यूँ ही बिखरे पड़े थें अतीत के कुछ पन्ने मेरी राहों में..
आज एक मेरी कदमों से टकरा गया और मैं थम-सी गई। ।-
हम व्यवहार करते रह गए,
वो व्यावसाय करते रह गए।
हम रिश्ता निभाते रह गए,
वो मुनाफ़ा गिनते रह गए।।-
इनके चेहरे की मासूमियत तो देखिये जनाब...
गुल भी जान दे कर; बेजान हो गये। ।-
वो लब खुलें तो लगा; जैसे फूल हो गुलाब का,
वो नज़रे मिली तो लगा; जैसे नशा हो शराब का,
हम मर के जी उठे और फिर जी के मर मिटे,
ये अदाएं थी उनकी, या काला जादू था जनाब का??-
कुछ हँसते हैं; कुछ रोते हैं,
कुछ बातें कहकर सुनते हैं,
कुछ अपने हैं; कुछ सपने हैं,
उनको संजोकर जीते हैं।
जिम्मेदार हुए हैं पहली बार,
तो कुछ बातों से भी डरते हैं,
घर की आती है याद मगर,
हम धूल उड़ाकर चलते हैं।।-
अगर कुछ अच्छा लगे तो दिल में
उसे सीखने की चाहत रक्खें..
कोई खानदानी हुनरमंद नहीं होता।
ध्यान दें-
genetic सिर्फ बीमारी हो सकती है;
हुनर इंसान देख-देख कर,
अपनी शौक़ से सीखता।।-
यदि एक स्त्री
आपसे शिकायतें करना बंद कर दे;
तो इसका एक ही मतलब नहीं होता
कि आपने उसकी शिकायतें खत्म कर दी।
एक मतलब ये भी हो सकता है कि-
शायद उसने उम्मीदें ही खत्म कर दी हों आपसे।।-
यदि गर्म पानी को घड़े में डाल दिया जाए;
तो कुछ समय पश्चात घड़ा उसे शीतल जल में परिवर्तित कर देता है।
यहाँ घड़े की खूबी यदि शीतल करना है तो,
पानी की खूबी भी कम नहीं है...
जो खुद को परिवर्तित करने की क्षमता रखता है।।-
ख़ुद को जानो,समझो और सोचो.....
क्या तुम किसी भोर की सुनहरी लालिमा-सी नहीं खिलती कभी?
क्या तुम किसी नदी की तरंगो-सी चंचल नहीं?
क्या तुम में चिडियों की जैसे चहचहाने की काबिलियत नहीं?
क्या तुम में स्वतंत्र परिंदे के जैसे ऊंची उड़ाने भरने की क्षमता नहीं?
फिर तुम क्यों डूबी हुई हो दुनिया की उन कुंठित रीति-रिवाजों की अनंत गहराईयों में???
उठो और महसूस करो....
तुम ईश्वर का एक वरदान हो,जिसे सब "नारी" के रूप मे जानते हैं।।
खुद से मिलों...
और खुद का सम्मान करो। ।-