सुनना, सीखना, विचार करना
हो जाता है व्यर्थ उस स्थिति में
जब व्यक्ति भूल जाता है कि
सबसे महत्वपूर्ण है इन सभी का
व्यवहार में उचित उपयोग।-
एक "लौ" बनकर जलता है..
एक "लौ" बनकर जलाता है..
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वर्तमान समय की मांग भिन्न होती है
सदैव ही भविष्य में उपजी मांगों से,
फिर भी वर्तमान की गतिविधियॉं ही
निर्माण करती हैं हमारे भविष्य का।
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इस जीवन में प्राप्त करने के लिए
हैं अनगिनत, असीमित वस्तुऍं...
किसी को पहले प्राप्त हुआ ऐश्वर्य,
और किसी को सुख व संतोष।
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आजीवन कर्मरत मनुज
नित प्रयोजन की खोज में,
चेष्टाऍं अनगिनत असीमित
अभाव पूर्ति की अनुभूति में।
नित नये संकल्प, वचनबद्ध
योजनाओं के चक्रव्यूह में,
गत-आगत विचार, मग्न,
बंधित स्वरचित पाश में।
निश्चित-अनिश्चित सब व्यर्थ
अनायास फलित कर्मफल,
दिशा-दिशा प्रकीर्णित किरण
प्रस्फुटित एक ही पुंज से।
हृदय कभी प्रफुल्लित
कभी अवसाद में लीन,
जीवन-मरण एक समान
मात्र श्वास है हर श्वास में।-
कुछ लोगों को नहीं मिला
जो उन्होंने चाहा..
कुछ लोगों को नहीं मिला
जो उन्हें मिलना चाहिए था..
कुछ लोग रह गये वंचित
अपने अधिकारों से,
अपनी इच्छाओं से..
शायद नियति की इच्छा
ही है सर्वोपरि,
और उचित भी..
बस भान नहीं हो पाता
व्यक्ति को उस समय..
जब उलझा होता है वह
जीवन के झंझावातों में..
किंतु बाद में समझ जाता है
प्रत्येक चक्र, प्रत्येक घटना,
प्रारंभ से अंत तक।-
इतना सा आसमां मिला कि
दूर तलक नज़र जाए तो जाए कैसे?
वो दिल के करीब है इतना कि
और पास आना चाहे तो आए कैसे?
ये दिल का दरिया है जो डुबा लेता है
सारे गम और सारी खुशियाॅं भी..
मुनासिब न था जो छिपाना भी वो गम
आखिर छिपाए तो छिपाए कैसे?
कोई जागीर कोई वसीयत किसी सूरत
जब उसके हिस्से लिखी गई ही नहीं..
तो अब किस सूरत से जाए वो मुलाजिम
हक़ जताए तो जताए कैसे?
ये जिंदगी के ऐश ओ' आराम से उसे
कभी कोई वास्ता तो रखना ही न था..
गफ़लत ये है कि सारे घराने-ज़माने को
वो बाबत बताए तो बताए कैसे?
ये उम्र के पड़ाव हैं कि इंसां को कभी
रुतबे की चाहत है तो कभी जन्नत की..
टूटे चाह मन की, न मन टूटे कभी वो
'शम्मा' ऐसी जलाए तो जलाए कैसे?-
एक व्यक्ति जो गरीब नहीं है,
जीवनपर्यंत अभ्यास करता है
गरीब रहने का,
ताकि भविष्य में
वह कभी गरीब न हो।-
एक पक्षी उड़ता है जब
चोटिल पंखों के संग,
उसे करना पड़ता है परिश्रम
औरों की अपेक्षा अधिक,
उसे अपना लक्ष्य पाने में
समय लगता है
औरों की अपेक्षा अधिक,
वह सामर्थ्य भी लगा देता है
औरों की अपेक्षा अधिक।-
हो कोई तो आग ऐसी जो इस सीने को राख कर दे,
उठे ऊॅंचाइयों पर 'लौ' कि ख़ुदा पहले खाक कर दे।-