Deevanshu Nirwan   (देव)
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Joined 15 September 2019


Joined 15 September 2019
26 SEP 2022 AT 10:39

करते हैं इंतज़ार,
उतरेगा चाॅंद
आज हमारे द्वार,
किया फिर
हमने भरपूर प्यार,
मुकम्मल हुआ
अब हमारा परिवार।

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14 JUL 2022 AT 10:34

लौ ने मरहम लगा दिया,
भरने लगे घाव जिस्म के,
रूह को आराम आ गया,
नज़र लड़ी थी परसों ही,
गुस्ताख़ दिल ने फिर से,
मर्ज़-ए-इश्क़ लगा दिया।

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17 MAR 2022 AT 17:38

आज भी खाली रखी है
हमारी पास वाली सीट,
ना जाने कब लौटे आओ,
अधूरे छोड़े उस साथ को
इस बार तुम पूर्ण निभाओ,
हृदयाघात किया था जो
उस घाव को तुम भर जाओ,
प्रतीक्षा की पराकाष्ठा को
प्रेम से फलीभूत कराओ।

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7 MAR 2022 AT 17:21

कहीं गुम हो गई है,
बंद हैं सारे रिश्ते नाते,
बंदीगृह में आस लगाते,
ताले की निर्बलता ढूंढ,
द्वारपाल की ऑंखें मूंद,
रात्रिकाल में घात लगाते,
स्वतंत्र रिश्तों के उपयुक्त,
नवकुंजी निर्माण कराते।

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7 FEB 2022 AT 18:56

जो मुरझाकर कर
भी महक सकता है,
टूट कर और भी
हसीन लगता है,
लग जाए किसी की
ज़ुल्फों में जब,
चाॅंद ख़ुद ज़मीं पर
उतर सकता है।— % &

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5 FEB 2022 AT 10:05

चाॅंद अकेला हो रहा है,
सितारे बीमार लग रहे हैं,
सूरज ढलकर सो रहा है,
ग्रह नक्षत्र बिगड़ रहे हैं,
तप का फल खो रहा है,
पृथ्वी दोष से व्याकुल है,
सौरमंडल रो रहा है,
ब्रह्माण्ड में अराजकता,
यह सब क्या हो रहा है।— % &

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27 JAN 2022 AT 18:32

इस क़दर तुम हुस्न का
दीदार ना कराया करो,
थम जाती है धड़कन
इतना नूर देख कर।

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24 JAN 2022 AT 18:14

जिसे पाने के लिए
सौभाग्य लगता है,
दर्शन से जिसके
सारा जग चहकता है,
नन्ही हथेलियाॅं जब
छूती हैं आकाश,
पश्चात ही उसके
वो सूरज निकलता है।

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23 JAN 2022 AT 16:44

जब अपने ही ना साथ दें,
गिराकर ख़ुद मुॅंह के बल
उठाने को फ़िर हाथ दें,
तिरस्कार हम कराकर भी
लड़े हैं जिनकी ख़ातिर रोज़,
दिखाकर वक्त गुज़र गए वो
जताकर हमको अफ़सोस।

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20 JAN 2022 AT 17:43

क्या,
तुमको मुझ पर,
क्यों अंधकार में बैठी हो,
बाहर आओ कक्ष से अपने,
धूप बिखर कर आई है,
साथ उमंगे लाई है,
जाड़े के कोहरे को चीर,
फिर से खिलने आई है,
तुमसे मिलने आई है।

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