जिन्दगी को जितना भी जान पाओ,
उतना कम ही है
इसके रंग इतने,जितने पहचान पाओ,
उतने कम ही हैं
क्या चेतना
क्या अर्धचेतना
कैसा पिंजड़ा
जिसमें तूँ है जकड़ा
मोहमाया छोंड़
अकड़ अपनी तोड़
मतकर मन मस्तिष्क को कैद,
मायारूपी घुप्प अंधेरे में
तज इसको,
आ सत्य व यथार्थ के उजले सबेरे में
खामोशियाँ बनेगीं वरदान
जब हो खामोश लगाएगा ईश्वर में ध्यान
ईश्वर से नाता जोड़
बना अपनी जिंदगी बेजोड़
कर्णपटल तूँ अपने खोल
पी ईश्वर भजन की मिश्री का घोल
मूक बधिर बन,
मत ताक लालच रूपी दीवारों को
शुद्ध कर अपने देह रूपी पापी पिंजड़े को
मुक्त कर अपनी कैद आत्मा को
समर्पित कर जीवन अपना परमात्मा को
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