टूटे हुए सपने
मुझे लगा मेरे गांव पर ही ग्रहण लगा है
पर जब दुनिया कि बातें सुन रही हूँ
तो लग रहा है
कि इस साल मै ही मौत का तांडव लगा है
यहां अपने ही बेगाने लग रहे हैं
अपनों पर ही सवाल उठ रहे हैं
जिससे प्यार करते हैं क्षण भर के लिए ही
पर उसपे भी शक हो रहा है
यहां कब, कहां, कोन साथ छोड़ दे
इसी बात का डर लग रहा है
धीरे-धीरे जो समय बीत रहा है
2025 जो हाथ से निकल रहा है
जिसके सपने ओर घर टूट चुके हैं
उस के लिए क्या उम्मीद अब रह चुकी है......-
आज वो बारिश की बूंद
कुछ कहने को आई है
खुद की सुंदरता का प्रमाण देने आई है
वो कहती है!
की जब मैं सूरज के साथ
हल्की हल्की बूँदों मैं आती हूँ
तो आसमान सात रागों से भरती हूँ
मेरे आने से बहुत लोग दुखी होते है
पर उन लोगों से पूछो जो मेरा
इतजार वर्षो से करते है
मेरे आने से जो हानि होती है
मैं क्या करूँ मैं तो खुदा का करिश्मा हूँ-
मेरा नाम
मेरी गलती यह है कि मैं स्त्री हूँ
तो क्या मेरा अस्तित्व नहीं
पिता ओर पति का नाम मेरे आगे लगे
ये जरूरी तो नहीं
मैं भी इंसान हूँ
मेरा भी खुद का नाम है
फिर मैं अपने नाम से क्यों ना जानी जाऊँ ?
यही मेरा सवाल है
ओर ये सवाल मुझे उन युग मैं लेकर गया
जहाँ स्त्री को सबसे ऊपर रखा गया-
वो जो छोटी सी थी कब बड़ी हो गयी
कब उस के हाथ घर की जिम्मेदारी आ गयी
वो घर की बेटी थी पर कब बेटा बन गयी
सब कुछ करने के बाद भी
वो परेशानियों से घिर गयी
जिन्दगी तो गुजार रही है वो
हर दिन एक नई किरन की तलाश मैं है वो
हर काम मैं काबिल है वो
फिर भी परेशान है वो
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काग़ज़ का हर पन्ना मैं
पलटना चाहती हूँ
हर वक़्त खुद मैं ही खोना चाहती हूँ
लिख रही हूँ हर वो बात जो
दिल से बताना चाहती हूँ
जो बात हर किसी को समझाना चाहती हूँ-
किस्म मैं था ही नहीं वो
फिर क्यो मिला वो
क्या उसके हर वादे झूठे थे
सुना था आखें झूठ नहीं बोलती
फिर केसे कोई आखों मैं देख कर झूठ बोल सकता है
ये सब मुझे वो सीखा के चला गया
देखो इतनी किस्मत की मारी हूँ
अपने ज़ख़्म किसे ही बता सकती हूँ
जब खुद की ही पसंद थी
अब केसे ही सवाल उठा सकती हूँ
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किस दौड़ मैं हूँ
किस से भाग रही हूँ
ये कहना मुश्किल है
मेरा रिजल्ट जो आने वाला है
वो है तो भविष्य पर
वो मेरे आज पर हावी हो रहा है
मेरा जो दिमाग है उस ने कभी सोचा ही नहीं भविष्य के बारे मैं
सपने है तो बड़े पर वो पूरे केसे हो
करना तो मैं बहुत कुछ चाहती हूँ
पर क्या केसे ये
मेरे सवाल खा रहे है मुझे
हर कोई सोचता है ये कर लेगी
पर इन्हें केसे बताऊ मैं भी इंसान हूँ
जिस के घर मै हर लड़की कुछ ना कुछ कर रही है
मैं केसे क्या करूँ ये मुझे कोई बता दे ....😫
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लिख रही हूँ
शायद लिखती रहूँगी
पर इस फोन के ज़माने मैं
या पैसा कमाने की होड़ मैं
मेरा लिखना ठीक है
या सब छोड़ कर
शांति ढूंढने जाऊँ
पर इस दुनिया मैं आये है
दुनिया को कुछ कर के तो दिखाना है
पर...................
क्या करूँ ऐसा जिस
से हर कोई नाज करे
लिख रही हूँ अपनी सारी बातें
पर कोई पढने को तैयार नहीं
शायद मेरा लिखना व्यर्थ है........😣
पर फिर भी हर सुबह एक नयी आसां होती है
की किसी दिन मेरा लिखा लोगों को अच्छा लगने लगे गा-
जो अंधेरे से डरती थी
आज क्यो उसे अंधेरे मैं रहना पसंद आ रहा है
जो अंधेरे से भागती थी
आज क्यों वो उस के पास जाना चाहती है
क्या वो ड़र रही है
दुनिया के बदलते चेहरे देख कर
क्या सच मैं वो फर्क़ नहीं कर पा रही
कोन अपना है ओर कोन पराया
वो ऐसा अंधेरा ढूंढ रही है जहा उस की परछाई भी उसे
ना ढूंढ सके
सच मैं वो अब अंधेरे मैं जाना चाहती है
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What happened last night, was it really not so horrible
that you forgot it with the new morning rays?
You can show your smiling face to the world
but how will you calm the storm that's inside you?
When you look at yourself in the mirror, even the mirror says, how do you really do this?
Do you really think that the world will love you one day?
This is Kaliyug, everyone is selfish here. Can't you understand this simple thing? Do you still love the world?
Really, have you made a mistake by coming to this era of people
or have you made a mistake in understanding the world?
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