Deepti Goel   (दीप्ति गोयल🔥"लौ"🔥)
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Joined 14 November 2017


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Joined 14 November 2017
12 MAR AT 8:09

आजीवन कर्मरत मनुज
नित प्रयोजन की खोज में,
चेष्टाऍं अनगिनत असीमित
अभाव पूर्ति की अनुभूति में।

नित नये संकल्प, वचनबद्ध
योजनाओं के चक्रव्यूह में,
गत-आगत विचार, मग्न, 
बंधित स्वरचित पाश में।

निश्चित-अनिश्चित सब व्यर्थ 
अनायास फलित कर्मफल,
दिशा-दिशा प्रकीर्णित किरण
प्रस्फुटित एक ही पुंज से।

हृदय कभी प्रफुल्लित 
कभी अवसाद में लीन,
जीवन-मरण एक समान
मात्र श्वास है हर श्वास में।

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7 MAR AT 7:46

Life becomes easier when
we accept problems as a part of life.







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17 MAY 2024 AT 19:19

कुछ लोगों को नहीं मिला
जो उन्होंने चाहा..
कुछ लोगों को नहीं मिला
जो उन्हें मिलना चाहिए था..
कुछ लोग रह गये वंचित
अपने अधिकारों से,
अपनी इच्छाओं से..
शायद नियति की इच्छा
ही है सर्वोपरि,
और उचित भी..
बस भान नहीं हो पाता
व्यक्ति को उस समय..
जब उलझा होता है वह
जीवन के झंझावातों में..
किंतु बाद में समझ जाता है
प्रत्येक चक्र, प्रत्येक घटना,
प्रारंभ से अंत तक।

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18 APR 2024 AT 22:59

इतना सा आसमां मिला कि
दूर तलक नज़र जाए तो जाए कैसे?
वो दिल के करीब है इतना कि
और पास आना चाहे तो आए कैसे?

ये दिल का दरिया है जो डुबा लेता है
सारे गम और सारी खुशियाॅं भी..
मुनासिब न था‌ जो छिपाना भी वो गम
आखिर छिपाए तो छिपाए कैसे?

कोई जागीर कोई वसीयत किसी सूरत
जब उसके हिस्से लिखी गई ही नहीं..
तो अब किस सूरत से जाए वो मुलाजिम
हक़ जताए तो जताए कैसे?

ये जिंदगी के ऐश ओ' आराम से उसे
कभी कोई वास्ता तो रखना ही न था..
गफ़लत ये है कि सारे घराने-ज़माने को
वो बाबत बताए तो बताए कैसे?

ये उम्र के‌ पड़ाव हैं कि इंसां को कभी
रुतबे की चाहत है तो कभी जन्नत की..
टूटे चाह मन की, न मन टूटे कभी वो
'शम्मा' ऐसी जलाए तो जलाए कैसे?

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24 OCT 2023 AT 19:56

एक व्यक्ति जो गरीब नहीं है,
जीवनपर्यंत अभ्यास करता‌ है
गरीब रहने का,
ताकि भविष्य में
वह कभी गरीब न हो।

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4 JUL 2023 AT 23:00

एक पक्षी उड़ता है जब
चोटिल पंखों के संग,

उसे करना पड़ता है परिश्रम
औरों की अपेक्षा अधिक,

उसे अपना लक्ष्य पाने में
समय लगता है
औरों की अपेक्षा अधिक,

वह सामर्थ्य भी लगा देता है
औरों की अपेक्षा अधिक।

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20 FEB 2023 AT 19:32

हो कोई तो आग ऐसी जो इस सीने को राख कर दे,
उठे ऊॅंचाइयों पर 'लौ' कि ख़ुदा पहले खाक कर दे।

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17 AUG 2022 AT 18:19

मैंने चाहा हमेशा कि मुझे बेदख़ल कर दिया जाए।
मिरी बस एक इस जिद को मुकम्मल कर दिया जाए।


चाहे कभी कोई मुझे याद रखे फिर या न रखे,
घराने की तस्वीर में मुझे शामिल कर दिया जाए।


मैंने पूरा न किया हो किसी की भी ख्वाहिश को अगर,
तो मिरी चाहतों का भी कत्ल कर दिया जाए।


मैंने मॉंगा है ख़ुदा से जो हर दफा इस ज़िंदगी में,
चाहे तो उसे अगली उम्र के लिए अद्ल कर दिया जाए।


चरागॉं की "लौ" जो जलती है मिरे ऑंगन में हर सूरत में,
मैं न रहूॅं जिस दिन, उसको भी सजल कर दिया जाए।

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9 AUG 2022 AT 21:49

हठी बनना
स्वाभाविक तौर पर
बाल्यावस्था का गुण है;
किंतु..
व्यक्ति चाहता है
सदैव हठी बने रहना
किसी एक व्यक्ति के समक्ष,
ताकि उसमें जीवंत रह सके
शिशु जैसा स्वभाव;
किंतु..
कभी उत्तरदायित्व का भार
कभी बुद्धिमत्ता की अपेक्षा
छीन लेती है व्यक्ति का स्वप्न
सदैव शिशु बनने का।

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16 JUL 2022 AT 21:24

एक व्यक्ति की सफलता में
आलोचकों की भी उतनी‌‌ ही
बड़ी भूमिका होती है,
जितनी की सहयोगियों की।

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