगे नई दुनिया,
थाम लो ये हाथ तुम मेरा, कि अब हम वापस घर जाएं।

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2 MAY 2024 AT 8:52

क्या-क्या देखना पड़ेगा ?
क्या-क्या सुनना पड़ेगा ?
जब तक है ! तब तक,
सब कुछ सहना पड़ेगा !
दर-दर भटकना पड़ेगा !
लोगो के सामने झुकना पड़ेगा !
हर कष्ट को पीना पड़ेगा !
हँसना और हँसाना पड़ेगा !
जीना है, तो
अपना ख्याल रखना पड़ेगा !!

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19 JAN 2022 AT 8:57

सत्य

दिल की कोई सुरत नहीं है।
मगर दिखावे पर संसार चल रहा है।
अपनत्व खतम हो रहा है।
अपनों का बस नाम चल रहा है।

जिंदगी जीना सब भूल गये है।
साँसो से बस काम चल रहा।

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19 JAN 2022 AT 8:55

सत्य

गरीबी से किसान तड़प रहा है।
और अमीरी का अखबार चल रहा है।
बच्चे सड़को पर भीख माँग रहे है।
डिजिटल इंडिया का प्लान चल रहा है।

भगवान का अस्तित्व नहीं है।
और धर्म का बाज़ार चल रहा है।
रूह का कोई इंसान नहीं है।
मगर जिस्म पर खरीदार चल रहा है।

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19 JAN 2022 AT 8:54

सत्य

इंसानियत बेरोज़गार बैठी है।
मगर मज़हब का कारोबार चल रहा है।
दरिंदगी अपने मकाम पर है।
और सभ्यता का तिरस्कार चल रहा है।

शहीदों पर उँगलियाँ उठ रही है।
तो भ्रष्ट नेताओ का सत्कार चल रहा है।
नीरव माल्या देश लूट रहे है।
और आम आदमी का शिकार हो रहा है।

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11 JAN 2022 AT 16:20

बनाते फिरते हैं रिश्ते
जमाने भर से अक्सर।
मगर जब घर में हो जरूरत
तो रिश्ते भूल जाते हैं।

हवाओं की तबाही को
सभी चुपचाप सहते हैं।
च़रागों से हुई गलती
तो सारे बोल जाते हैं।

कहाँ पर बोलना है
और कहाँ पर बोल जाते हैं।
जहाँ खामोश रहना है
वहाँ मुँह खोल जाते हैं।

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12 DEC 2018 AT 22:09

फ़िक्र मत कर बंदे, कलम कुदरत के हाथ है,
लिखने वाले ने लिख दिया, तक़दीर तेरे साथ है।
फ़िक्र करता है क्यों, फ़िक्र से होता है क्या,
रख खुद पर भरोसा, देख फिर होता है क्या।।

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11 JAN 2022 AT 16:14

कहाँ पर बोलना है
और कहाँ पर बोल जाते हैं।
जहाँ खामोश रहना है
वहाँ मुँह खोल जाते हैं।

अगर मखमल करे गलती
तो कोई कुछ नहीं कहता।
गलती से फटी चादर हो
तो सारे बोल जाते हैं।

बहुत ऊँची दुकानों में
कटाते जेब सब अपनी।
मगर मज़दूर माँगेगा
तो सिक्के बोल जाते हैं।

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10 JAN 2022 AT 8:20

सूरज ने नींद से, आँखें खोली।
रात उठ के, चल दी अकेली।।
किरणों ने, उजाला फैलाया।
अंधेरा कहीं, टिक न पाया।।
धूप की चुनरी, आकाश ने ओढ़ी।
धरती हो गई, सुंदर सुनहरी।।
कोयल ने, मौज में, कू कू कर के।
पंछियों ने, झूम के, चू चू कर के।।
दुनिया को ये, दिया संदेशा।
जागो उठो, हो गया सवेरा।।
रात गई लो, गया अंधेरा।
जागो उठो, हो गया सवेरा।।

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10 JAN 2022 AT 7:50

ऐ ज़िंदगी तू हम पे, कितने भी सितम ढाले
हम वो नहीं दुखों से, जो हैं हारने वाले

पहले पहल हल्का सा कुछ, घबरा गए थे हम
लेकिन जो गुज़रे पार, मरहम बन गए छाले

जब से रोशनी को हमने, खुद मे तलाशा
ये क्या हुआ कि खुल गए, जो बंद थे ताले

न दर्द की सीमा कोई, न प्रीत की सरहद
हर हाल मे चाहेंगे तुझको, चाहने वाले

आँख मे पानी है जब तक, दिल में आरज़ू
हर इम्तिहाँ से गुज़रेंगे हम , बन के मशालें

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