एक दिन मैं।
एक दिन मैं कहीं दूर, गुमनाम होकर बस जाऊँगा। घर, समाज, दोस्तों, रिश्तेदारों से दूर, किसी पहाड़ की चोटी पर। जहाँ से मैं अकेले दुनिया देख सकूँ, उसके बारे में कुछ लिख सकूँ, चाय पी सकूँ और साहित्य पढ़ सकूँ। मैं अपनी मौत को जीते हुए उसके बारे में लिखूँगा और दुनिया को उसका एहसास कराऊँगा।-
अंत में:
आप दोषी निकलेंगे, हर उस रिश्ते के जिनसे आपने निस्वार्थ प्रेम किया..!-
कॉल की रिंग जा रही है। हालाँकि मुझे पता है, कॉल नहीं उठेगा। फिर भी ख़ुद को मनाया कि एक आख़िरी बार कोशिश कर ली जाए। ये "आख़िरी बार" न जाने कितनी दफ़ा कह चुका हूँ मैं ख़ुद से।
जब मेरा बहुत बोलने का मन करता है, तो मेरे पास लोग नहीं होते। तब समझ आता है कि मैंने ख़ुद को कितना अकेला कर लिया है।
कमरे में बैठा सोच रहा हूँ, किसे बताऊँ? कि घर की याद आ रही है, यहाँ बारिश हो रही है, और आज मन बहुत उदास है।
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यादों की चादर को ओढ़े
कोई कैसे सो सकता है
आज मिला तो पूछ रहा था
क्या अब भी कुछ हो सकता है
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वो लोग जो ज़िंदा हैं वो मर जाएँगे इक दिन
इक रात के राही हैं गुज़र जाएँगे इक दिन
यूँ दिल में उठी लहर यूँ आँखों में भरे रंग
जैसे मिरे हालात सँवर जाएँगे इक दिन
यूँ होगा कि इन आँखों से आँसू न बहेंगे
ये चाँद सितारे भी ठहर जाएँगे इक दिन
अब घर भी नहीं घर की तमन्ना भी नहीं है
मुद्दत हुई सोचा था कि घर जाएँगे इक दिन
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तुमको देखता हूँ चुपके चुपके,
दूर से ही तुम्हें निहारता रहता हूँ।
ये दूरियां तोड़ना चाहता हूँ,
पर हिम्मत नहीं जुटा पाता हूँ।
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हमेशा देर कर देता हूँ मैं हर काम करने में
ज़रूरी बात कहनी हो कोई वा'दा निभाना हो
उसे आवाज़ देनी हो उसे वापस बुलाना हो
हमेशा देर कर देता हूँ मैं
मदद करनी हो उस की यार की ढारस बंधाना हो
बहुत देरीना रस्तों पर किसी से मिलने जाना हो
हमेशा देर कर देता हूँ मैं
बदलते मौसमों की सैर में दिल को लगाना हो
किसी को याद रखना हो किसी को भूल जाना हो
हमेशा देर कर देता हूँ मैं
किसी को मौत से पहले किसी ग़म से बचाना हो
हक़ीक़त और थी कुछ उस को जा के ये बताना हो
हमेशा देर कर देता हूँ मैं हर काम करने में.....
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उस के चेहरे की चमक के सामने सादा लगा
आसमाँ पे चाँद पूरा था मगर आधा लगा
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दिलों की ओर धुआँ सा दिखाई देता है
ये शहर तो मुझे जलता दिखाई देता है
जहाँ कि दाग़ है याँ आगे दर्द रहता था
मगर ये दाग़ भी जाता दिखाई देता है
पुकारती हैं भरे शहर की गुज़रगाहें
वो रोज़ शाम को तन्हा दिखाई देता है
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इश्क़ में कौन बता सकता है
किस ने किस से सच बोला है
हम तुम साथ हैं इस लम्हे में
दुख सुख तो अपना अपना है
मुझ को तो सारे नामों में
तेरा नाम अच्छा लगता है
भूल गई वो शक्ल भी आख़िर
कब तक याद कोई रहता है
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