पिता का टूटा मौन ,
जब बेटी तिरंगे में लिपट कर आई....
पिता वो जो हँसकर विदाई करता था,
बेटी को डोली में सजाता था,
पर जब खबर आई, "शहीद हुई वो,"
तिरंगे में लिपटी, अर्थी पर सोई,
"कन्यादान किया, पर ये कैसा दान?"
आँखें चीखीं, सीना थमा, फिर भी बोला,
"मेरी बेटी ने वतन को अमर बनाया....
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Calm se काम 💯🥀
हार... read more
निश्चल प्रेम तो आँखों
से झलकता है दिल से दिल को छू लेता है
जीत हार के डर से परे हारकर
भी जीत जाता है
निश्चल प्रेम वही होता है,
जिसे बिछड़ने का कोई भय न हो
जो विरह की अग्नि में भी जिए
निश्चल प्रेम वही होता है।।-
लेखक वो कहा जो कभी कभी ही लिखे ,
लेखक तो वो है जो कभी भी लिखे ले।।
जो मन के भाव को शब्दों में पिरो ले,
अब वो स्वयं के हो या अन्य के ।।
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They asked me if I was complete without a man?
I wondered what a man would bring to me.
The wealth that never met the glitter of my eyes. The attachment which would negotiate my freedom. The home which would invite me to leave my own. The name, the identity making another unknown. The intimacy which would negotiate with my purpose. The security which would be traded for control. The mundane that would negotiate with life's emergence.
The choice of making that one person the center of your world. To the choice of loving the entire world with your unconditionality. Being independent, being free, embracing love in everything we see.
Can we find, not someone who can complete us, but the one who complements our completeness.-
कल करे सब देवी पूजा
आज नारी का सम्मान नहीं।
पूजे जो हर एक दिन
फिर देवी का अपमान नहीं।
आज सूझे कोई विधि
कल का वो विधान हो जाए।
दंड मिले सही से दुष्ट को
ऐसा दिखे संविधान नहीं।
मैं कहती हर नारी दुर्गा बने,
बन काली बने काल दुष्टों का
एक नारी भी करे
दूजे नारी का सम्मान
तब जाके होए इस
नारी का युग में कल्याण🌸-
हम अपना घोंसला भूल उसके घराने जानें लगे थे,
कमबख्त हमारी आदत लग गई तब दहलीज बदल ली उसने,
यू रोज़ एक झलक को तरस जाया करते थे,
वो भी समझ गई बरामदे में फिर देर से आया करती थी,
उसकी एक मुस्कान मुझे घायल कर गई,
चले गई पर मुझे पागल कर गई
थी ।-
सीख ।।
बीते दिनों और बीते सालों में
मैंने बहुत कुछ सीखा है
मैंने नदियों से निरंतर चलते रहना
और समंदर से ठहर जाना सीखा है
मैंने पहाड़ों से सदैव एक समान रहना
और जंगल से मौसम से यारी निभाना सीखा है
मैंने खुशी को खुद में बनाना
और शिकवे-शिकायतों को दफनाना सीखा है
मैंने अपनो से दूर बहुत दूर जाना
और गैरों को अपना बनाना सीखा है
अकेले में आसू बहनना और
महफिल में सिर्फ मुस्कुराना सीखा है ।।-
यथा चित्तं तथा वाचो, यथा वाचस्तथा क्रियाः
चित्ते वाचि क्रियायां च साधूनामेकरूपता ॥
जैसा मन होता है, वैसे ही वचन होते हैं, जैसे वचन होते हैं, वैसे ही कर्म होते हैं। मन, वचन और कर्म में सज्जनों की एकरूपता होती है।
:यथा चित मन 🌸-
सुन सखी...
क्या हाथ न कापें थे उसके
न मन उसका थर्राया था
एक जीती जागती ज्योति को
कितनी बर्बरता से बुझाया था।।
मानवता को शर्मसार किया
न जाने कैसे तुझे मार दिया
तेरा सपना अभी अधूरा था
पर उसका इरादा पूरा था।।
उठो सखी अब सुनो सखी
ये रोना काम न आयेगा
कब तक एक लड़की होने पर
हर लड़की का मन पछताएगा।।
कलयुग है ये कालिकाल है
ये यहां भीम न कोई आएगा
तेरी खातिर मेरी प्यारी सखी
न कोई अर्जुन तीर चलाएगा।।-
I'm not a writer by profession
But I'm a writer by passion.
I don't know how to impress others by writing
But I know how to inspire others by writing.
I'm not writing to satisfy unknown crowd
But I'm writing to make myself feel proud.
I don't know how to earn from writing
But I know how to learn from writing.-