माना कि गलतियां की
तभी तो
जिया भी हूँ और सीखा भी।-
मेरा व्यक्तित्व मेरे शब्दों में है"
छोटे से सफर की चाह लिए
निकले थे हम
वो मिले सफर में
तो चाहत खलने लगी-
संदल की खुशबू चुनूं या उसके तन की
मासूमियत उसकी चुनूं या दर्पण की
मुस्कान चुनूं उसकी या खिलते गुलाब की
आभा उसके मुख की चुनूं या महताब की
पिरोने हैं कई शब्द अपनी किताब में
मिसाल उसकी चुनूं या कालिदास के ख्वाब की-
वो बूंद जो सागर से मिलने गई, और उसी की होके रह गई
वो बूंद जो ओस बनकर हीरे-सी पत्ती पर लिपटी
और वहीं से वाष्प हो गई
वो बूंद जो मिट्टी के करोड़ों कणों से लड़ते हुए
जड़ों तक पहुंचीं और पैडों की होकर रह गई
वो बूंद जिसने हजारों मील का सफर तय किया,
फसल का होने के लिए
वो बूंद जो डटी रही स्रोत के दिल में,
ताकि ले ना उड़े हवा सूरज बादल उसे
वो बूंद जो गिरते ही समा जाती है
प्यासी धरती में
वो बूंद, आज तुम कहां हो।
आज तुम कहां हो।-
अच्छी बात ये है
कि तुम ज्ञान बाँटते हो हर जगह
बुरी बात ये है
कि मैं तुम्हें जानता हूँ-
दर्द और दूरियों का मसला कुछ ऐसा है
कि उस तक खबर पहुँचानी हो तो
दुनिया को बताना पड़ता है
***-