२१२२ २१२२ २१२२ २१२
दिल कहाँ ये जानता था उसका तो है घर यहाँ!
शायरी का शौक़ आखिर लेके आया फिर यहांँ!
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YQ से जुड़कर धीरे-धीरे लिखना सीख रही हूंँ।
😇😇... read more
८-क्यों तेरे दर्द से हटूँ पीछे,
बन गया तेरी तो दवा हूँ मैं!
९-नींद में तेरी ख़लल ना पड़ जाए ,
रातभर के लिए जगा हूँ मैं!
१०-जो तू डरता है मुझसे कहने से,
यार तेरी वही सदा हूंँ मैं!
११-अब मुख़ातिब हूँ मैं तेरे दिल से,
तेरे अंदर ही कहीं बसा हूँ मैं!
१२-कर दे सबकुछ ही मुझमें तू खाली,
ले गले तेरे आ लगा हूँ मैं!
१३-मिल सके जो 'शिखा' सुकूँ तुझको,
बन के बादल बरस गया हूँ मैं!
-दीपशिखा-
२१२ २१२ २१२ २१२
चैन मिलता नहीं तेरे जाने के बाद,
दर्द मिटता नहीं मुस्कुराने के बाद!
गुम हुई है खुशी पास तू ही नहीं,
छुप गया तू नज़र क्यों मिलाने के बाद!
राख हो तो चुका है सभी कुछ इधर,
फिर भी आए नज़र सब ज़लाने के बाद!
ये अज़ब दर्द है प्यार का देख तू,
आँसू फिर आ गये हैं छुपाने के बाद!
बारिशें रोज आती भिगाने मुझे,
क्यों तू आता नहीं दिल दुखाने के बाद!
ये ग़ज़ल कहना भी इक बड़ी बात है
शेर बनते नहीं सर ख़पाने के बाद!
काटना है सफ़र ये अकेले 'शिखा',
याद आता है क्यों तू भुलाने के बाद!
-दीपशिखा-
२१२२। २१२२। २१२२ २१२
ज़िंदगी के कुछ फ़सानें उन पलों में कैद हैं!
आशिक़ी के वो ज़माने अब ख़तों में क़ैद हैं!
साथ जीने की तमन्ना पूरी ही ना हो सकी,
ख़्वाहिशें अपनी तो सारी सिसकियों में क़ैद हैं!
ज़िन्दगी उसके बिना तो जैसे कोई है सज़ा,
उसके भी ज़ज्बात पर अपनी हदों में क़ैद हैं!
इक नज़र का प्यार था वो भूल पाते हम कहाँ,
बस बनी यादें सहारा, जो दिलों में क़ैद हैं!
इश्क़ में मज़हब मुहब्बत के सिवा कुछ भी नहीं,
क्यों 'शिखा' ये चाहतें यूँ सरहदों में क़ैद हैं!
-दीपशिखा-
2122 1212 22
एक चेहरा नज़र में है मेरे,
रोज़ आता शहर में है मेरे!
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२१२२ २१२२ २१२
बात हमको सब पुरानी याद है,
आँसुओं की वो कहानी याद है!
तोड़कर दिल वो कहीं पर खो गया,
उसकी दी पर हर निशानी याद है!
कल का ही किस्सा था जैसे ये कोई,
वादा उसका मुँह जुबानी याद है!
चाँद तारों से जुड़ी बातें सभी,
रात सारी ही सुहानी याद है!
भूल कर माँ बाप की हर सीख को
क्यों बनी इतनी सयानी याद है!
वक़्त वो भी तो चला यूँही गया,
बन गई थी क्यों दिवानी याद है!
आज दिल में दर्द इतना क्यों 'शिखा',
कद्र दिल की ही न जानी याद है !
-दीपशिखा
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221-/2122-/221/2122
तुमसे न मिल सके हम हाँ दर्द तो हुआ है,
चेहरा ज़रा तुम्हारा यूँ ज़र्द तो हुआ है!
अरमान दिल के टूटे इसमें ख़ता हमारी,
लो मान ये लिया दिल बेदर्द तो हुआ है!
पैग़ाम ले तो आईं हैं दूर से हवाएँ,
मौसम ज़रा सा इससे हाँ सर्द तो हुआ है!
अब तो चली भी आओ राहें पुकारती हैं ,
मन का जो राही भटके ये फ़र्द तो हुआ है!
हम हैं 'शिखा' अकेले तुम साथ ही कहाँ हो!
यादों का एक कमरा हमदर्द तो हुआ है!
-दीपशिखा-
बहर -221 2121 1221 212
आँखों में अपनी नींद छुपाती ही रह गयी,
कुछ ख़्वाब पलकों पे मैं सुलाती ही रह गयी!
कल रात चाँद चौंध में मद्धम सा ही लगा
बस फूँक मार दीया बुझाती ही रह गयी!
जब बदली ने फ़लक को यूँ आँचल से ढक लिया,
मैं भोर जुगनुओं को जगाती ही रह गयी!
अहसास पल में ही तो उड़नछू से हो लिए,
मैं बैठ के अश्क़ यूँ बहाती ही रह गयी!
यादों से भागकर मैं 'शिखा' जाती भी कहाँ,
कुछ दर्द दिल के दिल में दबाती ही रह गयी!
-दीपशिखा-
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
एक बिंदी की ही ये तो बात है तुम भी सुनो,
चाँद धरती पर उतरते तुमने देखा है कहाँ!-
२१२२/ ११२२ / ११२२/२२
एक हम उनकी मुहब्बत में लगे रहते हैं,
वो हैं मग़रूर अदावत में लगे रहते है!
कोशिशों बाद भी दीदार नहीं मिल पाता,
वक़्त बेवक़्त ही उल्फ़त में लगे रहते हैं!
इक झलक से ही महक उठता है गुलशन सारा,
फूल सारे ही तो चाहत में लगे रहते हैं!
देख हमको वो झुकाते हैं निगाहें ऐसे,
बेसबब जान की आफ़त में लगे रहते हैं!
करते हैं वो भी इशारे ये समझ में आए,
होंठ क्यों भींच नज़ाकत में लगे रहते हैं!
वो हाँ गर कह दें तो मर ही न कहीं जाएँ हम,
नाम लेकर तो इबादत में लगे रहते हैं!
दूर जाने का नहीं करता 'शिखा' मन देखो,
रात-दिन याद से कुर्ब़त में लगे रहते हैं !
-दीपशिखा-