देव द्विवेदी   (देव द्विवेदी (ashok))
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Ashok

5 जून 🎂
Joined 16 May 2020


Ashok

5 जून 🎂
Joined 16 May 2020

Kuku🦋(2.🌀)

अल्पना जी YQ से दूर रहूँ ये तो मैं बिल्कुल भी नहीं चाहता हूँ
बगैर बताये गायब रहा इसके लिए माफी चाहता हूँ

आपकी लेखनी को इधर काफी समय से पढ़ नहीं पाया
पर अफसोस जब पढ़ा तो आपके YQ से जाने की खबर पाया

ये खबर बेहद दुःखित तो अवश्य कर गई
पर खुशी भी हुई कि आपको जीवन की असली दिशा तो मिल गई

ईश्वर खुद ही ईश्वर को ढूँढने में आपकी मदद अवश्य करें
हो सकता है इसी मार्ग पर हम मिलें और एकदूजे का मार्गदर्शन करें

एक ही अकाट्य सत्य है कि ईश्वर ही सत्य है
ईश्वर में समाहित हो जाना ही तो जीवन का सत्य है

पर ये लक्ष्य तभी मिलता है
जब मनुष्य आध्यात्म की ओर चलता है

ईश्वर पग पग पर आपकी मदद करें
ये देव करबद्ध हो ईश्वर से यही प्रार्थना करे

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आज लगी है दुनिया में ऐसी आग
जगह नहीं है श्मशान में लागने को आग

हे ! मानव बहुत नफरत फैलाली
तुमने फिजा में,
जर, जमीन, जोरू की वजह से
बनते हो दुश्मन एक दूजे के

पर आज कुछ भी काम न आया
तेरी मिट्टी को दो गज जमीं दिलाने में,
सब बैर भुला मिलजुल जीले प्रेम से
बचे हैं जो दो चार दिन जिंदगी के

तड़प-तड़प कर मरा जब तूँ मरा
पर कुछ भी काम न आया तेरा किया धरा

न तेरा रुतबा न तेरा पैसा
सब पड़ा रह गया वैसे का वैसा

लावारिश पड़ा है आज शरीर तेरा
देख जिसे मातपिता गर्व से कहते थे शेरा है ये मेरा

बीबी बच्चे भी डरें छूने से सिर तेरा
जिस पर कभी बंधा था सेहरा

अब तो तुझे अवश्य समझ आ गया होगा
प्यार भरी जिंदगी से अनमोल और कुछ नहीं होगा

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हे ! भगवान देख तेरी संतान का
आज हुआ है क्या हाल
खुद की उपजाई समस्या ने ही उसका
जीना किया है मुहाल
जिसने धारण किया है रूप विकराल
ऐसा कोई देश नहीं जो न हो बेहाल
भरा हुआ है शमशान,
काम नहीं आ रहा है विज्ञान का ज्ञान
जगह हो जिसमें खाली,
दिखता नहीं है ऐसा कोई अस्पताल
देखो शनि ने चली है कैसी टेढ़ी चाल
न पिता मदद कर सकता बेटे की
न बेटा पिता की
देखो कैसी मुश्किल घड़ी है आई
जिससे ममता पर भी पाबंदी है लगाई
माँ बेटे का सिर चाहती है सहलाना
चाहती है उसकी हर पीड़ा को मसलना
पर सब का है कहना, दूर है उससे रहना
देखो कैसी घड़ी है आई
जिसने ममता को भी आग है लगाई
देखो देखो कैसी मौत है आई
अपनों के हाँथों अपनों को
मिट्टी भी नहीं नसीब है हो पाई
सारी दुनियाँ दहसत में है जी रही
इसके जल्द जाने की कोई उम्मीद नहीं दिख रही
इस आफत का नाम कोरोना है साँई
जिससे सबकी जान पर है बन आई

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यादों की दरख़्त में छिपे हो तुम ऐसे
जमीं में छिपी हो गहरे
वट वृक्ष की कोई जड़ हो जैसे

दिल में अंकुरित बीज हो तुम उस वक्त का
साथ गुजारा हमनें जो कुछ वक्त था
बिछड़े जरूर हम
पर दोष न तेरा था, न मेरा था

तुम्हारी यादों की उम्र है ऐसी
वट वृक्ष की होती है जैसी

विचलित होता जब मन मेरा
पल में होता तुम्हारी यादों का सवेरा
तब सुकून मिलता है ऐसे
वट की छाँव में चला
शीतल पवन का कोई झोंका हो जैसे

