इत्र सा महकता तेरा नाम, खरीदने की कोशिश करने वाला नाकाम, चाहे वो कोई खास हो या आम, इस महक की बराबरी मुश्किल का है काम, बस इसी के नशे में रहते है सुबह शाम, इसके आगे फीके महखाने के ढ़ेरों जाम,
पास रहा करते थे तुम जब मेरे, सपने खुद–ब–खुद पूरे होते थे तब मेरे, जिस दिन तुम्हे गुस्से में आकर वो बातें कही, बस तभी से दुश्मन से लगते है अब ये लब मेरे ।