Deepanshu Dhurvey  
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Joined 2 June 2022


Joined 2 June 2022
17 FEB 2024 AT 21:11

तुम्हें बहुत कुछ कहना था पर तुमने बिछड़ने का तय कर लिया था
तो हमने फिर जाने दिया उन बातों को और तुम्हें

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17 FEB 2024 AT 13:44

यादें खास होती है पर सभी के लिए जैसे
आपको ही ले लो

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10 FEB 2024 AT 22:13

ठीक है अब तुम्हें ना पुकारेंगे
जान जाती है तो जाएं
तुमसे दिन ना लगाएंगे

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6 FEB 2024 AT 19:39

शब्द श्रंगार बनते अगर तुम हां मैं हां मिलाते

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31 JAN 2024 AT 17:26

उसका साथ चाहता था साथ चलने के लिए
वो साथ किसी और के चल रहा था मुझसे आगे निकलने के लिए
मैंने भी साथ दिया मेरे आगे निकलने के लिए

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26 JAN 2024 AT 7:55

मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँ,
वो ग़ज़ल आपको सुनाता हूँ।

एक जंगल है तेरी आँखों में,
मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ।

तू किसी रेल-सी गुज़रती है,
मैं किसी पुल-सा थरथराता हूँ।

हर तरफ़ एतराज़ होता है,
मैं अगर रोशनी में आता हूँ।

एक बाज़ू उखड़ गया जब से,
और ज़्यादा वज़न उठाता हूँ।

मैं तुझे भूलने की कोशिश में,
आज कितने क़रीब पाता हूँ।

कौन ये फ़ासला निभाएगा,
मैं फ़रिश्ता हूँ सच बताता हूँ।
#दुष्यंत कुमार

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25 JAN 2024 AT 21:51

हो सकता हूं गलत किसी के लिए
मगर जायज़ तो नहीं हर फूल तोड़ा जाएं
तितलियां आबाद है आसमां में तो
उन्हें उड़ने दिया जाए हम तो कहते है
उसने हर बात सही वो मुकर जाएं तो क्या
कौन होता है किसी का तलबगार यहां
तुमने चाहा और हम कैसे बदल जाएं
इतना क़ायदा तो कुदरत भी बख्शा
है मोला किसी का दिल दु:खा कैसे जीता जाएं

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25 JAN 2024 AT 7:40

तुम जो मौन तोड़ कुछ कह पाते तो अच्छा
लबों से ना सही नयनों से कुछ कह पाते तो अच्छा
जायज नहीं लगता तुमको मिलना कुछ देर ठहर सोच पाते तो अच्छा
शिकायत ही कोई करते हमसे कुछ तो अच्छा
मायूस सा लगता है सावन तुम बिन कुछ देर के लिए
लौट आते तो अच्छा
ये बिखरी लटों को समेट कर कानों में कुछ सुलझा लेते तो अच्छा
हम पे कुछ हक जताते तो अच्छा
कुछ देर साथ में बिताते तो अच्छा

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23 JAN 2024 AT 13:06

वजह खूबसूरत है जाने कि उनकी हम कागज़ों में उन्हें अपना लिखते रहे

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22 JAN 2024 AT 20:37

पूरे रास्ते में जो पहरा है तेरा
देखा ना कितना रंग निखरा है मेरा
समेटा है जमीं को ओस ने इस तरह
बदला है मौसम जिस तरह
हम भी आईने मैं भूले चेहरा खुदका
मैं जो तुम होने लग हूं
इक कवायद है रस्मों कि
बिन फेरे तेरे होने लगे है
लोग मिल के जाते रहे है मुझसे
मैं तो राह तकते बैठा हूं तेरे
बना ले अपना या छोड़ मझधार में
ये सिंदूर रखा है बस तेरे हवाले

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