बुरा है बहुत, अपनी नजरों में गिर जाना..
सहेजने की कोशिश में, बरबस बिखर जाना..
खुद को खिंच, खड़ा करना कठघरे में..
जैसे घुट जाये दम, एक गली संकरे में..
कोई गवाही न देगा, तेरी बेगुनाही का..
पड़ेगा देखना मंजर, खुद की ही तबाही का..
दलीलें या कोई तर्क अब काम ना आए..
बचो आईने से, के खुद से आंखें न मिल जाए..
खुद ही दोषी और फरियादी भी खुद ही हो
सलाखें , सजा और आज़ादी भी खुद ही हो..
मुकर्रर करेगा मन, वही सुनाएगा अब फैसला..
निज नजरों से जो है उतरा, पाए खुद से फ़ासला..
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