अनभिज्ञ हूँ उस कल से,अनभिज्ञ रहना चाहता हूँ..
विष भरी इस धरा में,अमृत सा बहना चाहता हूँ...-
नन्हे अंकुरण से जन्मे नए रिश्ते की बात होगी,
वो धूमिल पड़े ख्वाबों को मिली नई सौगात होगी।
नव प्रभात से पूर्व उजाला भोर का जिसे समझा,
मालूम न था वो सांय है जो अब रात होगी।-
आज फिर एक किस्सा अधूरा छूट गया,
मैं खुद ही क्यों खुद से रूठ गया।
बेबसी का आलम तो देखो जनाब
कैसे कहूँ किसी से मैं एक बार फिर से टूट गया।
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आज उन्ही से नज़रे चुराते हैं,कल तक जिन्हें देखने को तरसते थे।
मेरा यकीन मानो यारो,ज़िम्मेदारियों के बादल बड़े तेज़ बरसते हैं।-
छूटा न एक भी दिन जिसमें बेचैनी न छाई,
लिखता मिटाता,रह रहकर अधूरी रुबाई।
बढ़ती निदाघ में बारिश की बूंदों सी,
खबर खैरियत की जो उनकी आई।।-
यूं गैरो से क्या पूछते हो मेरा अतीत,
वक्त की मार थी जो हमपे गयी बीत।
बीते कल से मेरे आज का मुआयना करती ये दुनिया,
वाह रे बनाने वाले,गजब की तेरी ये रीत।-
अब शिकन आने देता नही माथे पे,
वो अक्सर पढ़ लेते हैं चेहरा मेरा,
दो कदम आगे ही रहा हूँ आने वाले "कल" से हमेशा,
फिर वक्त क्यों है "आज" ठहरा मेरा।-
अंदर से जितना खोखला हो रहा हूँ,
बाहर से उतना ही खुदको भरने लगा हूँ।
लोग एक दिन आने वाली मौत से डरते है,
मैं रोज तिल तिल मरने लगा हूँ।-
तुमने जरा देर कर दी,
देर कर दी इश्क़ जताने में,
मै था उसी मोड़ पे..
इक़रार ए इश्क़ के इंतेज़ार में,
और तुम आए भी तो कब,
अब जब अकेलापन सुकूं देता है मुझे,
वो टूटे अरमान,
अब किसी की चाहत नही रखते,
तुमने जरा देर कर दी।
अब क्या लेने आए हो ?
वो जो धुंधले पड़ चुके ख्वाब हैं,
या उस धूल भरी दराज़ में पड़ी वो किताब !
जिसमे ज़िक्र है तेरी कमी के किस्सों का,
जिसमे ज़िक्र है मेरे टूटे दिल के हिस्सों का,
जाओ ले जाओ,अगर साहस है पढ़ने का !
अन्यथा नाहक ही कुरेदो मत इन यादों को।
जो पलटोगे पन्ने पुराने
तो टूटेंगे उतना ही हम,
आँचल प्रेम का तुम्हारे बहुत छोटा है,
समेट पाओगे उतना ही कम।
वक्त बदला है,बदले हम नही,
सच कहूँ ! मोहब्बत आज भी पहले से कम नही।
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न जाने क्यों दिल की दहलीज से भी दूर रखती है वो मोहब्बत को,
शायद वो शख्श दिल नही दुनिया उजाड़ गया था उसकी।
अब शक भरे लहज़े से टटोलती हैं वो वफ़ाओं को मेरी,
शायद मैं ही हूँ वो, दिल नही दुनिया उजाड़ गया था वो जिसकी।।-