deepika gupta   (Deepu ki सोच 💭🎭✒️)
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Joined 19 October 2018


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30 JAN 2023 AT 14:16

उन आंखो ने मुझे रोक दिया,
मैं था कही और कही और झोंक दिया ,
मैं ठहरा और बस निहारता रहा उसे ,
इस बेपरवाह को उसने नया शौक दिया ....!

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13 DEC 2022 AT 13:30

मैं हूं गलत हर बार सही नही
ये कौन मुझे समझाए ,
मेरा अहंकार मुझसे भी बड़ा है ,
इसे कौन आग लगाए ,
कहने को तो मैं समझदार हूं
पर मती बुद्धि कौन ठिकाने लाए,
यूं ही रास्तों पर गाते चली ,
कौन मुझे पागल कह कर बुलाए ,
तुम दे दो मुझे अपने गम सारे ,
पर जमा मेरे वाले कौन मुझसे ले जाए,
एक तिरछी मुस्कान लिए फिरती हूं मैं,
इसे दूसरे कोने तक कौन पहुंचाए...!

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6 DEC 2022 AT 0:48

कुछ दिनों से मैं रोया नही हूॅं,
आंखे तो बंद थी पर मैं सोया नही हूॅं,

देखता हूं खुद बिखरते हुए,
होशो हवास में हूं, मैं खोया नही हूॅं,

पाप जलाने गया था गंगा,
खुद को देखा तो कुछ भीं मैं धोया नही हूॅं,

मैं देखता रहा , लोग करते रहे प्यार मुझसे,
मैं बेईमान किसी एक का भी होया नहीं हूॅं,

मैं चाहता हूं शांति की छाव हर ओर,
काटता रहा , पर पेड़ एक भी बोया नही हूॅं,

रात हुई ,आंखे नम,
नींद लगी पर मैं सोया नही हूॅं...!

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24 NOV 2022 AT 16:24

देखते है दुनिया को एकतरफा,
हर जगह बस गलत ही गलत लगता है,
और जब बात खुद पे आती है,
तो गलत भी सही लगता है।
कोई चले किसी का दामन पकड़कर
कुछ और नही निरा मूर्ख लगता है,
और खुद छुपते है किसी के पूरे दामन में,
तो निरा मूर्ख बनना भी सही लगता है,
हम दुनिया को देखते है एक तरफा,
खुद को छोड़ सब गलत लगता है !!!

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15 OCT 2022 AT 13:20

किनारों पर खड़े थे हम दोनो,
पर किनारों की बीच की दूरी ज्यादा थी,
चाहते दबी थी मन में बेशुमार,
पर जिंदगी के चलते मजबूरी ज्यादा थी,
कोई दिन था ,जब बाते थीं सुहानी,
कोई सुंदर शाम, तो कभी राते नूरी ज्यादा थी,
कब पड़ा खलल बातो मे , कब पड़ी विरह की परछाई,
किसी ने तो मुंह फेरा, की बातो मे कमी पूरी ज्यादा थी ,
अब दूर है हम जैसे अनजान कोई,
पर यादों के चलते आंखो में नमी थोड़ी ज्यादा थी....!

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12 SEP 2022 AT 19:47

जाऊ फिर उस सोच में या थककर सो जाऊ मैं,
अभी अभी सुखा है तकिया मेरा, या फिर रो जाऊ मैं,
ये मेरी सोच हैं जो रुकने का नाम नहीं लेती,
कोई और बहाना दो किसी और बात में खो जाऊ मैं,
आदत है लोगो को मुझे किसी के साथ देखने की,
पर अब हिम्मत नही की फिर किसी की हो जाऊ मैं,
हर चुनी हुई मंजिल बर्बाद गई,
भला अब कैसे किस राह को जाऊ मैं.... ।

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28 AUG 2022 AT 2:23

बाजार में फिर कोई नया आया होगा,
उसने फिर किसी को अपना शेर सुनाया होगा,
बांधा होगा फिर उसकी आंखो ने किसी को,
कोई फिर अपने तजुर्बे से मार खाया होगा,
उलझा रहा मैं भी कई दिन उन बालो में,
मेरी तरह फिर कौन उससे सुलझ पाया होगा,
फरेब की रात में जीता था वो ,
उसने आज फिर किसी का जिस्म खाया होगा,
रास है मुझे अब अकेलापन मेरा,
फक्र में की, "कोई तो उससे बच पाया होगा ...!"

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3 AUG 2022 AT 1:37

अकेले उसके आने से ही नहीं बदली जिंदगी मेरी ,
कुछ कसूर खैर मेरा भी था ,
मेरा शामियाना बस उससे ही रोशन नहीं हुआ,
कुछ नूर मेरा भी था,
पहले हुए उसके दो कबूल,
फिर एक उसमे मेरा भी था ,
कही रिश्तों से पीछे भी हटे थे कुछ कदम,
उनमें से कदम एक मेरा भी था...!

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24 JUL 2022 AT 3:13

चलो आज फिर पुरानी तस्वीरों में खो जाते है,
रो कर उन्ही में सो जाते है,
मेरी सूजी आंखे गवाही देगी रातों की,
कही किसी याद में ,हम उनके वो हमारे हो जाते है ,
पूरा दिन संभलता खुद को भ्रमित कर कर ,
रात के तकिए, यादें निकालती और हम रो जाते है,
कही किसी बंद किवाड़ सा सफेद चेहरा लिए,
घाव खुले छोड़ , बिन चादर के हम सो जाते है,
चलो आज फिर पुरानी तस्वीरों में खो जाते है !!!!!

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22 JUL 2022 AT 7:58

आज ये मौसम मुझे खुबसूरत नजारे क्यू दे रहा,
ठंडे ठंडे पानी में शोलो के अंगारे क्यू दे रहा,
मेरा हाल जान ना है तो इनसे पूछ लो,
बिरहा के चहरे पर मुस्काने क्यू दे रहा,
अभी अभी तो आंख खुली,
ये फिर से सोने के बहाने क्यू दे रहा,
आस है मुझे सब होगा ठीक एक दिन,
ये मुझे आज ही जीने के ठिकाने क्यू दे रहा !!!

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