With a long run of menacing thoughts, maybe I was spiralled around my own beliefs; what is that one thing I can do right to make things go the way I want. Was it trusting my instincts maybe that's what I did wrong.
Will I ever be able to mend such lengthening versions of opinions that still annihilate me deep down or just sccumb to the thoughts that it was never meant to be. Culminating to such intrusive notions are so dire that I believe finding that 'X' from trigonometry would be much simpler.
- Thoughts around adulting life-
Standing on banks of the city of light
Havoc of darkness curtails within
Wrecking all the desires to breathe
With sweaty eyes I lie down here
In the midst of the city of temples
Gazing down to my peace in pyre-
देखा तो है नजारे कई...
पर कहूं क्या, कोई तुमसा नहीं ?
बातें ऐसी तो तुमने सुनी होंगी कई...
और हज़ार शब्दों की ये गाथा भी नहीं...
बस चंद कलमों की बातें हैं कई...
शायद आंखें भी मेरी करती उनको उजागर नहीं...
ऐसी कहानियां भी तो तुमने सुनी होंगी कई...
किंतु मन के वेग पर भी तो अब काबू नहीं...
ऐसे तो वर्णमाला में हैं अक्षर कई...
पर शायद हृदय की व्यकुलताओं के लिए कुछ भी उक्त नहीं...
चित्त के भावों को रूप देने के होंगे प्रकार कई...
मगर रहने दो,
कहूं क्या; बातें ऐसी तो तुमने सुनी होंगी कई...
कोई तुमसा नहीं, कोई तुमसा नहीं।।।-
यूं राह देखना कैसे छोड़ दूं...
साथ निभाने के वादे कैसे तोड़ दूं...
प्रेम भरे उन लिफाफों को कैसे फाड़ दूं...
दामन को तुम्हारे कैसे छोड़ दूं...
माना अभी कुछ सही नहीं बीच हमारे...
पर मेरी सांसे भी तो चलतीं हैं तुम्हारे ही सहारे...
टकटकी लगा देख रहा नैनों को तुम्हारे...
इसी बहाने शायद दिख जाएं तुम्हे अश्क हमारे...
यूं राह देखना कैसे छोड़ दूं...
साथ निभाने के वादे कैसे तोड़ दूं...
आंखों से ओझल कैसे होने दूं...
यादों को तुम्हारे कैसे धूमिल कर दूं...
पुलकित मन को यही रोग है भाया...
और तुमने ही तो ये विकार है जगाया...
वादे भी सारे करने तो तुमने ही सिखाया...
ना जाने अब तुमने ये अश्रुओं की माला मुझको क्यों पहनाया...
यूं राह देखना कैसे छोड़ दूं...
साथ निभाने के वादे कैसे तोड़ दूं...
चित को तनु विरक्त कैसे कर दूं...
इन अफसानों का रोमंथ कैसे रोक दूं...
शायद जिंदगी की हर कहानी बुनने में साथ तुम्हारा ही चाहिए...
परिकल्पनाओं को गढ़ने में सोहबत तुम्हारी ही चाहिए...
ताउम्र सारे फसाने चित्रित करने तुम ही चाहिए...
मुझे तो शायद बस तुम और तुम ही चाहिए।।।
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रसूखदारों ने कहा आज फैसला सुनाएंगे...
गलती जिसकी सज़ा उसे ही दिलवाएंगे...
पर आया जब फरमान का दिन...
रहे जिस लिए थे सब घड़ियां गिन...
कहा उन्होंने , हां कर तो रहे ये कानून का उल्लंघन ...
और अपराध भी है यह जघन्य...
अंततः, अब एक तरकीब अपनाओ...
छुप जाओ तुम सब अंधियारे में...
क्योंकि है नहीं लौ अपनी हस्ती में...
सोचा ना था होगी अदालत ऐसी...
पर थी ना जाने ये दस्तूर कैसी...
कहा उन्होंने, करते रहो तुम गुनाह...
मिलेगी सबको यहां पनाह...
जिनपर होगा अपराध...
उन्हें ही मिलेगी कैद...
बात है ऐसी...
रात है ऐसी...
चोरों को आज़ादी...
और बेटियों को मिली है फांसी...
इंसाफ भी कुछ जीत जाती शायद...
फेर अगर समाज की बुनाई में हो जाती...
रोक लेते अगर वो अपने बेटों को...
कहकर, "मत निकलो, हो तुम्ही खतरा"...
रह जाओ तुम इन चार दिवारियों में...
अब जब संयम सीख नही पाए तुम तो...
क्यों दे दें हम हार बंदिशों के अपनी सुताओं को...
