अपने छोड़ गए पैसे नहीं थे।
योर कोट्स पर आए, ठिकाना
ढूंढा,दिल को सुकूं दूं सोचा कहीं दिल की लिख दूं।
यहां भी पैसे खतम,नो पेड राइटर देशु कहां जाए।
पर यूं उन सा नहीं योर कोट्स, चंद लम्हे ही सही,
ऐड दिखा दिल में भीतर आने तो दे रहा है।
पैसा है सता रहा है न होकर।— % &-
विश्वास की तुलना हम कांच से कर सकते हैं,
क्योंकि दोनों को ही बनाने में बहुत मेहनत लगती है।
परंतु तोड़ना आसान है,
और दोनों जब टूट जाते हैं तब जोड़ पाना मुश्किल होता है।-
कोरे कागज पर क्या नहीं लिख सकते हैं आप।
लिखा,
सो मिटाना मुश्किल।
एसी ही जिंदगी हमारी।
कागज़ पर लिखा मिटाना है ,
फाड़ोगे उसे???
जलाना होगा।
भूलाना होगा,
दाग मिटाने हैं?
तपाना होगा, खूद को भट्ठी में, दुनिया को,
दिखाना होगा।
छुपा नहीं पाओगे,दाग छुपते नहीं हैं,
लगने के बाद,मिटते नहीं हैं।
बताना होगा,हुई भूल,अब सब, शुरू से, सही से
जमाना होगा।
फिर से , दिखाना होगा। हम सुधरेंगे,
कसम खाना होगा । इसलिए अब,
समझकर ,कदम
उठाना होगा।
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मुझे वही दिन चाहिए
वही पुराने सीन चाहिए
न थिरक सका कभी जिनपर,
मुझे अब वही धुन चाहिए।
क्यों ख्वाब अब उन्हीं के आते हैं
कयामत दिल में गुज़र जाते हैं
न सिरकत की, हमारी यही गलती
यादें वो हर दिन सताते हैं।
वो हमें उनका मनाना
हमरा ना कर मुकर जाना
क्या करें बनकर फरियादी
अब मुकर कर पछताना।
ना हुआ इकरारनामा
दर्द दिल में अब क्यूं हम्मा
याद बंजर भूमि जैसे
लग रहे बिन फ़सल सूना।
मुझे अब वही दिन चाहिए।-
मानव मस्तिष्क एसा है न कि पिछली बातों को भूल नहीं पाता जल्दी।
अब नकारात्मक सोचोगे तो दर्द मिलेगा और सकारात्मक सोचोगे तो गलतियां सुधर जाएंगी।-
मतलबी दुनिया है,
जीता वही है, जो खुद से मतलब रखे।
पर अब भी अच्छाई मुकर जाता है, कहीं न कहीं,
बुरे कर्मों से।
तभी तो दुनिया आबाद है अदब से अभी तक।-
बस दिल की अल्फाजों को उकेर देना कागज़ पर।
बिखेर देना श्याही कलम की... और लो शायरी हो गई।-
याद कि इक खिड़की खुली रह गई,
मंद हवा का इक झोका, अंतर्मन से टकराया,
वो यादें,उभर कर आईं.....
जो कभी अपने थे,
नया साल आया,बस...
तुम न आई।
यादें झरोखे से, उड़ कर आईं।
बस तुम न आई,
याद कि इक खिड़की खुली रह गई।
खुली रह गई...........!
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