Deepanshu Sahay   (दीपांशु सहाय)
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छोटे शहर की ऊंची तमन्ना हूं मैं..जिंदगी का खुशनुमा पन्ना हूं मैं ।
Joined 30 May 2020


छोटे शहर की ऊंची तमन्ना हूं मैं..जिंदगी का खुशनुमा पन्ना हूं मैं ।
Joined 30 May 2020
14 SEP 2022 AT 18:47

हमारी हिन्दी

देश के भाल पर दमकती
राष्ट्र की उन्नति में चमकती है तू
हमारी हिंदी, भारत की बिंदी है तू
बचपन की कहानियों में बहती
प्रेम की कविताओं में लहलहाती है तू
हमारी हिंदी, भारत की बिंदी है तू
अपने घर में हौले हौले मुस्काती
और विदेशों में डंका बजाती है तू
हमारी हिंदी, भारत की बिंदी है तू
तुझे बोलना लिखना समझना आसां
माँ की गोदी याद दिलाती है तू
हमारी हिंदी, भारत की बिंदी है तू

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23 JUN 2022 AT 11:43

अगर आस की आंखें होतीं
तो होतीं मेरे पापाजी सी
लाड़ का कोई लबादा होता
होता उनके कुर्ते जैसा !
सज्जनता की मूंछें होतीं
दिखती उनकी मुस्कान सरीखी
साहस का स्पर्श गर होता
होता उनके हाथों जैसा !

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20 NOV 2020 AT 23:16

जो 'यूंही लिख दिया' कह कर..
रंग देती है पन्ने दर पन्ने
व्यथा से, प्रेम से, भावना से -

जो 'सुनो' कह कर
कह जाती है ऐसा कुछ
सब हैं सोचते जो, पर लिख नहीं पाते

जो बातें करती है शहद सी
प्यार लुटाती है अपनी प्यारी सी 'अहा' से
और जाने कब बन जाती है बहुत अपनी

हाँ, वही स्वप्निल आँखों वाली हमारी प्यारी 'ज्योति' को जन्मदिन की असीम शुभकामनाएँ!

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15 JAN 2021 AT 22:03

संगमील (milestone)
जग पेचीदा, मन संजीदा
जब जब देता छील
मेरे घाव भरा करता
मेरे शहर का वो संगमील ...
कलम, कमाई, कल के लिए
छोड़ा जिससे हिल मिल
मुझसे वफा निभाया करता
मेरे शहर का वो संगमील...
जेहन में अंगड़ाई लेता
दूरी हो मीलों मील
मेरी राह तका करता
मेरे शहर का वो संगमील...
मेरी अंत्य माटी से गढ़ना उसे
जब काल जाये मुझे लील
मैं ही बन जाऊँ किसी रोज़
मेरे शहर का वो संगमील...

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29 NOV 2020 AT 15:53

अधूरी ख्वाहिशों के नाम
चलो इक खत लिखते हैं..
चाहा, पर मिला नहीं ,
आज वो सब लिखते हैं..
छुटपन में खिलौनों की
जिद न की
सिक्कों में तोल दिया सबने , चलो
फिर अपना बचपन लिखते हैं ...
ज्यादा तो माँगा ही नही
थोड़े में भी, दगा मिला
ये प्यार मुहब्बत चीज़ बुरी , छोड़ो
ख़ुद अपनी धड़कन लिखते हैं...
जो गया छूट उसे तकते हम
जो मिला उसी से रूठे हम
ये ख्वाहिशें हों अधूरी बेशक
पर इनसे ही हैं पूरे हम !

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8 NOV 2020 AT 22:59

रूह के सफहो पर तुझे
खत तमाम लिखा था
वो भूल गया तुझे लिखना
मेरे हाथों की लकीरों में
पर मैंने चुपके से
कई बार कोरी हथेलियों पर
तेरा ही नाम लिखा था...

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17 OCT 2020 AT 12:37

बुरा है बहुत, अपनी नजरों में गिर जाना..
सहेजने की कोशिश में, बरबस बिखर जाना..

खुद को खिंच, खड़ा करना कठघरे में..
जैसे घुट जाये दम, एक गली संकरे में..

कोई गवाही न देगा, तेरी बेगुनाही का..
पड़ेगा देखना मंजर, खुद की ही तबाही का..

दलीलें या कोई तर्क अब काम ना आए..
बचो आईने से, के खुद से आंखें न मिल जाए..

खुद ही दोषी और फरियादी भी खुद ही हो
सलाखें , सजा और आज़ादी भी खुद ही हो..

मुकर्रर करेगा मन, वही सुनाएगा अब फैसला..
निज नजरों से जो है उतरा, पाए खुद से फ़ासला..

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11 OCT 2020 AT 21:52

झिड़की हैं...अपनों की,
खिड़की हैं...सपनों की,
सुर्खी हैं ...अखबारों की,
धुरी हैं...परिवारों की,
कलरव हैं...चिडियों की,
कलकल हैं...नदियों की,
अल्हड़ से...सुघड़ तक,
लेखनी से...छोलनी तक,
...
झप्पियों सी..लड़कियां...

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10 OCT 2020 AT 21:39

साँस ..
रोकने की कोशिश करूँ..
..तो अपनी ही जान जाती है !

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9 OCT 2020 AT 15:34

बोलो...

मन उद्विग्न हो चला है,
कौन है सहारा बोलो..
तम से अंशु की डगर पर,
किसने है पुकारा बोलो...

उर की इन बेचैन लहरों
को मिले किनारा कैसे..
श्वास की बे उम्मीद लय पर,
मधुर कब तराना बोलो...

पथरा गई आंखें हैं यूँ
भला किसको ना निहारा बोलो..
कंठ सूखे, होंठ रूखे,
किधर तृप्ति धारा बोलो...

अधीरता कैसी ये उत्कट
प्रेममय ज्यों राधा बोलो...
बेकल हुई जाती हो पल पल
क्या बंसी ने पुकारा बोलो...

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