फिर एक बार, बार बार पीछे जाने को जी करता है,
वही शाम का वक्त मगर कुछ बढ़ा हुआ...आकाश को छू लेने का अरमां और पक्षियों को देखना...
किसी बच्चे को देखकर अपना बचपन याद आता है...
सुकून और अकेला होना भी कितना अच्छा लगता है,
आंखों में कुछ चुनिंदा बड़े ख्वाबों की गहराई कुछ ढूंढती आंखें...मां के साथ बिताने को कुछ पल फिर से जीने को जी करता है.. छत पर हल्की सुनहरी धूप और गुनगुनी हवा का छूना...खामोश सा पर्वत और कानो को भाने वाला संगीत...सच है बचपन बहुत प्यारा होता है..!!
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