वो बूंद जो सागर से मिलने गई, और उसी की होके रह गई वो बूंद जो ओस बनकर हीरे-सी पत्ती पर लिपटी और वहीं से वाष्प हो गई वो बूंद जो मिट्टी के करोड़ों कणों से लड़ते हुए जड़ों तक पहुंचीं और पैडों की होकर रह गई वो बूंद जिसने हजारों मील का सफर तय किया, फसल का होने के लिए वो बूंद जो डटी रही स्रोत के दिल में, ताकि ले ना उड़े हवा सूरज बादल उसे वो बूंद जो गिरते ही समा जाती है प्यासी धरती में वो बूंद, आज तुम कहां हो। आज तुम कहां हो।