सर ए राह उछाला है उसने आलोक किसी का
और तुम कहते हो मोहब्बत पर कुर्बान ज़िंदगी ?-
आख़िरी रात होगी ये मेरे बनने बिगड़ने की कहानी में
मिल जाएगा मुकम्मल इश्क़ या लुट जाएँगे भरी जवानी में-
चलो! ज़िंदगी का आख़िरी समझौता कर लेते हैं
हिस्से में दीं खुशियाँ तुम्हें, हम ग़मों को ले लेते हैं
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छोड़ देता है जिनके जज़्बातों को सुनना ज़माना
कहानी उनकी अक्सर दो पन्नों में रह जाती है-
हज़ारों ख़्वाब जलते हैं तब बनते हैं हम जैसे
ग़मों में डूबकर भी मुस्कराना आसान थोड़े है ।-
कोई चाहता ही नहीं है खुश रहना यहाँ
हर एक शख़्स डूबा है ग़मों के समंदर में-
साथ नहीं देता कोई सबकी अपनी-अपनी मज़बूरी है
ख़ुद तक सीमित दुनियां में होती कहाँ हसरत पूरी है-
अज़नबी शहर की हर सुबह मेरे ग़म में बदल जाती है
उम्मीदों की एक किरण धूप में भी कहाँ नज़र आती है
और भूल बैठा हूँ अब घरों के दरवाज़े सारे ही अपनों के
डरता हूँ मौत से हरपल ज़िंदादिली भी तो क़हर ढाती है-
पंखा ही आखि़री उम्मीद हो जाता है उसके के लिए
शख़्स ठोकरें जो चहुं ओर से खाकर थक जाता है
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