गलती नही है उनकी जान गए अब हम तो।।।-
सोचा एक नई तस्वीर बनाऊं...
कामनाओं की एक नई काया रच दूं...
ख्वाबों को बुनते बुनते एक अरसा हुआ...
आज एक पग उस ओर चल दूं...
दिन प्रतिदिन गवां कर...
मन को यूहीं रोज़ फुसला कर...
चंचलता को जवानी का रोग बतलाकर...
कर ली नदानियां बहुत अब...
अन्ततः ह्रदय को संकल्पित कर...
सोचा एक नई तस्वीर बनाऊं...
कामनाओं की एक नई काया रच दूं...
यह विश्वामित्र की प्रतिज्ञा सा विराजमान मैं...
किंतु फिर वह संदेश "आज शाम free हो ना ?"
सभी कल्पानाओं को दिशा विहीन कर...
अस्थिर मन में नया विकार जगा कर...
सपनों की नई लड़ियां सजा कर...
ह्रदय ने बेताबी से आश्वासित कर...
स्पष्टता से कहा,
कल एक नई तस्वीर बनाना...
अब कल कामनाओं की एक नई काया रचना...
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लोग जाते होंगे for aesthetics to Agra,
तुम तो संग मेरे बनारस ही चलना...
लोग for adrenaline rush करते होंगे rafting,
तुम तो संग मेरे गंगा में डुबकी लगाना...
लोग करते होंगे share happy moments,
तुम तो संग मेरे अपने आंसुओं को भी बांधना...
लोग करते होंगे thousands of promises,
तुम तो उम्र भर संग चलने का वादा ही करना...
लोग fulfill करते होंगे मांगें सारी,
तुम तो इस संग मेरी मांग भी भरना...
लोग believe करते होंगे in situationships,
पर तुम तो संग मेरे प्रेम रंग में ही रंगना...-
बावरा सा मन क्या जाने...
समझे कैसे वो संधि मेरी...
रोक रखा था ख्यालों को...
ना जाने फिर फिसलकर कैसे...
तफ़्ककुर पे तेरे रुक सा गया...
ज़हन में रोका तो ना था तुझको...
जाने तब भी तू कैसे घर कर गया...
तू तो है ही परछाई सा...
नजदीकियों में भी, अभिगम से दूर सा...
बस में यूं तो करना था हृदय को...
ना जाने वश में तेरे ये कब हो गया...
ना जाने तेरी मुस्कान से कत्ल कब हो गया...
ना जाने तेरे नैनों का शिकार कब हो गया...
ना जाने तेरी अदाओं की गुलाम कब हो गया...
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एक सुबह फिर आना...
वो बातें कभी तुम फ़िर दोहराना...
राज़ सारे मुझको फ़िर बतलाना...
बातें तुम्हारी मुस्कुराहट तो आज भी लाती हैं...
यूं बेरुखी से फ़िर ना जाना...
ख्वाबों से निकलकर अब तुम हकीकत में आना...
आंखें मूंद कर चल लूंगा साथ तुम्हारे...
पलट कर एक टक तो निहारना...
अपनी अदाओं से मेरी धड़कनों को तुम ना बढ़ाना...
दो कदम बढ़कर मेरे हाथों को भी कभी थामना...
एक सुबह तुम फिर आना...
वो बातें कभी तुम फ़िर दोहराना...-
कभी धूप-सी, कभी छांव-सी...
तो कभी जैसे अंगार सी...
तू बस थोड़ी खूब ही नहीं...
पर बेहद खूबसूरत-सी...
यादों ने तेरी फ़िर कुछ शिरकत की है...
साथ बिताए लम्हातों ने फ़िर दस्तक दी है...
कुछ सुध तो होगी तुझे भी...
कभी मंदिर, तो कभी बगीचे घूमना...
यूं एक बार एतेफाक से मिलकर...
फ़िर रोज़ साथ रहना...
याद है, कभी बंक कर...
तो कभी यूंही बातें हज़ार करना...
कभी क्लासेज़ तो कभी झूले...
मानो बस हम ना हमारे दिल भी थे मिले...
दास्तां सारे तो शायद बयां कर भी दूं...
पर जज्बातों को उकेरने के शब्द कहां ढूंढू...
यादों में तू अब भी उतनी ही जीवांत-सी है...
मानो ये सारी कल की हीं बात-सी है...
शायद कभी मिलने के और बहाने मिल जाएं...
साथ तेरे कुछ और अफसाने बन जाएं...
तू मेरी बस दोस्त ही नहीं थी ब नी...
तू तो थी और रहेगी हमेशा मेरी सखी💕
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