आज भी खाली रखी है हमारी पास वाली सीट, ना जाने कब लौटे आओ, अधूरे छोड़े उस साथ को इस बार तुम पूर्ण निभाओ, हृदयाघात किया था जो उस घाव को तुम भर जाओ, प्रतीक्षा की पराकाष्ठा को प्रेम से फलीभूत कराओ।
कहीं गुम हो गई है, बंद हैं सारे रिश्ते नाते, बंदीगृह में आस लगाते, ताले की निर्बलता ढूंढ, द्वारपाल की ऑंखें मूंद, रात्रिकाल में घात लगाते, स्वतंत्र रिश्तों के उपयुक्त, नवकुंजी निर्माण कराते।
चाॅंद अकेला हो रहा है, सितारे बीमार लग रहे हैं, सूरज ढलकर सो रहा है, ग्रह नक्षत्र बिगड़ रहे हैं, तप का फल खो रहा है, पृथ्वी दोष से व्याकुल है, सौरमंडल रो रहा है, ब्रह्माण्ड में अराजकता, यह सब क्या हो रहा है।— % &
जब अपने ही ना साथ दें, गिराकर ख़ुद मुॅंह के बल उठाने को फ़िर हाथ दें, तिरस्कार हम कराकर भी लड़े हैं जिनकी ख़ातिर रोज़, दिखाकर वक्त गुज़र गए वो जताकर हमको अफ़सोस।
क्या, तुमको मुझ पर, क्यों अंधकार में बैठी हो, बाहर आओ कक्ष से अपने, धूप बिखर कर आई है, साथ उमंगे लाई है, जाड़े के कोहरे को चीर, फिर से खिलने आई है, तुमसे मिलने आई है।