काश हम साथ रह पाते
काश हम साथ रह पाते
क्या तुम्हारे मन में भी ऐसे ही भाव हैं आते

जरूर आते होंगे
जरूर आते होंगे
वरना सपनों में यूँ हमसे आँख न मिला पाते

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जिन्दगी को जितना भी जान पाओ,
उतना कम ही है
इसके रंग इतने,जितने पहचान पाओ,
उतने कम ही हैं
क्या चेतना
क्या अर्धचेतना
कैसा पिंजड़ा
जिसमें तूँ है जकड़ा
मोहमाया छोंड़
अकड़ अपनी तोड़
मतकर मन मस्तिष्क को कैद,
मायारूपी घुप्प अंधेरे में
तज इसको,
आ सत्य व यथार्थ के उजले सबेरे में
खामोशियाँ बनेगीं वरदान
जब हो खामोश लगाएगा ईश्वर में ध्यान
ईश्वर से नाता जोड़
बना अपनी जिंदगी बेजोड़
कर्णपटल तूँ अपने खोल
पी ईश्वर भजन की मिश्री का घोल
मूक बधिर बन,
मत ताक लालच रूपी दीवारों को
शुद्ध कर अपने देह रूपी पापी पिंजड़े को
मुक्त कर अपनी कैद आत्मा को
समर्पित कर जीवन अपना परमात्मा को

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इंसान विकृत मानसिकता
निकृष्ट प्रवृत्ति का होता जा रहा है
या ये कहूँ दूषित और पाप युक्त कमाई का
अन्न खा-खाकर दानव बनता जा रहा है

बुध्दि, विवेक, मानवीय गुण
सब कुछ खोता जा रहा है
इंसानियत को तार तार कर
इंसान कहलाने का हक खोता जा रहा है

बेजुबान पशुपक्षी
पेड़-पौधों की तो बात छोंड़ों
निरपराध अबोध मासूमों को भी नहीं बख्स रहा है

उनका व उनके अंगों का व्यापार कर
मानवता को शर्मसार कर रहा है
मासूम बच्चियों को खत्म कर
खुद अपने विनाश की इबारत लिख रहा है

इसे ही अपना विकास समझ रहा है
कुछ पिंडों पर अपने खिलौने भेजकर
खुद को भगवान समझने की भूल कर रहा है

विधिना के विधान से छेड़छाडकर
प्रकृति से खिलवाड़ कर
अपना व जीव जन्तुओं का प्रतिरूप बना
खुद को सृष्टि रचयिता समझने की भूल कर रहा है

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विचारों की ज्वलंत आँधियाँ जब रुकेंगी
तभी तो सुकून रूपी बारिश की बूँदें
शीतल पवन के साथ गिरेंगी

जो तुम्हारे मन मस्तिष्क को तृप्त कर सकेंगी
अगर मन तृप्त तो तन भी तृप्त होगा

हाँ अपने अन्तर्मन की खिड़की
अवश्य खुली रखना वहीं से तो आएगा

सुगंधित, शीतल हवा का वो अनमोल झोंका
जो तुम्हारे तन मन से टकराएगा

टकरा तुमसे तुमको बर्फ सा शीतल कर जाएगा
तब तन मन तेरा सुकून भरी
नींद की गहराइयों में समा जाएगा

बेशक तुम्हें भोर में जगने का इंतजार रहा होगा
पर सूरज सर पर चढ़ आया होगा
जब तक आकर तुम्हें किसी ने जगाया होगा

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देखो-देखो कलयुग परवान चढ़ रहा
यहाँ हर रिश्ता पल-पल मर रहा

इंसान अब अपने द्वारा ही
सिंचित पोषित पल्लवित पुष्प को ही मसल रहा है

हवस में अंधा हो
अबोध मासूमों के विश्वास को भी प्रतिपल छल रहा

न ईश्वर का डर है, न समाज का, न कानून का
बेफिक्र हो मांस नोच खा रहा अपनी ही जनी संतान का

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जब आँखों में ख्वाब सजा हो किसी की चाहत का
तो नींद कहाँ होती आँखों में, सिर्फ इंतज़ार होता इक आहट का

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प्रेम रंग वो रंग है
जिसे भर -भर अंजलि खूब लुटाओ
तो हजार गुना वापस पाओ

प्रेम के दो मीठे बोल बोल
फिर देख इसका मीठा खेल

दुश्मन भी कहे सब बैर भूल
आ गले लग जा मिटे हिय का शूल

हे! इंसा तूँ प्रेम को ही बना जीवन का वसूल
ईश्वर भी होते प्रेम के भूखे ये भूलकर भी मत भूल

प्रेम ही तो है सृष्टि में
आनंदित जीवन जीने का मूल आधार

वीरान रहे वो हृदयस्थल
जिसमें न हो इसका अल्पमात्र का भी संचार

जिस हृदय में न उपजे प्रेम का ये अंकुर
वो हृदय पाषाण बन रहे बंजर का बंजर

रंगहीन,खुशी विहीन
जिन्दगी जीने को रहता लाचार
आती नहीं जीवन में उसके खुशियों की कोई बयार

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