Deepika Gupta   (~© दीपिका गुप्ता🪔)
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Joined 4 May 2021


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5 JUN 2023 AT 16:24

याद है मुझे...
वो कमरा, वो बातें, वो तुम संग गुजारे हुए दिन
और सानिध्य से भरी हुई वो लंबी छोटी रातें

संग तेरे ली गई चाय की वो चुस्कियां
और सीने से लगा के तुझे दी गई वो थपकियां
याद है मुझे तेरा वो वक्त लेकर आना
पर फिर भी जाने पे तेरे, मेरा मुंह बन जाना
वो घंटों साथ बिताना फिर भी कुछ बाकी रह जाना
हाथ तेरा थाम कर सड़कों पे यूंही फिरना और
छोटी छोटी चीज़ों में सब खुशियों का मिल जाना

सब ही तो याद है मुझे, पर क्यूं याद है?
यही एक सवाल तो है जो करता है मुझे परेशान
जब तू ही सब कुछ भूल गया तो छोड़ भी दे अब मेरी जान।।

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8 NOV 2022 AT 16:20

वो कहते हैं कि
तुम अब सताया नहीं करते,
पहले की तरह दिल भी
बहलाया नहीं करते;

जो करते थे कभी बैठकर
घंटों तक एक सांस में,
वो बातें भी अब तुम
बताया नहीं करते;

चलते थे जब राहों में
हाथ मेरा थाम कर,
वो मौसम भी अब क्यूं
जाने आया नहीं करते;

कोई उनसे भी तो पूछे
कि ख़तावार आखिर कौन है?
ख़ुद मांझी तो कश्ती को
डुबाया नहीं करते;

मोहब्बत के ऐसे भी
होते हैं कुछ असर,
पत्थर बन कुछ लोग
फिर मुस्कुराया नहीं करते।।

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23 SEP 2022 AT 22:51

काश!!

काश ..
इस नए दौर में भी
एहसास होते
वन नाइट स्टैंड
और हुक अप्स
के वक्त में
कुर्बान होने वाले भी
इंसान होते
या फिर.. मेरे मौला
कुछ दिलों में
न ये जज़्बात होते
बस यूं ही मिलकर
भुला देने के मिजाज़ होते!!

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12 AUG 2022 AT 10:27

आईना

क्यूं...
क्यूं हर बार ऐसा होता है
क्यूं हर बार कोई
इस टूट चुके आईने को
कुछ और तोड़ जाता है
मुद्दतों पहले जो
दिखता था इसमें
वो बा अदब अक्स अब
क्यूं धुंधला सा जाता है
जब जब देखती हूं
इस आईने में खुद को
हर बार एक नया दरार
नज़र आता है...!!

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6 AUG 2022 AT 16:15

सुनो...

कितना कुछ है
जो मुझे तुमसे कहना है
हृदय में तुम्हारे मुझे
शब्दों के साथ बहना है
कितने ही दृश्य, कितने ही नज़ारे
रचे हैं इन नैनों ने संग तुम्हारे
अनसुना सा एक साज़
गूंजा करता है मेरे कानों में
जो देता है थपकियां
अक्सर ही मुझको रातों में
उन साज़ों से सजा हुआ
एक राग मुझको कहना है
तेरे लबों की एक मुस्कान पे
कुर्बान मुझको रहना है
कुर्बान मुझको रहना है।।

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20 JUN 2022 AT 11:37

🩸🩸"जुनूनियत"🩸🩸

मोहब्बत में हक़ वो कुछ इस तरह जताते हैं,
दिल मेरा दुखा कर, मुझसे ही रूठ जाते हैं;
करते हैं मनमानियां ख़ुद तो जी भरकर,
मैं ज़रा सा कर लूं, तो मेरा सब्र आज़माते हैं;
बनाते हैं ख़ुद आशियां अपनी मजबूरियों का,
घर मेरे इश्क़ का उसमें बैठ कर जलाते हैं;
संभाला हुआ है कब से ख़ुद को उनकी ही ख़ातिर,
क्यूं वो मुझे जुनूनियत की हद तक लाना चाहते हैं?

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22 MAY 2022 AT 22:33

गर चाहते हो मुझे
तो बंदिशें कैसी
आज़ाद जो न कर सके
वो इनायत कैसी
मेरे खुदा से भी प्यारा है
मुझको तू
तू महसूस ये न कर सके
तो इबादत कैसी
बेहतर है जुदा होना
ऐसी नज़दीकियों से
जो यार पे ना मर सके
वो मोहब्बत कैसी

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8 MAY 2022 AT 17:19

Babies should be born out of love
Not out of societal pressure...

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26 APR 2022 AT 12:09

मोहब्बत के नाम पर,
लोग हमें ठगते चले गए;
हम जिंदा भी ना थे,
फिर और मरते चले गए!!


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21 APR 2022 AT 0:20

🌹"प्रेम का अंत"🌹

अक्सर ही लोगों को ये कहते सुना है मैंने
कि प्रेम का अंत तो विवाह ही होता है

पर मेरा मन व मस्तिष्क इसे स्वीकार नहीं कर पाया
ना ही कोई तर्क और सामाजिक विचार ये पहेली हल कर पाया

प्रेम का भी कोई अंत होता है क्या?
और
हो जाए जिसका अंत वो प्रेम होता है क्या?

प्रेम तो एक निरंतर बहने वाला भाव है,
जो कभी बुझ न सके ऐसी एक आग है,
हर थकन तेरी जो मिटा सके ऐसा एक पड़ाव है,
और
प्रेम का अंत जो कहते हैं उनमें
'प्रेम का ही तो अभाव है '
'प्रेम का ही तो अभाव है ' ।।
🌹🌹🌹

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