वो शाम बस वही ठहर गयी ना मेरे स्याह लफ़्ज़ों से गहराई, ना धीमी रोशनी को थाम पायी.. धुंधले आसमाँ में सहमे सहमे तारे भी गिन कर बस दो ही थे; उनके दरमियाँ कहीं झांक कर ख्वाबों ने मुस्कुराकर नज़रें चुराई सुकून भरी वो शाम बस वही ठहर गयी..
बहुत तरसाते हैं वो एक पल में बरसो की दूरी बना कर सारी गुफ्तगू आँखों ही आँखों में ख़ामोशी से कर जाते हैं पर फिर भी उन का असीर बन के मुस्करा देता हैं यह दिल!